इंडिया रिपोर्टर लाइव
गुवाहाटी 16 जुलाई 2021। असम में हिमंत बिस्व सरमा के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही भाजपा सरकार लगातार अपराधियों के खिलाफ सख्त रवैया अपना रही है। खुद सीएम भी इस बारे में कई बार चेतावनी दे चुके हैं। हालांकि, इस बीच राज्य में पुलिस कस्टडी में अपराधियों के मारे जाने की घटनाओं ने मानवाधिकार संगठनों का ध्यान खींचा है। खासकर विपक्ष ने तो इस मामले को राज्यपाल के सामने उठाया है और दावा किया है कि पिछले दो महीनों में असम में 30 से ज्यादा मुठभेड़ हुई हैं, जिनमें पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए आरोपी घायल हुए हैं या मारे गए हैं।
बता दें कि हिमंत बिस्व सरमा ने 10 मई को सीएम के तौर पर कार्यभार संभाला था। तब से लेकर अब तक 23 लोगों को पुलिस कस्टडी में गोली मारे जाने की बात सामने आई है। इनमें पांच लोगों की जान भी गई है। बताया गया है कि जिन लोगों के साथ यह घटनाएं हुईं, उन्हें पुलिस ने दुष्कर्म, हत्या, ड्रग्स तस्करी, डकैती और मवेशी तस्करी के आरोप में पकड़ा गया था। चौंकाने वाली बात यह है कि यह घटनाएं उन एनकाउंटरों से अलग हैं, जिनमें पुलिस ने पिछले दो महीनों में 10 उग्रवादियों को मार गिराया।
जहां विपक्ष ने मौजूदा भाजपा सरकार पर बर्बरता के आरोप लगा दिए हैं, वहीं असम के मानवाधिकार आयोग ने इस मुद्दे का खुद ही संज्ञान लिया है। हालांकि, सीएम सरमा ने इस सख्त रवैये का समर्थन किया है। बुधवार और गुरुवार को उन्होंने विधानसभा में बताया कि उनकी सरकार अपराधियों के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस नीति’ अपनाना जारी रखेगी और वे इसके लिए किसी भी तरह की आलोचना झेलने के लिए तैयार हैं। सरमा ने यहां तक कह दिया कि मेरा पुलिस को साफ निर्देश है कि वे कानून तोड़कर नहीं, बल्कि कानून के दायरे में रहकर काम करें। आप कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें और असम सरकार आपकी रक्षा करेगी।
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही पुलिस अफसरों की एक कॉन्फ्रेंस में सीएम ने कहा था कि पुलिस की ओर से भागने की कोशिश कर रहे अपराधियों पर फायरिंग करने में कुछ भी गलत नहीं है। उन्होंने कहा था कि पुलिसकर्मी ऐसे लोगों को सीने पर गोली नहीं मार सकते, पर पैर पर गोली मारना तो कानूनी तौर पर ठीक है। उन्होंने गुरुवार को ही विधानसभा में बताया कि पिछले दो महीने में ही मवेशी तस्करी से जुड़े 504 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और इनमें सिर्फ चार लोग ही पुलिस फायरिंग में घायल हुए। सरमा ने यह भी कहा कि पुलिस ने अब तक आरोपियों के साथ सबसे बेहतर बर्ताव करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि किसी के साथ संवेदना जताना अहम है, पर गलत मामलों में संवेदना बेहद खतरनाक है।
7 जुलाई को असम मानवाधिकार आयोग ने सरकार से पुलिस फायरिंग में मारे गए आरोपियों की मौत की स्थिति स्पष्ट करने के लिए इंक्वायरी कराने की मांग की थी। आयोग के एक सदस्य नाबा कमल बोरा ने कहा था कि मारे गए सभी कस्टडी में थे और उन्हें हथकड़ी लगी थी, इसलिए हम जानना चाहते हैं कि आखिर असल में क्या हुआ।
पुलिस की ओर घटना का ब्योरा कुछ, मृतकों के परिवारों का कुछ और
चौंकाने वाली बात ये है कि अब तक असम में जितने लोगों के पुलिस कस्टडी में मारे जाने के आरोप हैं, उनमें पुलिस का बयान कुछ और है, जबकि मृतकों के परिवारों का वर्जन पूरी तरह अलग है। कुछ मामलों में पुलिस का कहना है कि उन्हें भागने की कोशिश या पुलिस के हथियार छीनने की कोशिश कर रहे आरोपियों को रोकने के लिए गोली चलानी पड़ी, जिसमें उनकी मौत हो गई। हालांकि, मृतकों के परिवारों का कहना है कि पुलिस पहले आरोपियों को कस्टडी में रखने की बात कह कर ले गई या वे खुद सरेंडर करने पहुंचे। लेकिन इसके बाद वे कभी वापस ही नहीं लौटे।