
इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 04 दिसंबर 2023। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जीत हासिल कर भाजपा ने कांग्रेस से बीते चुनाव का बदला ले लिया है। इन नतीजों ने भले ही मुद्दों के सवाल पर विपक्ष को भ्रमित कर दिया है, मगर भाजपा इसे ब्रांड मोदी के साथ हिंदुत्व और विकास की राजनीति के और मजबूत होने के रूप में देख रही है। नतीजों ने तय कर दिया है कि भाजपा के लिए चंद महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में यही सबसे अहम मुद्दा होगा। इन चुनावों में भाजपा ने न सिर्फ स्थानीय समीकरणों का ध्यान रखा, बल्कि हिंदुत्व और स्थानीय मुद्दों के बीच बेहतरीन संतुलन साधा। किसी तरह की घोषणा करते समय सही मौके का चुनाव किया। पार्टी का सामूहिक नेतृत्व और केंद्रीय राजनीति के दिग्गजों के साथ मैदान में उतरने का दांव भी सही बैठा। खासतौर से मध्य प्रदेश के नतीजे बताते हैं कि पार्टी ने जिन सात केंद्रीय नेताओं को मैदान में उतारा, उसका सकारात्मक असर आसपास की सीटों पर भी पड़ा।
गेमचेंजर घोषणाएं
पीएम मोदी की दो घोषणाएं गेमचेंजर साबित हुईं। आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनाव से पूर्व पीएम ने इस वर्ग के लिए 24,000 करोड़ की पीएम जनमन योजना की घोषणा की। घोषणा करने के लिए झारखंड में बिरसा मुंडा के जन्मस्थान को चुना। छत्तीसगढ़ में 80 करोड़ गरीबों से जुड़ी मुफ्त अनाज योजना को पांच साल का विस्तार दिए जाने की घोषणा की। इसका गरीबों, आदिवासियों और खातसौर से महिला मतदाताओं पर बेहद सकारात्मक असर पड़ा। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में महिला मतदान में बड़ा उछाल इसका उदाहरण है।
शाह का माइक्रो मैनेजमेंट
तीनों ही राज्यों में गृह मंत्री अमित शाह ने बेहतर बूथ प्रबंधन किया। समर्थक मतदाताओं को हर हाल में समय रहते बूथ पर पहुंचाने का ढांचा तैयार किया। कांग्रेस प्रभाव वाले बूथों पर बढ़त हासिल करने की योजना तैयार की। नाराजगी की काट के लिए विधायकों के टिकट काटे।
जैसे मुद्दे..प्रचार में वैसे नेता
पार्टी ने मुद्दों के हिसाब से अलग-अलग नेताओं को प्रचार के लिए उतारा। हिंदुत्व की राजनीति को धार देने के लिए उत्तर प्रदेश और असम के सीएम को मैदान में उतारा। विकास के मुद्दे के लिए खुद पीएम मैदान में थे, जबकि स्थानीय मुद्दों के लिए स्थानीय नेताओं का सहारा लिया गया।
कारगर रही स्थानीय मुद्दों की चर्चा से बचने की रणनीति
पार्टी सूत्र ने बताया कि चेहरे के साथ मैदान में उतरने के कारण विपक्ष के कुछ मुद्दों को महत्व मिलने की आशंका थी। मसलन मध्य प्रदेश में शिवराज और राजस्थान में वसुंधरा के खिलाफ विपक्ष ने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा रखा था। सामूहिक नेतृत्व में चुनाव में उतरने से विपक्ष की योजना परवान नहीं चढ़ पाई।
ओबीसी कार्ड का काट भी मिला
विपक्ष के ओबीसी कार्ड का मुकाबला पीएम की ओर से बताई गई जाति के आधार पर किया। नतीजों से साफ हो गया कि उसका ये दांव काम कर गया। बीते दिनों पीएम ने कहा था कि उनके लिए महिला, गरीब, किसान और युवा ही देश की चार जातियां हैं। इससे यह संकेत भी मिलता है कि भाजपा और मोदी सरकार विपक्ष के जाति जनगणना के दांव से दबाव में नहीं आएगी।
सीएम का चेहरा कौन…ऐसे कई सवालों के जवाब आने बाकी
सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने वाली भाजपा के लिए अब चुनौती मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरे का चुनाव करना है। नतीजों ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में क्रमश: शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह और वसुंधरा की पैठ को साबित किया है। ऐसे में सवाल है कि क्या भाजपा नेतृत्व इन राज्यों में इन्हीं पुराने चेहरों पर भरोसा जताएगी या नए चेहरे पर दांव लगाएगी। वह भी तब जब कुछ ही महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैंं। राजस्थान में टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार तक वसुंधरा की ओर से सीएम पद की दावेदारी नहीं छोड़ने के कई बार संकेत आए हैं। इसके इतर पार्टी ने हिंदीपट्टी के तीन राज्यों में राष्ट्रीय राजनीति के कई कद्दावर चेहरे को मैदान में उतारा है। इनमें सभी को जीत हासिल हुई है। ऐसे में सवाल यह भी है कि पुराने चेहरे पर दांव लगाने की स्थिति में इन दिग्गज नेताओं के साथ पार्टी कैसे संतुलन बैठाएगी।