चेतावनी: चीन-म्यांमार सीमा में फिर संगठित हो रहे पूर्वोत्तर के विद्रोही, मणिपुर चुनाव में खलल डालने की कोशिश

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

कोलकाता 12 जनवरी 2022। चीन व म्यांमार सीमा क्षेत्रों में विद्रोही फिर संगठित होकर देश के पूर्वोत्तर में आतंकी हमले बढ़ा रहे हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों ने चेताया है कि विद्रोही अपना धैर्य खो रहे हैं। आने वाले दिनों में मणिपुर चुनाव व नगालैंड शांति वार्ता के बीच हमले बढ़ सकते हैं। असम राइफल्स के पूर्व आईजी मेजर जनरल भबानी एस दास के अनुसार कई विद्रोही समूहों के सदस्य चीन में हैं। भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने में यह चीनी एंगल भी है। यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (आई), पीपल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (के) से टूटे धड़े के विद्रोही शामिल हैं। बीएसएफ के रिटायर्ड एडीजी संजीव कृष्ण सूद के अनुसार बेशक चीन की भूमिका को अनदेखा नहीं कर सकते, लेकिन शांति वार्ता में अनसुलझे मुद्दों की भी वजह से भी नगा समूह भड़के हुए हैं।

चीन : बिना सहमति विद्रोहियों को मदद संभव नहीं

उल्फा (आई) नेता परेश बरुआ के चीन के कुन्मिंग राज्य में छिपे होने की जानकारी सामने आई है। पहले वह म्यांमार सीमा के निकट चीनी शहर रुइल में छिपा था। मॉरीशस के पूर्व एनएसए रहे आईपीएस शांतनु मुखर्जी के अनुसार कुन्मिंग अवैध हथियारों की मंडी है।

  • नगा विद्रोह के बाद 70 के दशक में उन्हें यहां प्रशिक्षण और हथियार मिलते थे।
  • चीन सीधे हथियार नहीं देता, लेकिन मेजर जनरल (से.) बिस्वजीत चक्रवर्ती के अनुसार ये सब उसकी अप्रत्यक्ष सहमति के बिना संभव नहीं है।

म्यांमार : खुद के बिगड़े हालात में कुछ नहीं कर पा रहा

कई जनजातीय विद्रोही उत्तरी म्यांमार के क्षेत्रों को माओ के मॉडल पर ग्रेटर नागालिम में शामिल करने के लिए हथियार उठाए हुए हैं। घने जंगलों की वजह से भारत और म्यांमार में आना-जाना मुश्किल नहीं है।

  • 2019 में संयुक्त अभियानों के बाद विद्रोहियों के कई शिविर म्यांमार में खत्म किए गए।
  • चक्रवर्ती के अनुसार म्यांमार सेना का इन क्षेत्रों पर नियंत्रण कमजोर है या खत्म हो चुका है।

सहमति, पारदर्शिता से निकालनी होगी राह

मेजर जनरल दास के अनुसार, सावधानी से नगा वार्ता पर काम करना होगा। वार्ता से हट रहे समूहों का विश्वास जीत कर उन्हें संविधान के दायरे में काम करने के लिए सहमत करना होगा। किसी सैन्य कार्रवाई में गलती होती है तो उसे पारदर्शिता से सुलझाना होगा। भारत द्वारा ताइवान की आजादी का समर्थन करने पर पिछले वर्ष चीनी विशेषज्ञ अलगाववादियों को समर्थन देने की नीति सामने रख चुके हैं। यह भी खतरा।

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