इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 19 जनवरी 2025। वैश्विक ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन सैश का मानना है कि इस बार के बजट में ग्रामीण इलाकों से जुड़ी योजनाओं का आवंटन बढ़ सकता है। इसमें कल्याणकारी योजनाओं से लेकर अन्य योजनाएं शामिल होंगी। हालांकि, आगे ऐसी योजनाओं पर सरकार के खर्च की वृद्धि दर जीडीपी वृद्धि दर से कम रह सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा होता है तो इससे गांव के लोगों की आय में सुधार होगा और खर्च भी बढ़ेगा। लेकिन इसके साथ बचत बढ़ाने की भी जरूरत है। जैसे-जैसे ग्रामीण भारतीयों की आय में सुधार होगा, ग्रामीण उपभोग में भी वृद्धि होने की संभावना है, लेकिन ग्रामीण विकास में भी तेजी आनी चाहिए। आय बढ़ने के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में बचत बढ़नी चाहिए और जमा राशि में वृद्धि की संभावना को देखते हुए बैंकिंग क्षेत्र शाखा विस्तार करने के लिए और प्रयास करेंगे। जब आय में सुधार होगा, तो लोग परिवार के भविष्य के बारे में सोचेंगे, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बीमा की पहुंच बढ़ने की गुंजाइश है।
ग्रामीण जीवन सुधार के लिए कई निवेश
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी में फंड मैनेजर प्रियंका खंडेलवाल कहती हैं कि ग्रामीण भारत विकास गाथा का अभिन्न अंग है क्योंकि हमारी कामकाजी उम्र की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इसी इलाके में है। देश की 64% आबादी गांवों में रहती है और अर्थव्यवस्था में इसका लगभग आधा योगदान है। पिछले दशक में सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर में सुधार के लिए कई निवेश किए गए हैं और इससे बहुत लोगों को गरीबी रेखा से बाहर लाया गया है। सामाजिक कल्याण में सुधार के लिए सभी निवेशों के बावजूद, रोजगार के लिए कृषि पर बहुत अधिक निर्भरता के कारण पिछले कुछ वर्षों में समग्र स्तर पर ग्रामीण आय में अच्छा प्रदर्शन नहीं हुआ है।
आजीविका के लिए कृषि पर ज्यादा निर्भरता
एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) के पंजीकृत सलाहकार विकास आनंद कहते हैं, पिछले दस वर्षों में गैर-कृषि नौकरियों में कार्यरत लोगों के जीवन में कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है। आजीविका के लिए कृषि पर निर्भरता अधिक थी क्योंकि कृषि आय वृद्धि सीमाबद्ध थी। शहरी आय वृद्धि बेहतर रही है।
- यही कारण है कि शहरी भारत ने ग्रामीण भारत की तुलना में आय और उपभोग वृद्धि के मामले में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है।
गैर-कृषि नौकरियों के लिए बेहतर दृष्टिकोण
इस दशक में ग्रामीण भारत के लिए दृष्टिकोण अलग हो सकता है, क्योंकि गैर-कृषि नौकरियों के लिए दृष्टिकोण बेहतर दिख रहा है। घरेलू जरूरतों के साथ-साथ निर्यात के लिए भारत के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ाने पर जो जोर दिया जा रहा है, उसमें गैर-कृषि नौकरियों की उपलब्धता में सुधार करने की क्षमता है। लाडली बहना जैसी योजनाएं ग्रामीण उपभोग और/या बचत के लिए अच्छा संकेत हैं। ग्रामीण प्रति व्यक्ति आय भी उस मोड़ के करीब है जहां से गैर-खाद्य खपत बढ़नी चाहिए। जो कंपनियां इन ग्राहकों की सेवा पर ध्यान केंद्रित करती हैं उन्हें बेहतर विकास संभावनाओं से लाभ हो सकता है।