डीएमएफ मद से निर्मित लगभग एक करोड़ के गुणवत्ता विहीन निर्माण कार्यों में मजदूरी दर की जानकारी की अनभिज्ञता में मजदूरों का हुआ शोषण तथा पुलिया के सेंट्रीग में टेक लगी कटी कच्ची बल्लियां वन अधिनियम उल्लंघन का देती रहीं दुहाई फिर भी व्हाऊचरों में हुआ ईमानदारी का सत्यापन ! मामला पिछले वित्तीय वर्ष का जिसमें जांच का अंदाज बिल्कुल लचीला

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(इंडिया रिपोर्टर लाइव) साजिद खान

कोरिया ( छत्तीसगढ़ ) नीचे फूलों की दुकान ऊपर गोरी मकान इसी तर्ज पर डीएमएफ से बहरासी परिक्षेत्र में पिछले वित्तीय वर्ष में लगभग एक करोड़ की राशि से निर्माण कार्यों को अंजाम दिया गया। निर्माण कार्यों के बेस (आधार) में भरपूर जंगल की गिट्टी का उपयोग किया गया और ऊपर दिखावे के रूप में क्रेसर की गिट्टी लगाया गया। विशुद्ध आदिवासी क्षेत्र में मजदूरी दर के विषय में मज़दूरों के जानकारी की अनभिज्ञता का फायदा उठाकर उनकी मजदूरी में शोषण कर खुद को हरा-भरा किया गया। काटी गई कच्ची गीली बल्लियों को सुखी बताकर साइज के अनुसार सेंट्रीग में टेक लगाने के लिए उपयोग करना क्या वन अधिनियम का उल्लंघन नही है ? और हां उपरोक्त कार्य हेतू मुख्य वन संरक्षक, सरगुजा से अनुमति आदेश नही लिया गया। इस तरह गुणवत्ताविहिन और वन अधिनियम का उल्लंघन करते हुए निर्मित किए गए निर्माण कार्यों के व्हाऊचरों का सत्यापनकर्ता अधिकारी ने क्या ईमानदारी से सत्यापन किया ? लाखों रूपए के निर्माण कार्यों के लिए अन्य विभागों में शासन निविदा आमंत्रित करके निर्माण कार्य करवाता है जिसमें इंजीनियर बकायदा लेआउट से लेकर मोनिटरिंग, मेजरमेंट के पश्चात अंतिम में मूल्यांकन करते हैं। परन्तु बहरासी रेंज के जंगल में 5लाख, 6लाख, 9लाख, 18लाख, 19लाख, 23लाख जैसे राशि के लागत वाले निर्माण कार्यों को परदे के पीछे अघोषित ठेकेदारी के रूप में वन रक्षक(नान सिविल इंजीनियर) करते रहे और उनसे बकायदा व्हाऊचरों में प्रमाणित भी करवाया गया होगा कि कार्य वनरक्षक द्वारा करवाया गया और परिक्षेत्र सहायक से व्हाऊचरों में प्रमाणित करवाया गया कि कार्य का निरिक्षण परिक्षेत्र सहायक द्वारा किया गया और सत्यापनकर्ता अधिकारी (एसडीओ) ने कार्य का सत्यापन किया होगा। दूसरा विषय यह है कि आखिर बहरासी परिक्षेत्र का प्रभार संभाल रहे कुछ ही समय पूर्व सेवामुक्त हो चुके परिक्षेत्राधिकारी से ऐसा क्या लगाव था कि अफसरों ने मनेन्द्रगढ वनंमडल के अन्य परिक्षेत्रों को छोडकर डीएमएफ मद के लगभग एक करोड़ के निर्माण कार्यों सिर्फ बहरासी परिक्षेत्र को ही लाभ देना उचित समझा क्यों ? ये तो वैसे ही हुआ जैसे हरियाली ढूंढने सभी एक जगह पहुंच जाते हैं।                 

उल्लेखनीय है कि स्थानीय ग्रामीणों से 2-2 अथवा 4-4 सुखी पुरानी लकड़ी मांगकर सेंट्रीग में टेक लगा करके पुलिया निर्मित की गई। ये हम अपनी तरफ से नही बता रहे हैं बल्कि वनमंडल मनेन्द्रगढ के बहरासी परिक्षेत्र ने सूचना के अधिकार के जवाब में खुद ही बताया था कि स्थानीय ग्रामीणों के घर से 2-2 अथवा 4-4 सूखी पुरानी लकड़ी मंगाकर टेक लगाने हेतू उपयोग किया गया। इसके अतिरिक्त पक्की सेंट्रीग का उपयोग किया गया है। जंगल से किसी भी प्रकार की लकड़ी नही काटी गई है और ये भी बताया गया है कि उपरोक्त