संसदीय समिति की सिफारिश- एमएसपी कानूनी रूप से बाध्यकारी होना चाहिए, किसान सम्मान निधि बढ़ाने का भी सुझाव

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

नई दिल्ली 18 दिसंबर 2024। कृषि मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने सरकार से सिफारिश की है कि किसानों के लिए फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया जाए। समिति का कहना है कि कानूनी तौर पर बाध्यकारी एमएसपी लागू करना न केवल किसानों की आजीविका की सुरक्षा के लिए बल्कि ग्रामीण आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी जरूरी है। कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी की अध्यक्षता वाली कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण संबंधी समिति ने किसान सम्मान निधि को छह हजार रुपये वार्षिक से बढ़ाकर 12,000 रुपये वार्षिक करने और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग का नाम बदलकर कृषि और किसान एवं खेत मजदूर कल्याण विभाग करने की सिफारिश भी की है।

समिति के मुताबिक, कानूनी गारंटी के रूप में एमएसपी लागू करने के लाभ, उससे जुड़ी चुनौतियों से कहीं अधिक हैं। समिति ने यह सिफारिश भी की है कि गोपालकों को आर्थिक मदद दी जाए ताकि वे दूध नहीं देने वाली गायों को नहीं छोड़ें।

17 बैठकों के बाद तैयार हुई रिपोर्ट
समिति की रिपोर्ट मंगलवार को लोकसभा में पेश की गई। बाद में संवाददाताओं से बातचीत में चन्नी ने कहा कि 17 बैठकों के बाद समिति की रिपोर्ट सर्वसम्मति से स्वीकार की गई। यह रिपोर्ट कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए मील का पत्थर साबित होगी। उन्होंने कहा, हमने कृषि, पशुपालन, सहकारिता, डेयरी और मत्स्यपालन से संबंधित विभागों के बजट में बढ़ोतरी की सिफारिश की है। चन्नी ने बताया कि इसमें यह सिफारिश भी की गई है कि सरकार को किसान और खेतिहर मजदूरों के लिए कर्जमाफी योजना लेकर आना चाहिए क्योंकि किसान कर्ज के बोझ से दबा जा रहा है और आत्महत्या करने को मजबूर हो रहा है।

मनरेगा मजदूरी बढ़ाए सरकार, भुगतान के लिए आधार की अनिवार्यता खत्म हो : संसदीय समिति
संसद की स्थायी समिति ने केंद्र से सिफारिश की है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत मजदूरी बढ़ाने के लिए सभी हिताधारकों को साथ लेकर कदम उठाए। समिति ने मजदूरी के भुगतान से जुड़ी आधार की अनिवार्यता खत्म करने पर भी जोर दिया। कांग्रेस सांसद सप्तगिरी उलाका की अध्यक्षता वाली ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संबंधी समिति ने मजदूरी के भुगतान में देरी पर चिंता जताते हुए राज्यों के साथ केंद्र की भी आलोचना की है। उलाका ने यह रिपोर्ट मंगलवार को लोकसभा के पटल पर रखी। रिपोर्ट में कहा गया है, समिति ने मनरेगा के तहत मजदूरी को मुद्रस्फीति के अनुरूप किसी सूचकांक के साथ जोड़कर बढ़ाने का आग्रह बार-बार किया है। परंतु सूचकांक में कोई बदलाव नहीं होने के कारण मनरेगा के तहत मजदूरी पहले के स्तर पर बनी हुई है। 

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