मिशन 2022 के लिए BJP ने ढूंढ लिया है ‘जीत का फॉर्मूला’, यूपी चुनाव में यह होगी पार्टी की रणनीति

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नई दिल्ली 17 जुलाई 2021। यूपी के पंचायत चुनाव में जीत का झलक दिखा चुकी भारतीय जनता पार्टी मिशन 2022 को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। कभी केवल सवर्णों की पार्टी माने जाने वाली भाजपा जीत की निरंतरता को बनाए रखने के लिए 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ही अपनी रणनीति में लगातार बदलाव करती दिखी है। हाल के समय में बीजेपी ने खुद को पिछड़ों की पार्टी के रूप में पेश करने का हर संकेत दिया है और उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर यह कहानी और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। कभी सपा-बसपा की वोट बैंक माने जाने वाली पिछड़ी जातियों में पिछले काफी समय से भाजपा ने भी सेंधमारी शुरू कर दी है। 

साल 2014 के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी गैर-यादव ओबीसी जातियों जैसे कुर्मी, कुशवाहा, लोध, जाट और कुछ अन्य छोटी जातियों को अपने वोटबैंक में जोड़ने में सफल रही है। 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा ओबीसी मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ को और मजबूत करना चाहती है। पिछड़े समुदाय के प्रति भाजपा की रणनीति इसलिए भी अहम है, क्योंकि राज्य की लगभग 40% आबादी ओबीसी है।  23 जुलाई को नई दिल्ली में बीजेपी ओबीसी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक है। माना जा रहा है कि इस बैठक में यूपी में ओबीसी के बीच पैर जमाने का मुद्दा उठाए जाने की संभावना है। ओबीसी समुदाय पर भाजपा की पकड़ कमजोर न हो जाए, इसलिए पार्टी अभी से ही रणनीति बनाने में जुट गई है। भाजपा ओबीसी मोर्चा के प्रेसीडेंट के लक्ष्मण ने कहा कि पीएम मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में 27 ओबीसी मंत्री बनाए हैं और इसने समुदाय को विश्वास दिलाया है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान हम आगामी विधानसभा चुनावों सहित कई चीजों पर चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा कि ओबीसी मोर्चा चुनाव वाले राज्यों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 

वहीं, यूपी भाजपा ओबीसी मोर्चा के प्रेसीडेंट नरेंद्र कश्यप ने कहा कि उत्तर प्रदेश में भाजपा ओबीसी के बीच पहली पसंद रही है। इस बार हमारी रणनीति केंद्र और राज्य में बीजेपी सरकारों द्वारा किए गए कार्यों को उजागर करने के लिए संगठनात्मक पहुंच के माध्यम से ओबीसी के बीच और पैठ बनाने की है। पार्टी सूत्रों ने कहा कि भाजपा का ज्यादातर ध्यान गैर-यादव ओबीसी पर है, जो राज्य की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा हैं। अलग-अलग इन जातियों की संख्या कम है, मगर साथ में इनका आकार बड़ा हो जाता है।

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