
साजिद खान
कोरिया (छत्तीसगढ़) 01 अप्रैल 2021 (इंडिया रिपोर्टर लाइव)। – ये आदिवासी मासूम बालक अपनी मिठाई खरीदने के लिए जंगल से महुआ फूल चुनकर इकट्ठा किया है। नंगे पांव मार्च महिने की गरमी के खडी धूप में परिवार के साथ जंगल जाकर महुआ फूलों को चुनकर लाया है। इसे ये बिल्कुल नही मालूम है कि इस महुआ फूल के व्यापार से व्यापारी रातों रात लखपति करोड़पति भी बनते आए हैं। ये अपने पारिवारिक रोजी कमाने की रिवायत को अपने मिठाई खरीदने की चाहत में निभा रहा है। लगभग छह साल का ये मासूम बालक पेड़ों से गिरे आठ से दस किलो वजन के महुआ फूलों को जंगल से चुनकर अपने साइज के अनुसार कावड में ढोकर ला रहा है।
उल्लेखनीय है कि पेड़ों से अपने समायानुसार गिरने वाले कुदरत के इन महुआ फूलों के व्यापार के लिए व्यापारी को कृषि उपज मंडी से अनुज्ञा पत्र लेकर इसकी खरीदी-बिक्री में मंडी कर और मंडी से अनुज्ञा पत्र प्राप्त कोल्ड स्टोरेज को महुआ फूलों के लिए सेवाकर देने के साथ इस व्यवसाय से जुड़े बड़े व्यापारी (फर्म) को खरीदी-बिक्री में जीएसटी भी लगता है। यह तो महुआ फूल के व्यापार का व्यवसायिक नजरिया है।
दूसरी तरफ आदिवासी ग्रामीण इलाके में परिवार के द्वारा महुआ फूल को बेचकर जब इस मासूम बालक के घर में परम्परानुसार कुछ बचाकर रखे गए महुआ फूलों का उपयोग किया जाएगा। तो वह प्रत्यक्ष रूप से देखेगा। लेकिन उसे यह बिल्कुल भी बोध नही है कि जिन महुआ के फूलों को वह जंगल से चुनकर वह लाया है। उसके चुने हुए इन महुआ के फूलों से कोई बड़े शहर का शहरिया व्यापारी इस बार भी लखपति से करोड़पति बनेगा। लेकिन मासूम को इससे क्या लेना देना इसे तो अपनी मिठाई से और अपनी छोटी सी उम्र की ख्वाहिश से मतलब है कि बेचूंगा और मिठाई खरीदूंगा। मौसमी सीजन में पेड़ों से गिरने वाले इन महुआ फूलों को क्या कभी सरकार इन ग्रामीणों से सीधे खरीदकर ग्रामीणों को लाभांवित करेगी ? सरकार को मंडी कर वसूल कर फायदा देने वाले कृषि उपज मंडी में कर्मचारियों की कमी की बात भी जिले में पता चली।