गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही बनेगा विकास के क्षेत्र में अग्रणी जिला :जयसिंह अग्रवाल

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

रायपुर, 14 सितंबर 2020। प्रदेश के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री तथा गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले के प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने कहा है कि नवगठित गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही अब बड़ी तेजी से विकास की ओर अग्रसर है। श्री अग्रवाल मरवाही विकासखण्ड के ग्राम दानीकुण्डी में वन विभाग द्वारा आयोजित सामुदायिक वन संसाधन अधिकार कार्यशाल सह प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में प्रदेश में सभी जिलों का सर्वांगीण विकास हो रहा है। श्री अग्रवाल ने कहा कि पिछले 6 माह में गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले में करोड़ों रूपए के विकास कार्यों का लोकार्पण, शिलान्यास व घोषणाएं की गई है। राज्य शासन छत्तीसगढ़ के दूरस्थ ईलाकों के विकास के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भविष्य में गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिला विकास के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ के सबसे अग्रणी जिलों में से एक होगा। राजस्व मंत्री ने मरवाही बाजार में सुदृढ़ीकरण व सड़क चौड़ीकरण कार्यों के लिए प्रभारी मंत्री मद से 10 लाख रूपए की घोषणा की। उन्होंने स्थानीय युवाओं एवं महिलाओं को रोजगार से जोड़े जाने हेतु शासन द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ उठाने के लिए अपील की। उन्होंने नेचर कैम्प के रख-रखाव एवं पर्यटन की दृष्टि से बेहतर अधोसंरचना निर्माण के लिए अधोसंरचना मद से 50 लाख रूपए प्रदान करने की घोषणा की। उन्होंने बिलाईगढ़ को राजस्व ग्राम घोषित किया। प्रभारी मंत्री ने लाख प्रसंस्करण केन्द्र, लाख चूड़ी एवं गहना निर्माण इकाई, बांस प्रसंस्करण एवं आगरबत्ती निर्माण इकाई, टमाटर प्रसंस्करण इकाई, सीताफल प्रसंस्करण, ढेकी द्वारा जैविक चावल उत्पादन, सिलाई प्रशिक्षण सह-वस्त्र निर्माण, फैंसिंग पोल एवं गमला निर्माण इकाई से संबंधित प्रसंस्करण संयंत्रों का शुभारंभ किया। 

राजस्व मंत्री ने कहा कि दानीकुण्डी में विविध सुविधा सह मूल्य संवर्धन केन्द्र की स्थापना की गई है। केन्द्र में लाख प्रसंस्करण इकाई के माध्यम से लाख प्रसंस्करण का कार्य किया जा रहा है। मरवाही क्षेत्र में नैसर्गिक रूप से वन एवं राजस्व क्षेत्रों में पलाश के वृक्ष विपुल संख्या में प्राप्त होते हैं। यहां अनेक वर्षों से ग्रामीण परम्परागत रूप से लाख पालन एवं संग्रहण करते रहे हैं।  इस सयंत्र के स्थापना से स्थानीय उत्पादों का मूल्य संवर्धन स्थानीय रूप से होगा जिससे ग्रामीणो को सतत रोजगार मिल सकेगा। वन धन केंद्र दानीकुण्डी में निर्माणाधीन भवन का उपयोग भविष्य में आटी इमली से फूल इमली बनाने, महुआ फूल से जीरा निकालने एवं चार गुठली से चिरौंजी निर्माण कर मूल्य संवर्धन किया जायेगा। इस पूरे गतिविधि में लगभग 200 लोगों को रोजगार प्राप्त हो सकेगा। 

इसी प्रकार लाख-चूड़ी एवं गहना निर्माण इकाई के माध्यम से क्षेत्र में लाख उत्पादन के साथ साथ मूल्य संवर्धन द्वारा लाख की चूड़ियां एवं गहना निर्माण का कार्य किया जा रहा है। परियोजना प्रावधान अंतर्गत दानीकुण्डी एवं आस -पास के ग्रामों के कुल 80 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है एवं 40 महिलाओं को चूड़ी निर्माण हेतु सामग्री एवं उपकरण प्रदाय किया गया है। महिलाए अपने दैनिक परिवारिक दायित्व निर्वहन के बाद शेष समय में 1-2 सेट चूड़ी बना लेती है, जिससे उन्हें 200-300 रू. का औसत लाभ प्रतिदिन की दर से माह में चार हजार से पांच हजार रूपए की आय होती है, महिलायें चुड़ियों को स्थानीय बजारों में विक्रय करती हैं। इन्हें क्षेत्र के सभी बाजारों में पहुंचकर अपनी विक्रय केन्द्र बनाने के विकल्प के रूप में चलित विक्रय केन्द्र दिया जा रहा है जो छोटे दुपहिया मोटर गाड़ी से संचालित होगी। इसके लिये कुल 60 हजार रु. का आबंटन परियोजना से इन्हें दिया जा चुका है।

साथ ही बांस प्रसंस्करण एवं अगरबत्ती निर्माण इकाई वन धन उद्यम से उत्पादन के सिद्धांत पर महिलाओं को अगरबत्ती की काडी निर्माण कर विविध सुगंध युक्त अगरबत्ती निर्माण हेतु 7 लाख रुपये के व्यय से परियोजना द्वारा वित्त पोषण से स्थापित किया गया। यहां पर गुलाब, मोंगरा, मच्छर भगाने हेतु लेमन ग्रास, नीलगिरी के तेल एवं वन तुलसी के मिश्रण का उपयोग भी किया जायेगा। यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि अगरबत्ती सीक का विक्रय मूल्य 60 रुपए किलोग्राम है, जबकि इसका निर्माण लागत मात्र 20 रू. है। इसके लिये बांस वनमण्डल के अंतर्गत विभिन्न सफल बांस रोपणों से प्राप्त किया जायेगा। अगरबत्ती सीक बिक्री के साथ-साथ यहां निर्मित अगरबत्ती शुद्ध जैविक उत्पाद के रुप में बाजार में भेजी जायेगी, इस इकाई से प्रत्यक्ष रुप से 10 महिलाओं को लाभ मिलने के साथ-साथ स्थानीय एवं खुदरा बिक्री द्वारा 200 ग्रामों में संचालित किराना दुकानों वालों को भी लाभ होगा। स्पष्टतः स्थानीय उत्पाद एवं स्थानीय विक्रय से होने वाले लाभ स्थानीय लोगो को ही होगा जो आज ग्राम्य आर्थिक व्यवस्था के सुदृढीकरण के लिये महत्वपूर्ण आवश्यकता है। प्रति वर्ष एक करोड़ अगरबत्ती काड़ी विक्रय की योजना है, जिससे प्रति हजार (प्रति कि.ग्रा. के आधार पर सीक) 3 लाख रुपये प्रति वर्ष आय की संभावना है। अगरबत्ती के निर्माण से होने वाला लाभ अतिरिक्त होगा जो स्वसहायता समूह की महिलाओं को स्थायी रोजगार देने के साथ-साथ इस क्षेत्र में सामाजाक आर्थिक उन्नयन में सहायक होगा। इस इकाई के विस्तार हेतु वन विकास निगम के सी.एस.आर. मद से 25 लाख की राशि प्रदान की गई है जिससे कार्य शेड सह गोदाम के निर्माण का शिलान्यास किया गया है।

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राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने सीताफल प्रसंस्करण इकाई का शुभारंभ किया

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