हैप्पीनेस उत्सव में केजरीवाल बोले : ‘ऐसा हो कि जब हम दुनिया से जाएं तो जग रोए और हम हंसें’

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

नई दिल्ली 29 जुलाई 2022। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हैप्पीनेस उत्सव का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया समापन समारोह में शामिल हुए हैप्पीनेस उत्सव दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली में 7 साल से सीएम अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में एजुकेशन का बजट 25 फीसदी रखा गया है, लेकिन बात सिर्फ बजट की नहीं है, शिक्षा के लिए काम शिद्दत से किया है. मकड़ी वाले स्कूल की पहचान अब अब शानदार बन गए हैं. गरीबों के बच्चे अब NEETऔर JEE में जाने लगे.

अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी ने भी की थी Happiness Class

उन्होंने कहा कि एजुकेशन के क्षेत्र में हमारा काम तभी सफल होगा जब बच्चे अच्छे इंसान बनेंगे. हमने बच्चों की उनके माता-पिता, दोस्तों से बातचीत को हैप्पीनेस क्लास का आधार बनाया. सीएम केजरीवाल ने कहा कि हम सुनते हैं कि ध्यान से ऊर्जा निकलती है. हमें खुशी है कि दिल्ली के स्कूलों में 18 लाख बच्चे मेडिटेशन से दिन की शुरुआत करते हैं. आज अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका भूटान और यूएस से भी लोग हैप्पीनेस क्लास देखने आ रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति की बीवी भी हैप्पीनेस कलास में आई थीं थोड़ी देर के लिए आई थी. आज दिल्ली ने यह जिम्मेदारी ली है, कल देश और दुनिया भी यह जिम्मेदारी लेगा कि हम समाज को अच्छे इंसान दें.

जब हम दुनिया से जाएं तो दुनिया रोए और हम हंसे

वहीं सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हमें हैप्पीनेस क्लासेज चलाते हुए 4 साल हो गए हैं. हमारी शिक्षा क्रांति के 3 चरण हैं. शुरुआत में शिक्षा का बहुत बुरा हाल था, रिजल्ट नहीं आते थे. एक बच्चे से पूछा कि बच्चे तो देश का भविष्य होते हैं तो उसने कहा कि प्राइवेट स्कूलों के बच्चों का. आज 5 साल बाद वही बच्चा कहता है कि सरकारी स्कूलों के बच्चों का भी भविष्य है. सबसे पहले हमने स्कूलों की बिल्डिंग को ठीक किया, दिल्ली सरकार के बजट का 25% शिक्षा पर होता है, आज तक तकरीबन 90 हज़ार करोड़ खर्च कर चुके हैं. सीएम ने कहा कि ऐसा होना चाहिए कि जब हम दुनिया से जाएं तो दुनिया रोए और हम हंसे.

बच्चों के ऊपर पढ़ाई का प्रेशर बहुत है

आज बच्चों के ऊपर बहुत प्रेशर है, कंपटीशन बहुत है, हैप्पीनेस और एंटरप्रेन्योरशिप कोर्स से एकेडमिक प्रेसर बहुत कम हो जाता है. 13 साल की आठवीं में पढ़ने वाली उपेक्षा के पिता प्लंबर है, ऐसे बैक ग्राउंड के बच्चे हैप्पीनेस कलास में आते हैं. आज जगह-जगह बच्चे आत्महत्या करते हैं, शुक्र है दिल्ली में ऐसा नहीं हो रहा है. 

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