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पुणे 28 नवंबर 2024। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा कि सेना एक पिघलने वाले बर्तन के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। साथ ही इस बात पर भी ध्यान दिया कि मणिपुर के कुकी और मैतेई समुदाय के सदस्य एक ही इकाई में बहुत सद्भाव के साथ काम करते हैं। उन्होंने बुधवार को कहा कि जातिविहीन सेना होने के कारण यह सौहार्द को बढ़ाती है और दरारों को कम करती है। गौरतलब है कि मणिपुर में पिछले साल से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष चल रहा है। जनरल बीसी जोशी मेमोरियल लेक्चर सीरीज के तहत ‘भारत की विकास गाथा को सुरक्षित रखने में भारतीय सेना की भूमिका और योगदान’ विषय पर व्याख्यान देते हुए जनरल द्विवेदी ने अग्निवीरों के बारे में भी बात की और कहा कि ये युवा अनुशासन और ज्ञान से आकार लेते हैं। उन्होंने कहा कि सेना एक गैर-राजनीतिक ताकत है, जो पूरे देश से अपनी मानव पूंजी लेती है।
आतंकवाद की थीम को पर्यटन में बदला
सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के रक्षा और सामरिक अध्ययन विभाग (डीडीएसएस) द्वारा आयोजित व्याख्यान में, सेना प्रमुख ने जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व में आंतरिक सुरक्षा स्थिति के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर में हम आतंकवाद की थीम को पर्यटन में बदलने में सफल रहे। जब हम गहराई में देखेंगे तो पता चलेगा कि करीब 600 से अधिक रियासतों के विलय में सेना ने हैदराबाद और गोवा समेत एकीकरण में अहम भूमिका निभाई।’
हकीकत और उरी का क्यों किया जिक्र?
जनरल द्विवेदी ने जोर देकर कहा कि सेना के सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य बहुत मजबूत हैं और सेना एक पिघलने वाले केंद्र के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उन्होंने कहा, ‘अगर कोई भारतीय सेना की वीरता पर आधारित फिल्मों के संवाद सुने- ‘हकीकत’ (1964) से लेकर विक्की कौशल अभिनीत ‘उरी’ (2019) तक, तो उसे पता चलेगा कि यह एक पिघलने वाले बर्तन के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा, ‘हम एक गैर-राजनीतिक और ‘अधार्मिक’ सेना हैं, जो देश के सभी जिलों से अपनी मानव पूंजी लेते हैं। इसके बावजूद, हिंदी एक बाध्यकारी भाषा के रूप में कार्य करती है। सियाचिन बेस पर मौजूद सियाचिन बाबा ऐसे उदाहरण हैं जहां सभी धार्मिक देवता एक ही छत के नीचे हैं।’
दो जातीय समूहों के बीच भय को दूर करने…
सेना प्रमुख ने संघर्षग्रस्त मणिपुर को लेकर कहा, ‘जातिविहीन सेना होने के नाते, यह सौहार्द को बढ़ाती है और गलत होने की संभावना को कम करती है। इसका एक फायदा हाल ही में मणिपुर में देखा गया, जहां युद्धरत समुदायों (कुकी और मैतेई) के दिग्गजों ने दो जातीय समूहों के बीच भय को दूर करने और विश्वास बहाल करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने कहा, ‘आज भारतीय सेना और असम राइफल्स में दोनों समुदाय के सदस्य कुकी और मैतेई एक ही इकाई में बड़े सामंजस्य के साथ काम करते हैं।’
2036 में होगा ओलंपिक
जनरल द्विवेदी ने कहा कि जहां तक 2036 ओलंपिक खेलों के आयोजन में सेना की भूमिका का सवाल है, जिसके लिए भारत आक्रामक रूप से बोली लगा रहा है, बल ‘मिशन 2032’ (तैयारियों के संदर्भ में) पर गौर कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘भारतीय सेना ओलंपिक 2036 के आयोजन में अहम भूमिका निभाएगी और इसके लिए हमें पर्याप्त संख्या में श्रम बल तैयार करना होगा और इसलिए वर्ष 2032 बहुत महत्वपूर्ण है।