ओएनजीसी में हिस्सेदारी बेचेगी सरकार

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नई दिल्ली 30 मार्च 2022। एलआईसी के आईपीओ में देरी के बीच भारत सरकार ने विनिवेश कार्यक्रम के तहत अब ओएनजीसी में हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया है. योजना कंपनी में 1.5 प्रतिशत तक हिस्सेदारी बेच कर करीब 3000 करोड़ रुपए कमाने की है.ओएनजीसी ने स्टॉक एक्सचेंज को दी जानकारी में बताया है कि इसके लिए ऑफर फॉर सेल यानी बिक्री पेशकश 30 मार्च को खोली जाएगी और 31 मार्च को बंद कर दी जाएगी. इस दौरान कंपनी के करीब 9.43 करोड़ शेयर बिक्री के लिए पेश किए जाएंगे. ये कंपनी की कुल पेड-अप इक्विटी शेयर पूंजी के 0. 75 प्रतिशत के बराबर है. अगर अधिक बोली आई तो करीब 9.43 करोड़ अतिरिक्त इक्विटी शेयर भी बेचे जा सकते हैं. बोली शुरू करने के लिए हर शेयर का मूल्य 159 रुपए रखा गया है. ओएनजीसी ने बताया कि यह मूल्य बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में कंपनी के शेयर के मौजूदा भाव से सात प्रतिशत कम है. मंगलवार को भाव 171.05 रुपए था.

(पढ़ें: श्रमिक संघों ने किया भारत बंद का आह्वान) ओएनजीसी भारत सरकार की सबसे बड़ी कच्चा तेल और गैस की कंपनी है. यह एक महारत्न कंपनी है जिसका भारत में तेल और गैस के कुल उत्पादन में 71 प्रतिशत का योगदान है. केंद्र सरकार की इसमें 60.41 प्रतिशत हिस्सेदारी है. सरकारी संपत्ति बेचे जाने पर विवाद अगर बिक्री पेशकश सफल रही तो भारत सरकार को कई मुश्किलों से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रबंधन में मदद मिलेगी. सरकारी खजाने के लिए संसाधन जुटाने के लिए सरकार ने विनिवेश का कदम उठाया था. (पढ़ें: आईपीओ के साथ भी, आईपीओ के बाद भी: साथ निभाएगा एलआईसी का शेयर?) 2020-21 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी उपक्रमों में हिस्सेदारी बेच कर और कुछ उपक्रमों का निजीकरण कर 2,100 अरब रुपए कमाने का लक्ष्य रखा था।

इसके तहत सरकार ने मार्च में ही जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का आईपीओ लाने की भी तैयारी कर ली थी लेकिन बाजार में दिख रही मंदी की वजह से उसे टाल दिया गया. लेकिन इसके टल जाने से सरकार इस वित्त वर्ष का विनिवेश का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएगी, जिसका असर वित्तीय घाटे पर पड़ेगा. सरकार को उम्मीद है कि ओएनजीसी की बिक्री पेशकश से इसकी कुछ हद तक भरपाई हो पाएगी. (पढ़ें: सरकारी कंपनियों को बेचने से किसे फायदा होता हैः जर्मनी का अनुभव) दूसरी तरफ सरकार के निजीकरण और विनिवेश कार्यक्रमों का विरोध भी हो रहा है. श्रम संगठनों का कहना है कि आर्थिक तनाव के इस दौर में सरकार अपने उपक्रमों को निजी क्षेत्र में बेच कर कर्मचारियों का आर्थिक जोखिम और बढ़ा रही है. कई और मुद्दों के साथ यह मुद्दा भी हाल ही में आयोजित किए गए दो दिवसीय भारत बंद के कारणों में शामिल था।

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