इंडिया रिपोर्टर लाइव
रतलाम (मध्यप्रदेश) 8 अगस्त 2022 । पशुओं में होने वाली लंपी स्किन डिजीज से राजस्थान के पशुपालकों में हाहाकार मचा हुआ है. हजारों पशुओं की मौत हो गई है. उधर, मध्य प्रदेश सरकार ने भी इसके लिए एहतियातन अलर्ट जारी कर दिया है. सूबे के पशुपालकों के लिए एडवाइजरी भी जारी की गई है. केंद्र सरकार द्वारा जारी एडवाइजरी के संबंध में पशुपालन विभाग के संबंधित अधिकारियों से कहा गया है कि गाइडलाइन के अनुसार रोग की पहचान एवं नियंत्रण के लिए सजग रहें. कहीं भी लक्षण दिखाई देने पर नमूने एकत्रित कर राज्य पशु रोग अन्वेषण प्रयोगशाला भोपाल को भेजें.
पशुपालन एवं डेयरी विभाग के संचालक डॉ. आरके मेहिया ने डिवीजनल एवं जिला अधिकारियों को गुजरात और राजस्थान से लगे हुए जिलों के बॉर्डर पर पशुओं के आवागमन पर रोक लगाने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने कहा कि स्वस्थ जानवरों को बीमारी से बचाने के लिए गोट पॉक्स वैक्सीनेशन करें. पर्याप्त मात्रा में औषधि भंडार रखें.
रतलाम जिले के पशुओं में मिले लक्षण
डॉ. मेहिया ने सभी विभागीय अधिकारी-कर्मचारियों को लंपी स्किन डिजीज को लेकर अलर्ट मोड में रहने के निर्देश दिये हैं. उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से संयुक्त संचालक, उप संचालक, डिवीजनल एवं जिला लैब प्रभारी से पशुओं के स्वास्थ्य की स्थिति पर चर्चा की. कहा कि प्रदेश के सीमावर्ती राज्यों में व्यापक रूप से फैली इस बीमारी के लक्षण रतलाम जिले के पशुओं में देखने को मिले हैं.
इसलिए विभागीय अमले को लंपी के प्रति सतर्क रहने और केन्द्र एवं राज्य शासन द्वारा जारी एडवाइजरी का पालन करने के निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि बीमारी के प्रति पूरी सावधानी रखी जाए. उपचार की व्यवस्थाएं भी सुनिश्चित करें. डिवीजनल रोग अन्वेषण प्रयोगशाला जबलपुर के प्रभारी डॉ. पीके सोलंकी और नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय जबलपुर की डॉ. वंदना गुप्ता ने बीमारी की रोकथाम के उपाय बताए.
लंपी स्किन रोग में क्या होता है?
लंपी स्किन डिजीज पशुओं की वायरल बीमारी है, जो पॉक्स वायरस से मच्छर, मक्खी, टिक्स आदि से एक पशु से दूसरे पशु में फैलती है. शुरूआत में दो-तीन दिन के लिए हल्का बुखार रहता है. इसके बाद पूरे शरीर की चमड़ी में 2-3 सेंटीमीटर की गाठें निकल आती हैं. ये गाठें गोल उभरी हुई होती हैं. जो चमड़ी के साथ मांसपेशियों की गहराई तक जाती हैं. गांठें मुंह, गले एवं श्वांस नली तक फैल जाती हैं. इसकी वजह से पैरों में सूजन, दूध उत्पादन में कमी, गर्भपात और कभी-कभी पशु की मृत्यु भी हो जाती है.
डॉ. आरके मेहिया ने बताया कि अधिकतर संक्रमित पशु दो-तीन सप्ताह में ठीक हो जाते हैं, लेकिन दूध उत्पादकता में कमी कई सप्ताह तक बनी रहती है. मृत्यु दर एक से 5 प्रतिशत और संक्रामकता दर 10 से 20 प्रतिशत होती है.