मध्यप्रदेश: कोर्ट ने कहा- अफसोस है लोग ऑक्सीजन की कमी के कारण मर रहे हैं

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

इंदौर 04 मई 2021। सभी को ऑक्सीजन की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार को दिए पूर्व निर्देशों को दोहराते हुए, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश सरकार को सभी हितधारकों के साथ रेमडेसिवीर इंजेक्शन की वितरण नीति को फिर से देखने के लिए कहा, ताकि यह आम आदमी को भी उचित मूल्य पर उपलब्ध हो सके।

चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस अतुल श्रीधरन की खंडपीठ ने कहा कि कोरोना रोगी को दवा के रूप में रेमडेसिवीरका सेवन करने की आवश्यकता है या नहीं, यह इलाज करने वाले डॉक्टरों के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए और यह कार्यकारी के आदेश द्वारा तय नहीं किया जाना चाहिए।

आगे कहा कि हम रेमडेसिवीर प्रदान करने के लिए इस आग्रह का कोई औचित्य नहीं देखते हैं यह केवल ऐसे रोगियों को दिया जाए, जो ऑक्सीजन पर हैं, खासकर जब ऑक्सीजन, एक कमोडिटी के रूप में, खुद दुर्लभ हो गई है। इस नीति के पीछे कोई तर्क नहीं है।

रेमडेसिवीर की उपलब्धता और ब्लैक मार्केटिंग का मुद्दा 

मामले में एमिकस क्यूरी नमन नागरथ ने अदालत को ब्लैक मार्केटिंग और ऊंचे दामों के कारण रेमडेसिवीर की उपलब्धता के मुद्दे के बारे में अवगत कराया। यह देखते हुए कि राज्य सरकार ने इस प्रकार के कदाचार पर अंकुश लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है, खंडपीठ ने कहा कि अधिकांश निजी अस्पतालों कोविड 19 रोगियों को यह दवा खुद खरीदने के लिए कह रहे हैं।

बेड की उपलब्धता के संबंध में अस्पष्टता के मद्देनजर रोगी एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का चक्कर लगा रहे हैं। राज्य सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करने के लिए तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। न्यायालय द्वारा उपचार के लिए निर्धारित दरों से अधिक शुल्क नहीं लेने के निर्देश के बावजूद, निजी अस्पताल अत्यधिक शुल्क ले रहे हैं। इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि यह उपचार कर रहे डॉक्टरों को तय करना चाहिए कि किसी मरीज को रेमडेसिवीर इंजेक्शन दिया जाना है और एक बार निर्धारित करने के बाद यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि यह जल्द से जल्द उपलब्ध हो।

आगे कहा कि यह नोट करना उचित है कि न्यायालय ने राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिया था कि मरीजों या परिचारकों से अत्यधिक कीमत वसूल कर, उनका शोषण नहीं किया जाए और राज्य केवल सरकारी अस्पतालों को ही नहीं बल्कि निजी अस्पतालों/नर्सिंग होम्स को भी रेमडेसिवीर की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करेगा और विनियमित करेगा।

राज्य की ओर से पेश एडवोकेट जनरल ने अदालत को बताया कि सात घरेलू निर्माताओं से आपूर्ति सुनिश्चित करने के बाद 21 से 30 अप्रैल तक 10 दिनों के लिए रेमडेसिवीर का अंतरिम आवंटन सुनिश्चित किया गया है। इसके अलावा, यह बताया गया कि राज्य को 30.04.2021 से पहले रेमडेसिवीर के 95000 शीशियों का आवंटन किया गया है, जिनमें से केवल 45,000 शीशियों को सरकारी अस्पतालों में उपयोग के लिए रखा गया था और निजी अस्पतालों में आपूर्ति करने के लिए 50,000 शीशियां आवंटित की गई थी, लेकिन यह शर्त थी कि वे आईसूयी/एचडीयू / ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड पर भर्ती कोविड 19 रोगियों की संख्या के आधार पर निजी अस्पतालों में भर्ती कोविड 19 रोगियों के उपचार के लिए दवा की समान बिक्री / उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे।

ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी पर 

एमिकस क्यूरी ने कोर्ट को बताया कि लगातार ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय के विस्तृत निर्देशों के बावजूद, राज्य विफल रहा है, और ऑक्सीजन की कमी के कारण राज्य में लगभग 60 मौतें हुईं। अदालत को बताया गया कि केंद्र सरकार द्वारा पीएम केयर फंड के तहत राज्य के लिए आवंटित 8 प्रेसर स्विंग एब्जॉर्प्शन (पीएसए) ऑक्सीजन प्लांटों में से केवल पांच प्लांट स्थापित किए गए हैं और वे भी आधे से कम क्षमता पर कार्य कर रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि मध्य प्रदेश राज्य में 52 जिले हैं, जिनमें जिला अस्पताल हैं। कोई कारण नहीं है कि वह 50 करोड़ रुपये की राशि का निवेश नहीं कर सकता है, ताकि उनमें से प्रत्येक अस्पताल में एक पीएसए ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किया जा सके। पूरे राज्य में कोई लिक्विड ऑक्सीजन निर्माण संयंत्र नहीं है। यह देखते हुए कि राज्य सरकार की ओर से पेश एक्शन रिपोर्ट में बताई गई स्थिति की तुलना में जमीन पर हालात पूरी तरह अलग हैं।  अदालत ने समाचार पत्रों की रिपोर्ट को गंभीरता से लिया, जिसमें ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी के कारण विभिन्न मौतें के बारे में जानकारी दी गई थी और कहा कि यहां तक कि राज्य ने भी ऑक्सीजन की अनुपलब्धता के कारण अस्पतालों में हुई कथित मौतों की सत्यता पर सवाल उठाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है। इतनी बड़ी संख्या में नागरिकों की मृत्यु वास्तव में हृदय-विदारक है। अफसोस कि लोग ऑक्सीजन की कमी के कारण अस्पतालों में मर रहे हैं।

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