इंडिया रिपोर्टर लाइव
बेगलुरु 20 जून 2023। एक पति द्वारा शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना हिंदू विवाह अधिनियम -1955 के तहत क्रूरता है, लेकिन आईपीसी की धारा 498ए के तहत नहीं, एक फैसले पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह बात कही। हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ 2020 में उसकी पत्नी द्वारा दर्ज आपराधिक मामले में कार्रवाई को रद्द कर दिया है। एक खबर के मुताबिक पति ने अपने और अपने माता-पिता के खिलाफ आईपीसी की धारा 498A और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत दायर चार्जशीट को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था।
याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एकमात्र आरोप यह था कि वह एक निश्चित आध्यात्मिक आदेश का अनुयायी था, उसका मानना था, “प्रेम कभी भी भौतिक नहीं होता, यह आत्मा से आत्मा का होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि शख्स का अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने का कभी इरादा नहीं था”, जो “निस्संदेह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 (1) (ए) के तहत विवाह करने के कारण क्रूरता होगी लेकिन यह आईपीसी की धारा 498ए के तहत परिभाषित क्रूरता के दायरे में नहीं आता है। शख्स की शादी 18 दिसंबर 2019 को हुई थी लेकिन पत्नी सिर्फ 28 दिन ससुराल में ही रही। उसने 5 फरवरी, 2020 को धारा 498ए और दहेज अधिनियम के तहत पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। उसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 (1) (ए) के तहत पारिवारिक अदालत के समक्ष मामला दायर किया, जिसमें क्रूरता के आधार पर विवाह को रद्द करने की मांग की गई, जिसमें कहा गया कि विवाह संपन्न नहीं हुआ था।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने पति और उसके माता-पिता द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली और शादी के 28 दिन बाद पत्नी द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई शिकायत रद्द कर दी। 16 नवंबर, 2022 को दोनों की शादी रद्द कर दी गई थी। पत्नी ने आपराधिक मामले को आगे बढ़ाने का फैसला किया। हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक कार्रवाई को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है अन्यथा यह ।कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग और न्याय का गर्भपात होगा