इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली, 19 अगस्त 2021. कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल की चुनाव के बाद हुई हिंसा की जांच सीबीआई सौंप दी है. जबकि शेष को एक विशेष जांच दल (एसआईटी) को सौंप दिया. जिसे कोर्ट की निगरानी में रखा जाएगा. हाईकोर्ट का आदेश ममता बनर्जी सरकार के पक्ष में नहीं रहा है, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख करने की संभावना है. अदालत ने आदेश दिया, “एनएचआरसी समिति की रिपोर्ट के अनुसार सभी मामले जहां आरोप किसी व्यक्ति की हत्या या महिलाओं के खिलाफ अपराध या बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के बारे में हैं, उन्हें जांच के लिए सीबीआई को भेजा जाएगा. राज्य को ऐसी जांच के लिए मामलों के सभी रिकॉर्ड सीबीआई को सौंपने चाहिए. यह अदालत की निगरानी में जांच होगी और किसी के द्वारा जांच के दौरान किसी भी बाधा को गंभीरता से लिया जाएगा.”
टीएमसी नेता कुणाल घोष ने कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर ट्वीट में लिखा, “हाईकोर्ट के आदेश का खुलकर विरोध नहीं किया जा सकता है. उन्होंने निर्देश दिए. सरकार और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व निर्देश का जवाब देगा. संभावित कानूनी पहलुओं पर विचार किया जाएगा. हमें लगता है कि एनएचआरसी की रिपोर्ट विशुद्ध रूप से राजनीति से प्रेरित है. हालांकि, मैं अभी हाईकोर्ट पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूं.”
अदालत ने एनएचआरसी समिति द्वारा उद्धृत अन्य सभी मामलों को जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के पास भेज दिया. तीन आईपीएस अधिकारी सुमन बाला साहू, सौमेन मित्रा और रणबीर कुमार एसआईटी का हिस्सा होंगे. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति आईपी मुखर्जी, हरीश टंडन, सौमेन सेन और सुब्रत तालुकदार की पीठ ने तीन अलग-अलग लेकिन सहमति वाले फैसले दिए.
दो मई को तृणमूल कांग्रेस की आश्चर्यजनक वापसी के बाद राज्य में चुनाव के बाद व्यापक हिंसा का आरोप लगाते हुए कई याचिकाकर्ताओं ने इस साल की शुरुआत में हाईकोर्ट का रुख किया था. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा की विभिन्न शिकायतों की जांच के लिए हाईकोर्ट के निर्देश पर एक समिति का गठन किया था. पीड़ितों ने कथित चुनाव बाद हिंसा के अपराधियों के खिलाफ हत्या, बलात्कार और संपत्ति को नष्ट करने के गंभीर आरोप लगाए थे. पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा की जांच कर रही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की टीम ने 15 जुलाई को कलकत्ता हाईकोर्ट को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी थी. 50 पन्नों की रिपोर्ट ने राज्य की स्थिति को कानून के शासन के बजाय शासक के कानून की अभिव्यक्ति करार दिया.