आखिर कहां छिपा है जमात प्रमुख मौलाना साद, 30 दिन बाद भी सुराग नहीं

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

नई दिल्ली । भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण का सबसे बड़ा कैरियर बने निजामुद्दीन मरकज के जमातियों के प्रमुख मौलाना मुहम्मद साद कंधलावी का 30 दिन बाद भी कोई सुराग नही मिल सका है। साद सहित 7 अन्य लोगों के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने भले ही केस दर्ज कर लिया है लेकिन मौलाना अब भी कानून की गिरफ्त से फरार हैं। सवाल लाजिमी है कि पब्लिक सेफ्टी और हेल्थ को जोखिम में डालने वाले गैरजिम्मेदार मौलाना को अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया। निजामुद्दीन स्थित मरकज के मौलाना साद 31 मार्च को मुकदमा दर्ज होने के बाद से दिल्ली पुलिस की पकड़ में नहीं आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के शामली स्थित उनके पैतृक निवास कांघला से लेकर सहारनपुर स्थित उनके ससुराल तक पुलिस ने दबिश दी थी। दिल्ली में निजामुद्दीन और जाकिर नगर के घर पर भी उन्हें तलाशा गया था। लेकिन वह जांच एजेंसी के हाथ नहीं लगे। इस मामले में आरोपी बनाए गए उनके छह साथियों के बारे में भी पुलिस को कुछ पता नहीं लग सका है।

दिल्ली में छिपे होने की थी सूचना, लेकिन मौलाना गिरफ्त से बाहर

कुछ दिन पहले ही सूचना मिली थी कि मौलाना साद दिल्ली के ओखला इलाके के जाकिर नगर में अपनी बहन के घर में छिपे हुए हैं। तब दिल्ली क्राइम ब्रांच ने कहा था कि वह इसे पुख्ता कर रहे हैं, जिसके बाद उन पर निगरानी रखी जाएगी। हालांकि अभी तक साद के गिरफ्तारी या हिरासत संबंधी कोई खबर नहीं मिल सकी है।

16 मार्च को सीएम केजरीवाल ने दिया था आदेश- 50 से ज्यादा लोग न इकठ्ठा हों

कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 16 मार्च को आदेश जारी कर कहा था कि राज्य में 31 मार्च तक कोई भी धार्मिक, सामाजिक या राजनैतिक जमावड़ा न हो जहां 50 से ज्यादा लोग इकठ्ठा हों। लेकिक, इस आदेश का तबलीगी जमात के कार्यक्रम पर कोई असर नहीं पड़ा।

23 मार्च को खुला मामला, मरकज से 1500 लोग निकाले गए

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 22 मार्च को घोषित किए गए संपूर्ण लॉकडाउन के एक दिन बाद 23 मई को इस घटना की जानकारी हुई। जिसके बाद इन लोगों को बसों में बैठाकर संक्रमण की जांच के लिए विभिन्न अस्पतालों में लेकर जाया गया। जांच के बाद इनमें से कई की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।

13 मार्च से शुरू हुआ था तबलीगी जमात का कार्यक्रम

13 मार्च से दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित तबलीगी जमात के मुख्यालय में एक धार्मिक आयोजन में लगभग 3500 लोग इकठ्ठा हुए थे। इन लोगों को मौलाना साद ने धार्मिक प्रवचन देने के लिए आमंत्रित किया था। पुलिस के अनुसार, इस आयोजन में 800 से ज्यादा विदेशी लोगों ने हिस्सा लिया था। जिसमें से आधे से ज्यादा सरकार की सख्ती के कारण देशभर के विभिन्न जगहों पर जाकर छिप गए।

28 मार्च को दिल्ली पुलिस का नोटिस, तुरंत खाली करें मरकज

दिल्ली पुलिस की तरफ से एसीपी लाजपत नगर ने 28 मार्च को मरकज को नोटिस जारी कर इसे तुरंत खाली करने का आदेश दिया। जिसके जवाब में मरकज ने लिखा कि यहां लोगों का जमावड़ा लॉकडाउन घोषित होने से पहले ही शुरू हो गया था। हम अब किसी अन्य को इसमें शामिल नहीं कर रहे हैं। जिसके बाद पुलिस और स्वास्थ्य अधिकारियों ने मस्जिद से लोगों को बाहर निकालने का काम तेज कर दिया।

दिल्ली पुलिस का साद को पहला नोटिस, मांगे 26 सवालों के जवाब

प्रशासन की तरफ से 2 अप्रैल को मौलाना को पहला नोटिस भेजा गया। इस नोटिस में 26 सवाल पूछे गए, जिसमें नाम, पता, संगठन का पंजीकरण विवरण, उसके पदाधिकारियों का विवरण, पिछले तीन वर्षों में मरकज द्वारा भरे गए आयकर रिटर्न का विवरण, पैन नंबर, बैंक खाता संख्या और पिछले एक वर्ष के बैंक स्टेटमेंट उपलब्ध कराना शामिल हैं। दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने संगठन को परिसर में एक धार्मिक सभा आयोजित करने के लिए पुलिस या किसी अन्य अधिकारियों से मांगी गई अनुमति की एक प्रति पेश करने के लिए भी कहा।

खुद को घोषित किया जमात का एकछत्र अमीर

दरअसल, साद द्वारा खुद को अमीर घोषित किए जाने का विरोध इसलिए हुआ क्योंकि तबलीगी जमात के पूर्व अमीर मौलाना जुबैर उल हसन ने संगठन का नेतृत्व करने के लिए के सुरू कमिटी का गठन किया था। लेकिन, जब जुबैर का इंतकाल हो गया तो मौलाना साद ने लीडरशिप में किसी को साथ नहीं लिया और अकेले अपने आप को ही तबलीगी जमात का सर्वेसर्वा घोषित कर दिया। चूंकि साद जमात के संस्थापक के पड़पोते और संगठन के दूसरे अमीर के पोते हैं तो एक वर्ग का उनके प्रति श्रद्धा बरकरार रही।

दूसरे ग्रुप के साथ हिंसा और जमात का दो फाड़

2016 के जून महीने में तो मौलाना साद और मौलाना मोहम्मद जुहैरुल हसन की लीडरशिप वाले तबलीगी जमात के दूसरे ग्रुप के बीच हिंसक झड़प हो गई थी। दोनों ग्रुप ने एक-दूसरे पर घातक हथियारों से हमले किए थे। इस झड़प में करीब 15 लोग घायल हो गए थे। तब पुलिस-प्रशासन की दखल से शांति कायम हुई थी। मौलाना साद के ग्रुप के हिंसक व्यवहार से घबराकर तबलीगी जमात के कई वरिष्ठ सदस्य निजामुद्दीन छोड़कर भोपाल चले गए। इस तरह, देश में तबलीगी जमात का दो धड़ा बन गया। एक धड़े का केंद्र निजामुद्दीन में है जबकि दूसरे का भोपाल।

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