कार्य हेतु मुख्य वन संरक्षक, सरगुजा वन वृत्त से अनुमति आदेश नही लिया गया है। हैरत की बात है कि सुखी लकडी का बताई जा रही है जबकि तात्कालिन निर्माणाधीन समय में निर्माणाधीन पुलिया के ऊपर और बगल में कच्ची गीली बडी-बडी बल्लियों को साइज के अनुसार उपयोग करने के लिए चीरा और काटा जाता रहा। क्या अपने विभागीय कार्य के लिए ये वन अधिनियम को अलमारी के लाकर में बंद करके रख दिए थे ? तथा दूसरे अन्य विभाग के निर्माण कार्यों में ये तत्काल वन अधिनियम उल्लंघन का सहारा ले लेते हैं ऐसा क्यों ? ऐसा कार्य करने के लिए मुख्य वनसंरक्षक से अनुमति आदेश नही लिया गया बड़ी दिलेरी की बात रही। क्या फॉरेस्ट के सिल्विकलचरल प्रकिया में शासन से नियुक्त कोई सिविल इंजीनियर वनमंडलों में होते हैं जो लाखों रू. के निर्माण कार्यों का स्थल पर ले-आउट दें, कार्यों की लगातार मानिटिरिंग करें और कार्यों का मूल्यांकन करें ? क्या माना जाए इन कार्यों का बिना मूल्यांकन किए ही सत्यापन हुआ ? लेकिन नही बल्कि डीएमएफ के इन निर्माण कार्यों में वनरक्षक के द्वारा कार्य कराया गया और निरिक्षण परिक्षेत्र सहायक के द्वारा कराया गया। प्रमाणित हस्ताक्षर व्हाऊचरों में जांच का विषय है। उपरोक्त इन निर्माण कार्यों में  परदे के पीछे अघोषित ठेकेदारी हुई। सत्यापन के लिए सत्यापनकर्ता अधिकारी से जांच एजेंसी के द्वारा सवाल जवाब तो होना ही चाहिए। लेकिन क्या यह संभव है जब सत्यापनकर्ता अधिकारी (एसडीओ) और जांच अधिकारी(एसडीओ) एक ही वनमंडल मनेन्द्रगढ में पदस्थ हों। वर्ष २०१८-१९ में डीएमएफ मद से बहरासी परिक्षेत्र के बेनिपुरा में लगभग २३.९८ लाख रू. में स्वीकृत इस पुलिया के निर्माण के लिए प्राक्लन के अनुसार लागत की पूरी राशि जिला प्रशासन से तो मिली ही होगी। तो सवाल यह पैदा होता है कि यदि पुलिया निर्माण के लिए प्राक्लन के अनुसार बजट मिला था तो फिर इस परिक्षेत्र ने स्थानीय ग्रामीणों के घरों से बल्लियों का उपयोग करना क्यों बताया ? और दूसरा सवाल यह पैदा होता है कि क्या सेंट्रीग में टेक लगाने के लिए उपयोग की गई बल्लियों के बिलों का भुगतान स्थानीय ग्रामीणों के नाम पर ही किया गया ? या अन्य किसी फर्म के नाम पर बिलों का भुगतान किया गया ? यदि स्थानीय ग्रामीणों के नाम पर बल्लियों के बिलों का भुगतान नही किया गया तो समझ लिजिए कि स्थानीय ग्रामीणों के हक की राशि में सीधा-सीधा धोखाधडी हुई होगी । विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष २०१८-१९ में जिला प्रशासन के डीएमएफ मद के तहत बहरासी परिक्षेत्र के अंतर्गत इस निर्मित पुलिया के अलावा हर्री में (19.95 लाख रू. की लागत से नाली निर्माण, 18.46 लाख रू. की लागत से स्टाप डेम निर्माण), बेनिपुरा में (5.92 लाख रू. की लागत से पुलिया निर्माण, 9.99 लाख रू. की लागत से सी. सी. सडक निर्माण), करवां में 5.99 लाख रू. की लागत से पुलिया निर्माण, लरगाडंडी में (6.00 लाख रू. की लागत से पुलिया निर्माण, 5.00 लाख रू. की लागत से पुलिया निर्माण), के लिए राशि मिली थी। बताते हैं कि निर्मित हो चुके इन कार्यों में जंगल की गिट्टियों का जमकर उपयोग किया गया। 