इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 11 सितम्बर 2021। परंपरागत युद्ध में जिन सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले का खतरा सबसे बाद में होता है, वह साइबर हमले के निशाने पर हो सकते हैं। दरअसल, सैन्य मुख्यालयों को युद्ध में तीसरे दर्जे का लक्ष्य माना जाता है। लेकिन जिस प्रकार से साइबर हमलों का खतरा बढ़ रहा है, उसके मद्देनजर दुश्मन सबसे पहले सैन्य मुख्यालयों पर साइबर हमले कर कम्युनिकेशन एवं हथियारों से जुड़े तंत्र को तबाह कर सकता है। इसके मद्देनजर सरकार जवाबी रणनीति बनाने में जुट गई है।
सरकारी सूत्रों ने कहा कि अभी तक युद्ध में सबसे पहले अग्रिम पंक्ति के बलों पर दुश्मन के हमले होते हैं। उनमें सफलता मिलती है तो निकटवर्ती सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाए जाने का खतरा रहता है। लेकिन सैन्य मुख्यालयों तक दुश्मन के पहुंचने का खतरा कम रहता था। लेकिन नई तकनीकों ने युद्ध के मौजूदा परिदृश्य को बदल दिया है। हो सकता है, दुश्मन पहले बार्डर पर हमला करने की बजाय सीधे सैन्य मुख्यालयों पर साइबर हमला करे। इसी बात को ध्यान में रखते हुए तीनों सेनाओं के लिए साइबर सुरक्षा की रणनीति बनाई जा रही है।
सरकारी सूत्रों ने कहा कि इसके मद्देनजर तीनों सेनाओं के लिए साइबर विशेषज्ञों का एक तंत्र स्थापित करने की प्रक्रिया चल रही है। सेनाओं में जो पुनर्गठन की प्रक्रिया चल रही है, उसमें कुछ लाजिस्टिक सेवाओं को बंद या छोटा किया जाएगा, वहीं साइबर सुरक्षा जैसे नए क्षेत्रों में प्रशिक्षित लोगों की भर्ती की जाएगी। इसके लिए डिफेंस साइबर एजेंसी (डीसीए) की स्थापना कर ली गई है। इसे साइबर कमान भी कहा जाता है। इसे तीनों सेनाओं की साइबर सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया है।
2019 में इसके गठन के बाद दिल्ली में इसके मुख्यालय ने कार्य करना शुरू कर दिया है तथा अब इसमें बकायदा विशेषज्ञों की तैनाती की प्रक्रिया चल रही है। इसे एक सक्रिय कमान के रूप में विकसित करने की कोशिश की जा रही है जो साइबर हमलों को नाकाम कर सके।