इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 12 अक्टूबर 2022। भारत सरकार का जल जीवन मिशन (जेजेएम) हर साल 1.36 लाख बच्चों की जान बचा सकता है। पांच साल से छोटे इन बच्चों को बचाने का यह सबसे प्रभावी और किफायती तरीका साबित हो सकता है। यह दावे 2019 में अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता माइकल क्रैमर ने अपनी ताजा रिपोर्ट में किए। इच्छा भी जताई कि वे इस क्षेत्र और खासतौर पर पानी के री-क्लोरीनेशन पर भारत के साथ काम करना चाहेंगे।
शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में क्रैमर ने लिखा कि साल 2024 तक भारत अपने ग्रामीण हिस्सों में नल से पेयजल पहुंचाने के लिए जेजेएम पर काम कर रहा है। सफल रहा, तो अपने 1.36 लाख बच्चों का जीवन हर साल बचा लेगा। यूनिसेफ व डब्ल्यूएचओ के अनुसार जेजेएम के पहले 2019 तक 63 प्रतिशत घरों को साफ पेयजल मिल रहा था। जेजेएम से आंकड़ा 90 प्रतिशत पहुंच सकता है। बच्चों को अगर पोषणयुक्त भोजन और अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं भी मिलें तो 1.36 लाख से भी अधिक का जीवन हम बचा सकेंगे।
पेयजल आपूर्ति को सूक्ष्मजीवों से बचाना होगा
क्रैमर ने लिखा कि भारत को ध्यान रखना होगा कि पेयजल आपूर्ति सूक्ष्मजीवों द्वारा संक्रमित न हो। इसके लिए पाइपों में नेगेटिव प्रेशर आने से रोकना होगा। बेहतर रहेगा कि पानी के ट्रीटमेंट की केंद्रीयकृत प्रणाली नलों के निकट रहे। 2019 में महाराष्ट्र में हुए अध्ययन का हवाला देकर कहा कि नलों से मिले पानी के 37 प्रतिशत सैंपल में ई-कोलाई था।
यह खतरे कम होंगे
- क्रैमर का आकलन है कि जिन घरों में पेयजल असुरक्षित है, वहां 5 साल से छोटे बच्चों की मौत की आशंका बाकी घरों से 25 प्रतिशत बढ़ जाती है। हालांकि वास्तविक प्रतिशत इससे भी कहीं ज्यादा हो सकता है।
- भारत की बड़ी आबादी जो पेयजल उपयोग करती है, वह अर्सेनिक, फ्लोराइड या नाइट्रेट से दूषित हो सकता है। इसमें हानिकारक सूक्ष्मजीवों की मौजूदगी सबसे घातक है।
- इससे बच्चों को डायरिया होता है। भारत में 5 साल से छोटे बच्चों की मौत की तीसरी सबसे बड़ी वजह डायरिया ही है। जेजेएम से यह कम हो सकता है।
- उन्होंने मौत के सभी कारणों में भी 25 प्रतिशत कमी की उम्मीद जताई।