19.95 लाख रू. के नाली और 18.46 लाख रू. के स्टाप डेम तथा हर्री में 9.99 लाख रू. के बेनिपुरा के सीसी सडक के तात्कालिक निर्माणाधीन समय में ही मजदूरों ने बताया था कि कोई मजदूरी दर नही बताई गई है बस मजदूरी मिल जाएगी बोल-बोल करके काम करवाया गया। मजदूरों ने ही बताया था कि यहीं जंगल से गिट्टी तोडकर लाकर चट्टा लगा कर निर्माण कार्य में उपयोग किया गया। बताया जाता है कि जंगल की गिट्टी नाली निर्माण, सीसी सडक और स्टाप डेम में डाली गई है। विशुद्ध आदिवासी क्षेत्र में मजदूरी दर के जानकारी की अनभिज्ञता के कारण लगभग एक करोड़ रू. के इन निर्माण कार्यों में मजदूरी सही मिली या नही मिली विभागीय स्तर से हटकर किसी दूसरी एजेंसी से इसकी जांच करवाया जाना चाहिए। इस तरह इन निर्माण कार्यों के लिए मजदूरों से गिट्टी जंगल से एकत्रित करवा करके गिट्टी का चट्टा पे चट्टा बनवाया गया। क्या पत्थर तोड़कर लाने और गिटटी का चट्टा बनाने के कार्य के नाम पर मजदूरों की हाजिरी डाली गई या सिर्फ निर्माण कार्यों में मजदूरी के रूप में मजदूरों की हाजिरी डाली गई ? क्योंकि जंगल से लाई गई गिट्टी का बिल बनाते भी तो किस फर्म के नाम से बनाते ? कैसे हो सकता है कि इस राशि को क्रेसर के बिलों के भुगतान के नाम पर उपयोग किया गया हो ? निर्माण कार्यों का प्राक्लन क्या कहता है। इस आधार पर जांच आवश्यक है। इन निर्माण कार्यों में मजदूरों के द्वारा मजदूरी कम मिलने को लेकर विभाग में शिकायत करने की भी जानकारी है और पता चला कि उपरोक्त सभी निर्माण कार्यों की स्वीकृति जाब दर पर रही मतलब जितना काम उतनी राशि। परन्तु सेवामुक्त हो चुके परिक्षेत्राधिकारी ने कथित रूप से बताया था कि १७४/-रू. प्रति दिन के हिसाब से मजदूरी तय है। बल्कि वन विभाग में न्यूनतम मजदूरी भुगतान प्रति मानव दिवस लगभग ३००/-रू. प्रतिदिन से ऊपर मजदूरों की हाजिरी की जानकारी है। जबकि इन निर्माण कार्यों में मजदूरी व्हाऊचरों में सेवामुक्त परिक्षेत्राधिकारी के कथित दर से कहीं अधिक दर पर दर्ज बताई जाती है। जांच के लिए कई महत्वपूर्ण बिंदु है। जिसके आधार पर जांच कर संबंधितों पर कार्यवाही की जा सकती है। डीएमएफ की राशि होने के कारण मजदूरी के विषय में जिला प्रशासन दखल देकर विशेष जांच करवा सकता है।  क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री भी डीएमएफ की खर्च राशि में गंभीरता रखते दिखे हैं। लाखों रूपए के लागत के इन निर्माण कार्यों की तकनीकी दृष्टि से गंभीरता से जांच हो जाए तो गडबडियों और वन अधिनियम उल्लंघन के मामले में दोषियों पर कार्यवाही हो सकती है । वर्ष २०१८-१९ में उपरोक्त तात्कालिक निर्माणाधीन कार्यों के तात्कालिक समय में मनेन्द्रगढ वनंमडल में पदस्थ रहे तात्कालिक वनमंडलाधिकारी भी इस हरियाली से अछूते नहीं रहे होंगे। नायक की भूमिका में तो रहे ही होंगे।
 डीएमएफ मद से बहरासी में निर्मित निर्माण कार्यों और बिलों का सत्यापन आपके द्वारा किया गया है, जानकारी लेने पर सत्यापनकर्ता अधिकारी(एसडीओ) ने कहा कि हां हां !डीएमएफ मद से बहरासी परिक्षेत्र में निर्मित कार्यो के विषय में जांच अधिकारी(एसडीओ) से पूछने पर उन्होने कहा कि अभी तो छंटवा रहा था उसका एमबी वगैरह मिला नही था। होली के बाद उसको निपटाऊंगा। जानकारी के लिए बता दें कि सत्यापनकर्ता(एसडीओ) और जांचकर्ता अधिकारी(एसडीओ) मनेन्द्रगढ वनमंडल में ही पदस्थ हैं।

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