पं. विद्या निवास मिश्र ने लोक साहित्य में मानक स्थापित किया – प्रो. अच्युतानंदन मिश्र
Budhadas Mirgae
वर्धा 14 जनवरी 2021(इंडिया रिपोर्टर लाइव)। महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा और विद्याश्री न्यास, वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारत में भाषा चिंतन की परंपराएँ’ विषयक त्रिदिवसीय (12,13,14 जनवरी) राष्ट्रीय वेबिनार का समापन आज (गुरुवार) को हुआ।
14 जनवरी को पूर्वाह्न 11 बजे
‘विद्यानिवास मिश्र स्मृति व्याख्यान एवं सम्पूर्ति सत्र में ‘लोक का वैभव : अभिव्यक्ति और अनुभव’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में लोक साहित्य के मर्मज्ञ डॉ. राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी ने अपने विचार रखे. सत्र की अध्यक्षता माखल लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व कुलपति प्रो. अच्युतानंद मिश्र ने की।
प्रो. मिश्र ने कहा कि पं. विद्या निवास मिश्र अपने साहित्य के माध्यम से लोक में विचरण करते थे. उनका लोक साहित्य परंपरा, रीति रिवाज, त्यौहारों से भरा हुआ था. लोक की सरलता और स्वाभाविकता उनके साहित्य में प्रदर्शित होती है। उन्होंने जीवन पर्यंत समाज को दिशा देकर लोक साहित्य में मानक स्थापित किया है।
प्रो. नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने कहा कि पं. विद्यानिवास मिश्र मनुष्य को परिमार्जित करने वाले साधनाओं के साधक थे.
प्रो. राजेंद्र चतुर्वेदी ने पं. मिश्र के संस्मरणों को सुनाते हुए कहा कि उनके साहित्य में लोक जीवन की अभिव्यक्ति के अनेक रूप हैं। वे शास्त्र के ऋषि कल्प पंडित थे. उन्होंने सामाजिक अन्याय के विद्रोह को अपने साहित्य में प्रमुखता से स्थान दिया।
संगोष्ठी का आभार वक्तव्य देते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने कहा भाषा का चिंतन लोक से जीवन प्राप्त करता है और लोक में ही जीवंत रहता है। पं. विद्या निवास मिश्र जी का स्मरण करते हुए प्रो. मिश्र ने कहा कि पं. मिश्र लोक के प्रति गहरी आस्था रखते थे। वे निरंतर लोक संस्कृति और भाषा से टकराते थे. उनका कहना था कि लोक के साथ संवाद स्थापित करने से ही समाज जीवित रह सकता है. इस त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार के अत्यंत सफल आयोजन के लिए प्रो. मिश्र ने महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल के प्रति विद्याश्री न्यास की ओर से हार्दिक धन्यवाद व्यक्त किया।
संगोष्ठी के संयोजन के लिए हिंदी प्रो. मिश्र ने विश्वविद्यालय के साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. अवधेश कुमार और सह-संयोजक डाॅ. अशोक नाथ त्रिपाठी का भी आभार माना. अतिथियों का परिचय डा. दयानिधि मिश्र ने दिया।
संपूर्ति सत्र का संचालन विश्वविद्यालय के साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. अवधेश कुमार ने किया। इस त्रि-दिवसीय वेबिनार में विभिन्न सत्रों में देश भर के विद्वान भाषाविदों और भाषा चिंतकों ने गहन विमर्श किया। आभासी पटल पर सम्पन्न इस संगोष्ठी में अध्यापकों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों ने अपनी सहभागिता की।