बाला साहेब को श्रद्धांजलि देने पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, शिवसेना के समर्थकों ने की नारेबाजी

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

मुंबई। बालासाहेब ठाकरे की स्मृति सभा में शिवसेना के अलावा भाजपा के नेता भी श्रद्धांजलि देने पहुंचे। कार्यक्रम में शामिल हुए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को वापस आते वक्त शिवसैनिकों की ओर से नारेबाजी का सामना करना पड़ा।

बालासाहेब को श्रद्धांजलि देने के बाद जब फडणवीस कार्यक्रम स्थल से वापस जा रहे थे, तभी उन्हें शिवसैनिकों की नारेबाजी का सामना करना पड़ा। कार्यकर्ता उनके सामने नारे लगा रहे थे- ‘सरकार किसकी? शिवसेना की।’ बता दें कि कार्यक्रम में फडणवीस के अलावा पंकजा मुंडे और विनोद तावड़े में शामिल हुए।

इसके साथ ही एनसीपी नेता छगन भुजबल और जयंत पाटिल, शिवसेना नेता संजय राउत और अरविंद सावंत ने बाला साहेब को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान एक बार फिर से संजय राउत ने कहा कि महाराष्ट्र में शिवसेना पार्टी की तरफ से ही मुख्यमंत्री होगा। 

देवेंद्र फडणवीस ने अर्पित की श्रद्धांजलि

देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट कर बाला ठाकरे की तारीफ की। उन्होंने कहा कि बाला साहेब से सभी को सीखना चाहिए। महाराष्ट्र में बाला ठाकरे की पुण्यतिथि पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। उद्धव ठाकरे के साथ शिवसेना के नेता मुबंई में कई कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। बता दें कि 1996 में शिवसेना की स्थापना करने वाले बाला ठाकरे ने 17 नवंबर 2012 को दुनिया को अलविदा कह दिया था।

छगन भुजबुल ने कही ये बात

एनसीपी नेता छगन भुजबुल ने कहा कि बाला साहेब ठाकरे से उनकी बहुत पुरानी यादें जुड़ी हैं। इसके साथ ही  उन्होंने कहा कि राज्य में सरकार बनाने की कोशिश जारी है। उधर, एनसीपी मुखिया शरद पवार ने ट्वीट कर कहा कि बाला साहेब ठाकरे ने जो कदम उठाए उससे मराठी समुदाय गर्व महसूस करता है। साथ ही उन्होंने कहा कि बाला साहेब ने हमेशा समाजवाद को प्राथमिकता दी ।  

बाला साहेब का जीवन

बाला साहेब को बाल केशव ठाकरे के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 23 जनवरी 1926 को पूणे में हुआ। ठाकरे ने अपने करियर की शुरूआत  मुंबई में फ्री प्रेस जनरल में एक कार्टूनिस्ट के तौर पर की थी। उनका कार्टून टाइम्स ऑफ इंडिया के रविवार अंक में प्रकाशित होता था। 

नॉन मराठी समुदाय के लोगों का करते थे विरोध

महाराष्ट्र में नॉन मराठी समुदाय के लोगों की बसावट पर भी ज्यादातर ठाकरे विरोध करते थे। उनका टारगेट ज्यादातर साउथ इंडियन के लोग रहे। काफी समय बाद ठाकरे ने अपना अखबार चलाना शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने शिवेसना की स्थपना की।  

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