
इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 17 मार्च 2024। देश में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए मचे सियासी घमासान के बीच पहले से ही नागरिकता संशोधन कानून, इलेक्टोरल बांड और चुनाव आयोग में नियुक्तियों को लेकर माहौल गरमाया हुआ है। इसी चुनावी माहौल के बीच कई अहम मुद्दों में ‘एक देश-एक चुनाव’ का मामला भी जनता का ध्यान आकर्षित कर रहा है। यहां आपको बता दें कि यदि लोकसभा चुनाव के बाद बनने वाली कोई भी केंद्र सरकार यदि 2029 में लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव लागू करने का निर्णय लेती है, तो यह प्रक्रिया 2024 के लोकसभा चुनाव समाप्त होते ही शुरू हो जाएगी। इसके चलते लोकसभा और विधानसभाओं की अवधि पर संवैधानिक प्रावधानों में संशोधन किया जाएगा और राज्य विधानसभाएं अपने पांच साल के अंत से बहुत पहले 2029 में भंग हो जाएंगी।
समिति ने केंद्र पर छोड़ा फैसला
‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट का विश्लेषण करते हुए एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च स्तरीय समिति ने यह निर्णय केंद्र पर छोड़ दिया है कि वह एक साथ चुनाव के लिए कब तैयार हो सकती है। यदि केंद्र पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के नेतृत्व वाले पैनल की सिफारिशों को स्वीकार कर लेता है तो एक बार के लिए यह परिवर्तन लाजमी हो जाएगा।
इन 10 राज्यों में 1 साल ही चलेंगी सरकारें
मीडिया रिपोर्ट में कहा गया गया है कि जिन 10 राज्यों को पिछले साल नई सरकारें मिलीं, उनमें 2028 में फिर से चुनाव होंगे और नई सरकारें लगभग एक साल या उससे कम समय तक सत्ता में रहेंगी। इन राज्यों में हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, तेलंगाना, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान शामिल हैं।
इन राज्यों में 2-3 साल की संभावित सत्ता
इसके अलावा उत्तर प्रदेश, पंजाब और गुजरात में 2027 में फिर से चुनाव होंगे, लेकिन इन राज्यों में किसी भी राजनीतिक दल की बनने वाली सरकारें 2 या उससे कम समय के लिए ही अस्तित्व में रहेंगी। इसी तरह 2026 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल में भी चुनाव होंगे। ये ऐसी सरकारें होंगी जो विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलने की स्थिति में भी तीन साल तक चलेंगी।
यहां पूरे हो सकते हैं पांच साल
इस साल केवल अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा में ही चुनाव होने हैं। इसलिए ये सरकारें 2029 में संभावित ‘एक देश-एक चुनाव’ के वक्त अपने पांच साल या उससे कम समय रह सकेंगी।
इन अनुच्छेदों में होगी संशोणध की जरुरत
उच्च स्तरीय समिति ने लोकसभा की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83 में संशोधन की सिफारिश की है, ताकि संविधान का उल्लंघन न हो। इसके साथ ही समिति ने अनुच्छेद 172 में भी संशोधन को जययरी बताया है, क्योंकि यह भी विधानसभा की अवधि से संबंधित है। यदि संशोधन संसदीय अनुमोदन प्राप्त करने में विफल रहते हैं, तो अधिसूचना अमान्य हो जाएगी। यदि संशोधनों को अपनाया जाता है, तो एक साथ चुनाव एक वास्तविकता बन जाएंगे।
लोकसभा की पहली बैठक में ही करना होगा तय
रिपोर्ट कहती है कि आम चुनावों के बाद लोकसभा की पहली बैठक के दिन राष्ट्रपति एक अधिसूचना के जरिए इस अनुच्छेद के प्रावधान को लागू कर सकते हैं। इस दिन को “निर्धारित तिथि” कहा जाएगा। एक बार यह तिथि तय हो जाने पर इस तिथि के बाद गठित सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल की समाप्ति के साथ समाप्त हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि ये राज्य सरकारें पांच साल तक नहीं टिकेंगी, भले ही उन्हें बहुमत प्राप्त होगा।
देश में पहले भी एक साथ हुए हैं चुनाव
एक देश एक चुनाव कोई अनूठा प्रयोग नहीं है। चूंकि 1952, 1957, 1962, 1967 में ऐसा हो चुका है, जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे। यह क्रम तब टूटा जब 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएं विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग कर दी गई। आपको बता दें कि 1971 में लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे। जाहिर है जब इस प्रकार चुनाव पहले भी करवाए जा चुके हैं तो अब करवाने में केंद्र को किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।
पक्ष और विपक्ष के तर्कों का विश्लेषण जरूरी
एक तरफ जहां कुछ जानकारों का मानना है कि अब देश की जनसंख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है, लिहाजा एक साथ चुनाव करा पाना संभव नहीं है, तो वहीं दूसरी तरफ कुछ विश्लेषक कहते हैं कि अगर देश की जनसंख्या बढ़ी है तो तकनीक और अन्य संसाधनों का भी विकास हुआ है। इसलिए एक देश एक चुनाव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। किन्तु इन सब से इसकी सार्थकता सिद्ध नहीं होती, इसके लिए हमें इसके पक्ष और विपक्ष में दिए गए तर्कों का विश्लेषण करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश भी सहमत
गौरतलब है कि एक देश एक चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सभी चार पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबडे और जस्टिस यूयू ललित से परामर्श करने वाले पैनल ने लिखित प्रतिक्रियाएं दीं, जिनमें से सभी एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में दिखे हैं। वहीं दूसरी ओर हाईकोर्ट के तीन पूर्व चीफ जस्टिस और एक पूर्व राज्य चुनाव आयुक्त ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के विचार पर आपत्ति जताई है। ‘एक देश, एक चुनाव’ पर कमेटी ने 62 पार्टियों से संपर्क किया था, जिनमें से 47 ने जवाब दिया। इसमें 32 पार्टियों ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया, जबकि 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया और 15 पार्टियों ने इसका जवाब नहीं दिया।