
इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 23 अप्रैल 2023। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गंभीर मामलों, जिनमें उम्रकैद के साथ मौत की सजा का भी विकल्प हो, निचली अदालतें अभियुक्तों को उनकी प्राकृतिक मौत तक के लिए उम्र कैद की सजा नहीं दे सकती हैं। निचली अदालतों को निश्चित अवधि के लिए छूट (पैरोल, छूट या फरलो) के हक के बिना भी आजीवन कारावास की सजा देने का अधिकार नहीं है। ऐसी सजा देने का अधिकार सिर्फ सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को ही है। जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस एस रविंद्र भट की पीठ अपहरण और हत्या के मामले में दिल्ली की एक निचली अदालत से बिना छूट के 30 वर्ष कैद की सजा पाए दोषियों विकास चौधरी और विकास सिद्धू की अपील पर सुनवाई कर रही थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था।
शीर्ष अदालत के फैसले का लिया संज्ञान
पीठ ने भारत संघ बनाम श्रीहरन व मुरुगन और अन्य (2015) 14 एससीआर 613 मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का संज्ञान लिया।
अभियुक्तों की सजा को 20 साल कैद में बदला
हालांकि, पीठ ने कहा कि श्रीहरन (2015) में शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के विशेष या निश्चित अवधि की सजा देने का अधिकार केवल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को ही है। पीठ ने कहा कि श्रीहरन मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के मद्देनजर निचली अदालत को इस तरह का फैसला देने का अधिकार ही नहीं है। पीठ ने अपील को स्वीकार कर लिया और दोषियों को दी गई सजा को कम करते हुए कम से कम 20 साल के वास्तविक कारावास में बदल दिया।
कैबिनेट कमेटी के फैसले को मानना राज्य के नियमों का उल्लंघन नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कैबिनेट एक समिति का गठन करती है और समिति के कार्यों को मंत्रिपरिषद की ओर से मान्य किया जाता है तो यह दावा नहीं किया जा सकता है कि राज्य सरकार ने निर्णय लेने की प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं किया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कैबिनेट समिति के फैसले को रद्द करने के राजस्थान हाईकोर्ट के निर्णय को खारिज कर दिया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने राजस्थान औद्योगिक विकास और निवेश निगम लिमिटेड बना मैसर्स अरफत पेट्रोकेमिकल्स प्रा. लि. एवं अन्य के मामले का निपटारा करते हुए कैबिनेट की ओर से गठित की गई उपसमिति के निर्णय को सही ठहराया। पीठ ने कहा कि उपसमिति अपने कार्यों का निर्वहन करते हुए केवल संपूर्ण मंत्रिपरिषद की ओर से कार्य कर रही थी और इस प्रकार नियमों का अनुपालन किया गया।
क्या था मामला
राजस्थान सरकार ने 1958 में जेके सिंथेटिक लिमिटेड को कोटा औद्योगिक क्षेत्र में बड़ा भूखंड लीज पर दिया था। 1998 में जेकेएसएल बीमार कंपनी घोषित हो गई और औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण अपीलीय प्राधिकरण के आदेश पर अरफत पेट्रोकेमिकल्स ने उसका अधिग्रहण कर लिया, जिसके बाद जेकेएसएल को आवंटित जमीन की लीज नई कंपनी के नाम हस्तांतरित हो गई। बाद में जेकेएसएल की औद्योगिक इकाइयों को पुनर्जीवित करने में नाकाम रहने पर अरफत ने भू-उपयोग बदलने के लिए राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं निवेश निगम लिमिटेड को आवेदन किया, जिसे मंजूरी दे दी गई। 2018 में सरकार बदली तो पिछली सरकार के आखिरी छह महीने के कार्यों की जांच हुई। जांच समिति की सिफारिश के बाद सरकार ने आरआईआईसीओ को अरफत पेट्रोकेमिकल्स को भू उपयोग बदलने की मंजूरी को रद्द करने का निर्देश दिया।