भारत की कनाडा को दो टूक, उच्चायुक्त ने कहा- आतंकवाद का महिमामंडन करने के कृत्य निंदनीय

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

ओटावा 25 जून 2024। भारत ने कनाडा में आतंकवाद का महिमामंडन करने वाले कृत्यों को ‘‘निंदनीय” करार देते हुए कहा है कि विश्व में किसी भी देश की सरकार को अपनी धरती से उत्पन्न होने वाले आतंकवाद के खतरे की अनदेखी राजनीतिक फायदे के लिए नहीं करनी चाहिए। भारतीय उच्चायोग ने 1985 में हुए कनिष्क बम विस्फोट की 39वीं बरसी पर एक बयान में कहा कि आतंकवाद की ‘‘कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल” नहीं होती। मॉन्ट्रियल-नयी दिल्ली एअर इंडिया ‘कनिष्क’ उड़ान संख्या-182 में 23 जून 1985 को लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरने से 45 मिनट पहले विस्फोट हो गया था, जिससे विमान में सवार 86 बच्चों समेत सभी 329 लोग मारे गए थे। इनमें से ज्यादातर भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे। माना जाता है कि 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए चलाए गए ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ के प्रतिशोध में सिख आतंकवादियों ने कनिष्क बम विस्फोट को अंजाम दिया था।

‘मानव जीवन क्षणिक राजनीतिक हितों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है’
ओटावा में भारतीय उच्चायोग और टोरंटो तथा वैंकूवर में भारत के वाणिज्य दूतावासों ने, 1985 में ‘‘आतंकवाद के घृणित कृत्य” में मारे गए लोगों की याद में रविवार को एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। भारतीय उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘विश्व में किसी भी सरकार को अपनी धरती से उत्पन्न होने वाले आतंकवाद के खतरे की राजनीतिक फायदों के लिए अनदेखी नहीं करनी चाहिए।” उन्होंने कहा कि मानव जीवन क्षणिक राजनीतिक हितों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। सभी आतंकवादी गतिविधियों का सामना अनुकरणीय कानूनी और सामाजिक कार्रवाई से किया जाना चाहिए, इससे पहले कि वे व्यापक मानवता को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दें।” वर्मा ने कहा, ‘‘सरकारों, सुरक्षा एजेंसियों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को आतंकवादी नेटवर्क को नष्ट करने, उनके वित्तपोषण को बाधित करने और उनकी विकृत विचारधाराओं का मुकाबला करने के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए।

कनिष्क बम विस्फोट में मारे गए लोगों की याद में कार्यक्रम का आयोजन ऐसे वक्त में किया गया है जब पिछले साल सितंबर में, (खालिस्तानी आतंकवादी) हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंट की ‘संभावित’ संलिप्तता का कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद से दोनों देशों के संबंधों में गंभीर तनाव व्याप्त है। भारत ने ट्रूडो के आरोपों को ‘बेतुका’ बताते हुए खारिज कर दिया था। यह ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण” है कि यहां कई मौकों पर ‘‘नियमित रूप से” ऐसे कृत्य करने दिये जाते है जबकि सभी शांति प्रिय देशों एवं लोगों को इसकी निंदा करनी चाहिए। भारतीय उच्चायोग ने बयान में कहा, ‘‘इस कायरतापूर्ण कृत्य को 39 साल पूरे हो गए हैं लेकिन आतंकवाद ने दुर्भाग्यपूर्ण रूप से आज अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा के लिए खतरे का रूप धारण कर लिया है।

बयान में कहा गया है, ‘‘1985 में एआई-182 में बम विस्फोट समेत आतंकवाद का महिमामंडन करने वाला कोई भी कृत्य निंदनीय है और सभी शांति प्रिय देशों तथा लोगों को इसकी निंदा करनी चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कनाडा में कई मौकों पर आए दिन ऐसे कृत्य करने दिये जाते हैं।” पिछले सप्ताह, खालिस्तानी चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की याद में कनाडा की संसद द्वारा ‘एक मिनट का मौन’ रखे जाने की भारत ने आलोचना की थी। निज्जर की गत वर्ष जून में ब्रिटिश कोलंबिया में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। भारत ने शुक्रवार को जोर देते हुए यह भी कहा था कि कनाडाई प्राधिकारियों को हिंसा की वकालत करने वालों और कनाडा में भारत विरोधी अभियान चलाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। भारत ने गत बृहस्पतिवार को वैंकूवर में भारतीय वाणिज्य दूतावास के बाहर खालिस्तानी चरमपंथियों द्वारा तथाकथित “नागरिक अदालत” लगाने और भारतीय प्रधानमंत्री का पुतला फूंकने पर कनाडा के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया था। 

आतंकवाद ‘‘कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल” नहीं जानता- भारतीय उच्चायोग
भारतीय उच्चायोग ने यहां कहा कि आतंकवाद ‘‘कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल” नहीं जानता और यह एक चुनौती है जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मिलकर निपटने की जरूरत है। कनिष्क बम विस्फोट को ‘‘कनाडा के विमानन इतिहास में अब तक की सबसे भयावह घटना” बताते हुए भारतीय उच्चायोग ने कहा कि यह घटना न केवल पीड़ित परिवारों बल्कि पूरी मानवता के लिए एक ‘‘अपूरणीय क्षति” रहेगी। उसने कहा, ‘‘इस घृणित कृत्य के साजिशकर्ता अब भी आजाद घूम रहे हैं।” भारत लगातार कहता रहा है कि दोनों देशों के बीच मुख्य मुद्दा यह है कि कनाडा अपनी धरती से संचालित खालिस्तान समर्थक तत्वों कोई लगाम नहीं लगा रहा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर को उद्धृत करते हुए बयान में कहा गया, ‘‘…न ही हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि राजनीतिक सुविधा आतंकवाद, चरमपंथ और हिंसा के प्रति प्रतिक्रियाओं को निर्धारित करती है। इसी तरह, क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना, चुनिंदा तरीके से नहीं किया जा सकता।”

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