ब्राह्मण नेता को UP में प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी भाजपा? स्वतंत्र देव के विकल्प पर चल रहा विचार

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

लखनऊ 29 अप्रैल 2022। उत्तर प्रदेश सरकार के गठन के बाद भाजपा अब संगठन में बड़े बदलाव करने की तैयारी में है। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को कैबिनेट में शामिल किया गया है और इस बार उनकी जगह पर किसी और को संगठन की कमान देने पर विचार हो रहा है। एक व्यक्ति एक पद की नीति पर चलते हुए भाजपा उनका रिप्लेसमेंट तलाश रही है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस बार प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर किसी ब्राह्मण नेता को कमान सौंपी जा सकती है। इससे ब्राह्मणों की नाराजगी का जो परसेप्शन बना था, उसकी काट की जा सकेगी। 

पार्टी के एक सीनियर लीडर ने कहा, ‘प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर विचार चल रहा है और इस चर्चा का पूरा फोकस किसी ब्राह्मण नेता को ही कमान देने पर है।’ इस रेस में योगी के पहले कार्यकाल में डिप्टी चीफ मिनिस्टर रहे दिनेश शर्मा का भी नाम चल रहा है। इसके अलावा प्रदेश महामंत्री गोपाल नारायण शुक्ला और पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के नाम की भी चर्चा चल रही है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण बिरादरी की कुल आबादी 10 फीसदी से अधिक है। ऐसे में उसे साधना किसी भी पार्टी के लिए अहम माना जाता है। इस विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण समुदाय के 89 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे। ऐसे में पार्टी इस समर्थन का बदला प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ चुकाना चाहती है।  

ब्राह्मणों की उपेक्षा के आरोप हो जाएंगे खत्म

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की ओर से ब्राह्मण नेताओं का एक पैनल तैयार किया गया था कि बिरादरी के मतदाताओं को लुभाया जा सके। बता दें कि योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले कार्यकाल में ब्राह्मण समुदाय की उपेक्षा के आरोप भाजपा पर लगे थे। ऐसे में पार्टी का मानना है कि ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाने और अब प्रदेश अध्यक्ष का पद समुदाय के ही किसी नेता को देकर ब्राह्मणों को लुभाया जा सकता है। 

गोपाल टंडन को भी मिल सकती है संगठन में जगह

दरअसल भाजपा की कोशिश यह भी है कि कैबिनेट में शामिल न किए गए कई सीनियर नेताओं को भी संगठन में ही शामिल कर लिया जाए। इससे उनकी नाराजगी से भी बचा सकेगा और सभी समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा। सीनियर लीडर गोपाल टंडन, सिद्धार्थ नाथ सिंह जैसे नेताओं को भी संगठन में शामिल करने पर विचार चल रहा है। ये दोनों नेता योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री थे, लेकिन इस बार इन्हें जगह नहीं मिल पाई है।

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