इंडिया रिपोर्टर लाइव
जालंधर 05 अगस्त 2023। भलेही कनाडा में सिख समुदाय के लोगों द्वारा खुद को खालिस्तान समर्थक बताकर शरणार्थी बनने के दावों में कमी नहीं आ रही है, लेकिन इस साल कनाडाई सरकार ने छानबीन के बाद सैकड़ों ऐसे दावों को खारिज कर दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक कनाडा के आन और शरणार्थी बोर्ड (आई.आर.बी.) ने 2023 की पहली तिमाही में 833 दावों की स्वीकार किया, जबकि 222 को खारिज कर दिया है। आई. आर. बी. के आंकड़ों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कि 2022 में 3,469 लोगों के दानों की स्वीकार किया गया था, जबकि 3,797 लोगों के खारिज कर दिए गए थे। इसी तरह 2021 में स्वीकार किए गए शरणार्थी दावों की संख्या 1.652 अस्वीकृतियों के मुकाबले कुल 1,043 जाकर कुछ मि जबरन अपने पर खालिस्तानी होने का टैग लगाकर अपने हो के खिलाफ जहर उगलते हैं, ताकि उन्हें वहां पर शरणार्थी के तौर पर अपना लिया जाए। शरण हासिल करने के लिए देना पड़ता है हलफनामा पंजाब के सिख समुदाय के कुछ लोगों के सिर पर कनाडा में बसने का ऐसा जनून है कि वे खुद को खालिस्तानी समर्थक बनने के झूठे दावे करने से गुरेज नहीं करते हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ कनाडा सरकार ने शिनाख्त करने के नियम कड़े कर दिए हैं और काफी लोगों के दावे खारिज भी किए जा रहे हैं। लोग कनाडा की शरण हामिल करने के लिए हलफनामा दायर कर भारत पर राजनीतिक हिंसा का आरोप लगाते हैं। जबकि भारत की जमीन पर खालिस्तानी आंदोलन कहाँ दिखाई नहीं देता है। ब्रिटेन में भी एक मीडिया हाउस द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन में तो यह भी दावा किया गया है कि वकील ही सिख समुदाय के लोगों को खालिस्तान समर्थक होने का दावा करने की सलाह दे रहे हैं ताकि उन्हें वहां शरणार्थी का दर्जा दिला जा सके।
भारत पर लगाया था आरोप, शरण मांगने वाले दंपति का दावा खारिज
पंजाब के एक जोड़े ने दावा किया था कि खालिस्तान आंदोलन से उनके कवित संबंधों के कारण अगर उन्हें भारत भेजा गया तो उनकी जान को खतरा है, लेकिन कनाडाई अधिकारियों ने उन्हें शरणार्थी का दर्जा देने से इनकार कर दिया। रिपोर्ट के मुताबिक मॉन्ट्रियल में रहने वाले राजविंदर कौर और रणधीर सिंह ने शरणार्थी होने की स्थिति का दावा किया था, लेकिन कनाडा के आव्रजन और शरणार्थी बोर्ड (आई.आर.बी) ने इसे खारिज कर दिया था। उन्होंने दावा किया था कि ये राजनीतिक हिंसा के शिकार थे। कौर ने दावा किया था कि उनके पति को आंतरिक सुरक्षा पुलिस ने इस संदेह में गिरफ्तार किया और प्रताड़ित किया कि उन्होंने आजादी की मांग कर रहे कट्टरपंथी सिखों को आश्रय दिया था।
विदेशों में कौन हैं खालिस्तानी समर्थक और कैसे चलाते हैं अपना एजैंडा
मामले से जुड़े जानकारों का कहना है कि विदेशों में प्रवासी खालिस्तानी चरमपंथियों की संख्या बहुत कम है. लेकिन इनकी आक्रामकता के कारण उनकी संख्या को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा होती है। इन लोगों को विदेशों में सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक, सभी क्षेत्रों में उपस्थिति है। यू. के. और कनाडा में ज्यादातर खालिस्तानी समर्थक निम्न सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि से है। इनमें साक्षरता का स्तर बेहद कम है और वे छोटी-मोटी नौकरियां करते हैं। उनमें से कई पश्चिमी देशों में शरणार्थी है और ज्यादातर अवैध प्रवासी है। नागरिकता हासिल करने के मकसद से वे अक्सर यह आरोप लगा देते हैं कि भारत में आजादी और जान को खतरा है और कई एजेंसिया उनके पीछे पड़ी हैं। खालिस्तानी होने के झूठे दावों के आधार पर यू. के. और कनाडा में पहुंचे लोग जब इनके संपर्क में आते हैं तो उन्हें भारत विरोधी गतिविधियां करने के लिए मजबूर किया जाता है।
विदेशी गुरुद्वारों पर खालिस्तान समर्थकों का मजबूत नियंत्रण
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के पोर्टल पर पश्चिम खालिस्तान की नीतियों की विवेचना करते हुए अभिनव पांड्या अपने लेख में कहते हैं कि विदेशी गुरुद्वारों पर खालिस्तान समर्थकों का मजबूत नियंत्रण है। यही वजह है कि उन्हें समुदाय से जुड़े सभी मुद्दों पर अपनी बात रखने उन्हें प्रभावित करने का अधिकार मिल जाता है। गुरुद्वारा किसी श्री धार्मिक सिख के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। विवाह, धार्मिक अनुष्ठान, सामाजिक समारोह या फिर आध्यात्मिक लक्ष्यों के लिए गुरुद्वारा सिखों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। गुरुद्वारों पर खालिस्तानी नियंत्रण के कारण कई सिखों के आश्रित और असुरक्षित बने रहने की संभावना बड़ जाती है। गुरुद्वारे के जरिए उन्हें अपने उद्देश्य के लिए भारी फंड मिलता है। इसके अलावा खालिस्तानी प्रबंधन सामुदायिक कल्याण के लिए भी फंड इकट्ठा करता है, जिसे चरमपंथी और विध्वंसक गतिविधियों में लगा दिया जाता है।