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पटना 08 नवंबर 2023। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए कोटा (आरक्षण) बढ़ाने के अपने इरादे की घोषणा करते हुए मंगलवार को कहा कि मौजूदा विधानसभा सत्र में इस आशय का कानून लाने की संभावना है। कुमार ने अपनी सरकार द्वारा कराए गए महत्वाकांक्षी जातिगत सर्वेक्षण पर एक विस्तृत रिपोर्ट बिहार विधानसभा के पटल पर पेश किए जाने के बाद हुई चर्चा में भाग लेते हुए यह बयान दिया। उन्होंने पांच दिवसीय बिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन कहा, ‘‘एससी और एसटी के लिए मिलाकर आरक्षण कुल 17 प्रतिशत है। इसे बढ़ाकर 22 फीसदी किया जाना चाहिए। इसी तरह ओबीसी के लिए आरक्षण भी मौजूदा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया जाना चाहिए। हम उचित परामर्श के बाद आवश्यक कदम उठाएंगे। हमारा चालू सत्र में इस संबंध में आवश्यक कानून लाने का इरादा है। सर्वेक्षण के अनुसार अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) उपसमूह सहित ओबीसी, राज्य की कुल आबादी का 63 प्रतिशत है जबकि एससी और एसटी कुल मिलाकर 21 प्रतिशत से थोड़ा अधिक हैं। मुख्यमंत्री के बयान का राज्य की राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है और इससे देश के अन्य हिस्सों से आरक्षण बढ़ाने की मांग उठ सकती है। कुमार ने बिहार में जातिगत सर्वेक्षण को ‘‘बोगस” बताए जाने की भी निंदा की। बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहे कुमार ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को प्रत्युत्तर देते हुए कहा, ‘‘कुछ लोग कहते हैं कि अन्य जातियों के नुकसान के लिए कुछ समुदायों के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। ये सब ‘‘बोगस” बात है, नहीं बोलना चाहिए था।”
शाह ने दो दिन पहले मुजफ्फरपुर जिले में एक रैली में नीतीश कुमार सरकार पर निशाना साधते हुए उस पर अपनी ‘‘तुष्टिकरण की राजनीति” के तहत राज्य के जातिगत सर्वेक्षण में जानबूझकर मुस्लिमों और यादवों की आबादी को बढ़ाकर दिखाने का आरोप लगाया था और कहा था कि इसका अन्य पिछड़े वर्गों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। शाह ने नीतीश कुमार पर यह भी आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने सहयोगी दल राजद के प्रमुख लालू प्रसाद के दबाव में ऐसा किय । लालू प्रसाद इन दोनों समुदायों को अपना प्रबल समर्थक मानते हैं।
नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद के छोटे बेटे और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाने वाले उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की मौजूदगी में सदन को संबोधित करते हुए कहा कि यहां तक कि उनकी अपनी जाति (कुर्मी) भी कुल आबादी का एक छोटा प्रतिशत है। उन्होंने कहा, ‘‘इस सर्वेक्षण से पहले हमारे पास केवल धारणाएँ थीं, संबंधित समूहों की जनसंख्या का अनुमान लगाने के लिए कोई ठोस डेटा नहीं था। आखिरी बार जातिगत गणना 1931 की जनगणना में की गई थी। इसके अलावा हमें यह भी समझना चाहिए कि महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के बाद प्रजनन दर में गिरावट आ रही है। सामाजिक क्षेत्रों में जहां यह परिवर्तन अधिक स्पष्ट है, वहां जनसंख्या अनुपात में गिरावट होगी।” उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनकी सरकार रिपोर्ट की एक प्रति केंद्र को भेजेगी जिसमें समाज के कमजोर वर्गों पर लक्षित उपाय करने के लिए अतिरिक्त सहायता की मांग की जाएगी।
जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के शीर्ष नेता कुमार ने कहा, ‘‘इस अवसर पर मैं बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए अपने अनुरोध को फिर से दोहराना चाहूंगा।” उन्होंने कहा, ‘‘हमने अनुमान लगाया है कि गरीबों की स्थिति में सुधार के लिए राज्य को 2.51 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ उठाना होगा।” मुख्यमंत्री ने कहा कि सर्वेक्षण के अनुसार बिहार में 94 लाख परिवार गरीब हैं जो 6000 रुपये या उससे कम की मासिक आय पर जीवन यापन कर रहे हैं । उन्होंने कहा कि उनकी सरकार द्वारा रखे गए प्रस्तावों में से एक गरीब परिवारों को आर्थिक रूप से उत्पादक कार्य करने के लिए प्रत्येक को दो लाख रुपये की सहायता प्रदान करना है। इसके अलावा उनकी सरकार ने आवास निर्माण के लिए ऐसे प्रत्येक परिवार को एक लाख रुपये देने की योजना बनाई है जिनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं है।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘अगर हमें विशेष दर्जा मिलता है, तो हम दो से तीन वर्षों में अपने लक्ष्य हासिल करने में सक्षम होंगे। अन्यथा इसमें अधिक समय लग सकता है।” उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि यह सर्वेक्षण केंद्र को राष्ट्रव्यापी जनगणना के अनुरोध पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करेगा। उन्होंने कहा कि इस मांग को लेकर उन्होंने बिहार के एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करते हुए दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘हमें बताया गया कि अनुरोध स्वीकार नहीं किया जा सकता है लेकिन यदि इसकी आवश्यकता महसूस की गई तो राज्य सर्वेक्षण करने के लिए स्वतंत्र हैं। जनगणना अब तक पूरी हो जानी चाहिए थी अभी तक शुरू नहीं हुई है। केंद्र जनगणना के हिस्से के रूप में जातियों की गणना पर विचार कर सकता है।