इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 03 नवंबर 2021। धरती का ताप यदि मौजूदा रफ्तार से बढ़ता रहा तो अगले दशक के पहले ही वैश्विक खेती में भारी उथल-पुथल देखने को मिलेगी। ‘नेचर फूड’ जर्नल में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक धरती का ताप और बढ़ने पर विशेष फसलों के लिए अनुकूल क्षेत्र भी प्रतिकूल होकर स्थानांतरित होने लगेंगे। इसमें कहा गया है कि धरती का ताप अधिक होने से अनाज में पोषक तत्वों की कमी हो जाएगी। इसी तरह वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक होने से सदी के अंत तक मक्के का उत्पादन 25 फीसदी तक घट जाएगा । हालांकि इसके कारण गेहूं का उत्पादन करीब 17 फीसदी तक बढ़ जाएगा। नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज (जीआईएसएस), न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी और पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च (पीआईके) से जुड़े विशेषज्ञ जगरमेयर के नेतृत्व में यह शोध किया गया।
कुछ क्षेत्रों में मक्का उत्पादन शीघ्र घटेगा
रिपोर्ट के मुताबिक मक्का उत्पादन के लिहाज से बढ़ता ताप उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय देशों के लिए ठंडे प्रदेशों की अपेक्षा अधिक नुकसानदायक होगा। उत्तरी और मध्य अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका, मध्य और पूर्व एशिया में आने वाले वर्षों में मक्के की पैदावार में 20 प्रतिशत से अधिक घट जाने की आशंका है।
गेहूं उत्पादकता बढ़ने का कारण
गेहूं उत्पादन के लिए समताप जलवायु की जरूरत होती है। इससे संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और चीन में इसी उत्पादकता बढ़ जाएगी। इसके अलावा हवा में मौजूद अधिक कार्बन डाइऑक्साइड भी गेहूं की उत्पादकता बढ़ाने में कारगर है।
खाद्य सुरक्षा का संकट
रिपोर्ट में कहा गया है कि फसलों की उत्पादकता में बदलाव का सबसे अधिक दुष्प्रभाव गरीब देशों के छोटे किसानों पर पड़ेगा। इससे अमीर और गरीब देशों के बीच की खाई ना केवल चौड़ी हो जाएगी बल्कि खाद्य सुरक्षा का भी संकट खड़ा हो जाएग।
किसानों के लिए सामंजस्य बिठना बड़ी चुनौती
रिपोर्ट के मुताबिक किसानों के लिए जलवायु परिवर्तन के अनुरूप सामंजस्य बिठना बड़ी चुनौती होगी। इसके कारण फसल बुआई की तिथि में बदलाव करना पड़ सकता है। उपज में नुकसान से बचने के लिए फसल की अलग तरह की वरायटी की जरूरत पड़ सकती है।