रोजी-रोटी और परपंराओं के दीपक से सजा बाजार

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भूपेश सरकार ने मिट्टी के दीपक खरीदने की है अपील

दीपावली की सही सार्थकता तो मिट्टी के दीये जलाने से ही पूरी होती है। पिछले कई वर्ष से लगातार दीपावली पर दिये बनाकर बेचते आये है पर पहले की तरह अब मिट्टी के दीये खरीदने वाले कम हो गए हैं।

इंडिया रिपोर्टर लाईव

बिलासपुर। दिवाली कई लोगों के लिए अतिरिक्त खुशियां लाती है, जिनमें मिट्टी के दीये बनाने वाले लोग भी शामिल हैं। किंतु साल दर साल गिरावट के बावजूद मिट्टी के दीये बनाने वाले निराश नहीं हैं। उनका कहना है कि पिछले कुछ सालों से मिट्टी के दीपकों के खरीदारों में वृद्धि हुई है जो उनके लिए संतोषजनक है। दीपों का त्यौहार दीपावली नजदीक है। कुम्हार गली-गली, चौक-चौराहों पर अब दीये बेचने के लिए निकल रहे हैं अभी भी लोग दीपावली के मौके पर मिट्टी के दीपों की माला लगाकर अपने घरों को रोशन करते हैं। भूपेश सकरार ने भी कुम्हारों, शिल्पकारों को प्रोत्साहन देने जनता से अपील कर रही है कि मिट्टी से बने दिये ही खरीदे ताकि उनके घर भी दीपावली की रौशनी जगमागाये। लोग मिट्टी के दीये भी खरीदने शुरू कर दिए हैं। शहर में कई स्थानों में मिट्टी के दीये बेचने वालों की दुकान लगी हुई हैं। शनिचरी, गोलबाजार तथा सड़कों और गलियों में मिट्टी के दीये बेचते देखे जा सकते है। चवन कुम्हार का कहना है कि भगवान राम के अयोध्या लौटने पर तब मिट्टी दीये जलाकर पूरे नगर को रोशन किया गया था। तब से ये मिट्टी के दीये दीपावली के मौके पर लोग अपने-अपने घरों में जलाते हैं। पहले बिजली कम होती थी, इसलिए लोग मिट्टी के दीये जलाकर ही लोग अपने घरों में रोशनी करते थे। अब तो पैसे वाले लोग बिजली की लडिय़ां लगाकर अपने घरों को रोशन करते हैं। मिट्टी के दीयों से जो घरों पर रोशनी होती है, उसकी अलग ही बात होती है। असलियत में दीपावली की सही सार्थकता तो मिट्टी के दीये जलाने से ही पूरी होती है। पिछले कई वर्ष से लगातार दीपावली पर दिये बनाकर बेचते आये है पर पहले की तरह अब मिट्टी के दीये खरीदने वाले कम हो गए हैं। छोटे दीये 10 रुपये के 15 और बढ़े दीये पांच रुपये का एक बेचा जा रहा है। इस बार सरसों का तेल अवश्य महंगा है, लेकिन फिर भी गरीब व्यक्ति अपने घरों पर दीये ही जलाते हैं। इसलिए शहर में कई स्थानों पर मिट्टी के दीये बेचे जा रहे हैं।

मिट्टी के दीये बनाने वालों की कमी


क्षेत्र में मिट्टी के दीये बनाने वाले परिवारों की संख्या एक दशक में तेजी से गिरी है। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले चवन बताते हैं कि पिछले दो-तीन दशकों से मिट्टी के दीयों की मांग घटती गई, लेकिन कुछ सालों से लोग फिर से मिट्टी के दीये खरीदने लगे हैं। अब मिट्टी के दीये बनाने वाले परिवार ज्यादा नहीं है। पहले इनकी संख्या सैकड़ों में थी। वे मानते हैं जब से बाहर से रेडिमेड एवं आकर्षक दीये बाजार में आने लगे हैं, उनके द्वारा तैयार दीपक की मांग भी बढऩे लगी है। आयातित एक दीपक की कीमत में उनके द्वारा तैयार दस दीपक बिकते हैं। हालांकि, उन्हें इनकी बिक्री से उतना लाभ नहीं मिलता, लेकिन वह खुश हैं कि उनके प्रयासों से भारतीय परंपरा जीवित है।


प्रदूषण में आएगी कमी


हरघर पर अगर सरसों तेल के दस मिट्टी के दीये एक घंटा भी जलाए जाएं तो हवा में 15 प्रतिशत तक प्रदूषण कम होगा। बीमारी फैला रहे आधे से अधिक मच्छर और कीटाणुओं का खात्मा होगा। उल्टे चाइनीज या फिर इलेक्ट्रॉनिक रंगीन लाइटें पर्यावारण सेहत के लिए खतरनाक है। पर्यावरण विशेषज्ञों ने यह खुलासा किया है। हिंदू मान्यताओं में घर में मंदिर में घी का दीपक जलाते हैं। दिवाली पर घर के दरवाजे और नाली पर दीपक जलाए जाते हैं। दिवाली के दिन तो हर घर में सरसों तेल और घी के दीप जलते थे। दीप जलाना ही अपने आप में शुद्धता का प्रतीक है। लाइट के पास मच्छर बैक्टीरिया का आना आम है। अगर दीप जलता है तो वह इन्हें खत्म करता है। सरसों तेल का दीया जलने से हवा को दूषित करने वाले सूक्ष्म कण जल जाते हैं। दीये की आगे से निकलने वाली आग और हल्का धुआं बैक्टीरिया को खत्म करता है। इसलिए घर से निकलने वाले गंदे पानी की जगह पर भी दीये लगाने की मान्यता है।

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