घर बेचा-जेवरात बेचे, लेकिन नहीं रोकी मुहिम…लोगों को फ्री हेलमेट बांटने के लिए इस शख्स ने खर्च कर दी पूरी कमाई

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नई दिल्ली 09 अप्रैल 2023। हेलमेट मैन ऑफ इंडिया- राघवेंद्र कुमार अब तक 22 राज्यों में 50 हजार से भी ज्यादा हेलमेट बांट चुके हैं। राघवेंद्र कुमार का कहना है कि वह नहीं चाहते कि देश में कोई भी व्यक्ति बिना हेलमेट के बाइक या स्कूटी चलाए, क्योंकि ऐसा करके वह खुद की जान ही जोखिम में डालते हैं। भारत में हर साल कई हजार मौतें सिर्फ इसलिए होती हैं क्योंकि हादसे के समय कईयों ने हेलमेट नहीं पहना हुआ था।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की एक रिपोर्ट मुताबिक 2021 में कुल 46,593 लोग बिना हेलमेट के सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए थे. इनमें से 32,877 चालक और 13,716 यात्री थे। 2021 में कुल 4,12,432 सड़क हादसे हुए हैं, जिनमें से 1,28,825 नेशनल हाईवे पर हुए हैं। 2020 की तुलना में 2021 में सड़क दुर्घटनाओं में 12.6% की वृद्धि हुई। इसी में कमी लाने के लिए राघवेंद्र पिछले 9-10 साल से हेलमेट बांटने की मुहीम चला रहे हैं। बिहार के कैमूर जिले के मूल निवासी राघवेंद्र कुमार ने ये हेलमेट लगाने वाली बात तब समझी जब 2014 में उनके एक दोस्त की दिल्ली में बाइक एक्सीडेंट में मौत हुई।

एक्सीडेंट में गंवाया दोस्त

राघवेंद्र ने बताया कि 2014 में उनका एक दोस्त नोएडा से ग्रेटर नोएडा आ रहा था जिसका एक्सीडेंट हो गया था। उस वक्त उसने हेलमेट नहीं पहना था, उसके सर में चोट लगी थी। 8 दिन वो वेंटिलेटर पर रहा, लेकिन बच नहीं पाया। जब उसे हॉस्पिटल लेकर गए तो सभी यही कह रहे थे कि शायद इसकी जान हेलमेट पहनने से बच सकती थी। तब मुझे लगा कि हर साल इतने लोग सिर्फ इसलिए मर जाते हैं क्योंकि वो हेलमेट नहीं पहने होते हैं। तब मैंने सोचा कि क्यों न हेलमेट को लेकर लोगों को जागरूक किया जाए। राघवेंद्र कहते हैं कि उन्होंने इस मिशन की शुरुआत 2014 में की थी, जिसका उद्देश्य हेलमेट के उपयोग के बारे में जागरूकता पैदा करना था ताकि कम से कम इस देश की आने वाली पीढ़ियां लापरवाही के कारण सड़कों पर अपनी जान न गंवाएं। अधिकतर उन लोगों को मैंने हेलमेट बांटा है जो युवा थे, इन 56 हजार लोगों में से ऐसे 30 लोगों को तो मैं जानता हूं जिनकी हेलमेट की वजह से जान बची है, मेरे लिए कामयाबी यही है कि मैंने इतने लोगों की जान बचाई।


कमाई और बचत खत्म हो गई

इस मुहिम में लोगों की जान तो बची लेकिन राघवेंद्र की कमाई और बचत खत्म हो गई। यहां तक ​​कि कर्ज चुकाने के लिए उन्हें दिल्ली में अपना घर भी बेचना पड़ा लेकिन उन्होंने अपने मिशन को नहीं छोड़ा। इसे लेकर राघवेंद्र कहते हैं कि कुछ समय पहले एक घर खरीदा था लेकिन 2018 में मुझे उसे बेचना पड़ा। हालांकि, मेरे इस फैसले से कोई खुश नहीं था क्योंकि उनके मुताबिक ये पागलपन वाली बात थी। बीच में भी मुझे पैसों की जरूरत पड़ी तो मेरी पत्नी ने मेरा साथ दिया, उन्होंने अपने जेवरात तक भी दे दिए। मेरे पास 14 बिटकॉइन थे जो मुझे बेचने पड़े थे जिनसे मैं 70-75 लाख रुपए इकट्ठे कर पाया था लेकिन मैंने अपनी मुहीम नहीं रोकी।

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