इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 13 फरवरी 2024। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि सबको साथ ले कर चलने की भारत की परंपरा और दर्शन दुनिया को जीतना नहीं जोड़ना सिखाती है। हमारी सामूहिक शक्ति दुनिया जीतने के लिए नहीं बल्कि उसे शांति की राह में ले जाने के लिए है। उन्होंने कहा, भोग को सत्य मानने के कारण अलग-अलग मोर्चे पर बेहाल दुनिया अब भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। जिसने देखा है कि भारत ने कैसे अपने महान दर्शन और परंपराओं के सहारे क्रांति की जगह शांति और उत्क्रांति से बेहतर व्यवस्था का निर्माण किया था।
भगवान महावीर के 2550वें निर्वाण दिवस पर आयोजित कल्याणक महोत्सव में भागवत ने कहा कि सच्चे और शाश्वत सुख की तलाश में भारत व दुनिया की धारा अलग थी। दुनिया ने भोग को ही शाश्वत सच मान कर प्रतिस्पर्धा वाली व्यवस्था की नींव रखी। जहां आज भी जंगल का कानून चलता है। वहीं भारतीय परंपरा और दर्शन ने आंतरिक सुख की खोज की।
देश में एकता की ही विविधता
भागवत ने कहा कि हम न मानने और मानने वालों में भेद करने वालों में नहीं हैं। इसलिए सही अर्थों में देश में विविधता में एकता नहीं बल्कि एकता की ही विविधता है। देश में अलग-अलग वर्ग-संप्रदाय हैं। हालांकि शाश्वत सुख और आंतरिक सुख की सबकी परिभाषा एक है। इसलिए हम जीव में भेद नहीं करते।
राम फिर आए हैं
संघ प्रमुख ने कहा कि देश में रामराज की चर्चा होती है। कहा जाता है कि अयोध्या में कलह नहीं होता। जिस दिन मंथरा के द्वारा कलह की शुरुआत हुई, भगवान राम वनवास के लिए चले गए। भरत ने उनके सिंहासन पर चरण पादुका रख कर राज किया। भरत की पादुका बुद्धि टिकी रही तो राम 14 साल बाद वापस लौट आए। अब सैकड़ों साल बाद फिर भगवान राम आए हैं। ऐसे में हमें उन्हीं के रास्ते पर आगे चलने का संकल्प लेना है।