रकार ने मांगी जांच जारी रखने की इजाजत, अगली सुनवाई 22 जुलाई को
इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 14 जुलाई 2012। आंध्र प्रदेश सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अमरावती भूमि घोटाला मामले में अगर जांच को फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाती है, तो वह सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश की बेटियों और एक पूर्व एडवोकेट जनरल के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगी।
राज्य सरकार ने इस भूमि घोटाले की जांच फिर से शुरू करने की मांग की। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा निगरानी की गई भूमि मामले की जांच पर सहमति व्यक्त की। मालूम हो कि आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने सितंबर 2020 में जांच पर रोक लगा दी गई थी। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। आंध्र प्रदेश की जगनमोहन रेड्डी सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ के समक्ष कहा, राज्य सरकार की ओर से कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार भी चाहती है कि एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा जांच की निगरानी की जाए।
धवन ने पीठ से गुहार लगाई कि इस मामले को वापस हाईकोर्ट भेज दिया जाए और वहां इस मामले को विस्तार से सुना जाए। साथ ही जांच जारी रखने देना चाहिए। धवन ने कहा कि फिलहाल सभी कुछ बहुत ही प्रारंभिक चरण है और इसे हाईकोर्ट में सुना जाना चाहिए न कि सुप्रीम कोर्ट में। धवन ने पूर्व एडवोकेट जनरल दम्मलपति श्रीनिवास द्वारा आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष दाखिल याचिका को चुनाव हारने वाले राजनीतिक दल की प्रतिशोध याचिका करार दिया।
जवाब में श्रीनिवास की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने राज्य सरकार के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट को सभी मुद्दों पर विचार करना चाहिए और अंतिम फैसला देना चाहिए। साल्वे ने कहा, मेरे मुवक्किल राज्य के पूर्व एडवोकेट जनरल रहे हैं। यह मामला और कुछ नहीं बल्कि शासन में बदलाव के बाद बदला लेने जैसी बात है। यह मामला करीब एक वर्ष से इस अदालत में लंबित है। फैसला कुछ भी हो सकता है लेकिन मैं चाहता हूं कि इस अदालत द्वारा सभी मुद्दों पर फैसला किया जाए। इस पर पीठ ने कहा कि वह मामले की सुनवाई करने से पीछे नहीं हट रही है। पीठ ने कहा, अगर यह एक हाई-प्रोफाइल मामला नहीं होता तो हम हाईकोर्ट में वापस जाने के लिए कहते और याचिका दाखिल करने वाले वकील को बहुत सी बातें कहते।
इस पर धवन ने कहा कि स्थिति ऐसी थी कि राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।धवन ने कहा, एफआईआर 15 सितंबर की सुबह दर्ज की गई थी और शाम को सब कुछ रोक दिया गया था। इसके बाद पीठ ने सुनवाई को 22 जुलाई के लिए टाल दिया। उस दिन पीठ यह तय करेगी कि क्या कुछ शर्तों के साथ जांच को फिर से शुरू करने के लिए राज्य सरकार की प्रार्थना पर विचार किया जा सकता है? मालूम हो कि राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा दर्ज प्राथमिकी में 13 लोगों को नामजद किया गया था जिनमें सुप्रीम कोर्ट के एक जज की दो बेटियां और श्रीनिवास शामिल हैं। आरोप है कि उन्होंने अमरावती क्षेत्र में जमीन खरीदी क्योंकि वे इस गोपनीय जानकारी से वाकिफ थे कि अमरावती को राज्य की राजधानी चुना जाना है।