
इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 04 जनवरी 2022। भारत से बातचीत को लेकर पाकिस्तान लालायित दिख रहा है। एक तरफ उसके भेजे दहशतगर्द कश्मीर में नाकाम कोशिश करते हुए ढेर हो रहे हैं तो दूसरी तरफ इमरान सरकार ने भारत को सार्क सम्मेलन का न्योता भेजा है। रविवार को ही सांबा जिले में इंटरनैशनल बॉर्डर पर घुसपैठिये को बीएसएफ ने मार गिराया। इधर, इमरान सरकार अलग समीकरण सेट करना चाहते हैं। जबकि भारत ने साफ कह रखा है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं हो सकते। पाकिस्तान को अच्छी तरीके से यह बात पता है और यही वजह है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने प्रस्ताव रखा कि हम सभी सदस्य देशों को न्योता देते हैं। भारत अगर नहीं आ सकता है, तो वह ऑनलाइन शामिल हो सकता है। समिट का न्योता देकर कुरैशी ने आरोप लगाया कि भारत के इस्लामाबाद न आने की जिद के कारण सार्क संगठन निष्क्रिय हो गया है। हालांकि भारत सरकार ने कहा है कि हमें पाकिस्तान की तरफ से कोई औपचारिक न्योता नहीं मिला है। ऐसे में सवाल यह है कि पाकिस्तान के न्योते पर क्या भारत बैठक में शामिल होगा? अतीत के पन्ने पलटें तो संकेत जरूर मिल सकते हैं।
साल था 2016, सार्क यानी दक्षेस शिखर सम्मेलन 15-19 नवंबर को इस्लामाबाद में आयोजित होने वाला था। इस बीच, जम्मू कश्मीर के उरी में भारतीय सेना के शिविर पर आतंकी हमला हो गया। भारत ने शिखर सम्मेलन में भाग लेने से इनकार कर दिया। उसके बाद से सार्क देशों की बैठक नहीं हो पाई। सार्क अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका का एक क्षेत्रीय समूह है। इसकी आखिरी बार बैठक 2014 में काठमांडू में हुई थी।
सार्क में भारत की भूमिका और प्रभाव इसी से समझा जा सकता है कि भारत के इनकार करने पर बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान ने भी इस बैठक में हिस्सा लेने से मना कर दिया था। इस कारण मजबूरी में पाकिस्तान को शिखर सम्मेलन को रद्द करना पड़ा था।
2016 में भारत की नाराजगी की साफ वजह थी। वह ये कि पाकिस्तान वार्ता की मेज पर बैठता है तो पीठ पीछे कश्मीर को सुलगाने की साजिश भी रचता है। अक्सर उसके भेजे घुसपैठिए, दहशतगर्द भारतीय सेना के हाथों ढेर किए जाते रहते हैं। भारत ने लकीर खींच दी कि वार्ता की टेबल पर बैठने से पहले आतंकियों को संरक्षण देना रोकना होगा। भारत ने पीओके में आतंकियों के ठिकानों पर कार्रवाई भी की लेकिन पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। पिछले साल सितंबर में तालिबान को शामिल करवाने की पाकिस्तान की जिद के कारण इस बैठक को रद्द कर दिया गया था। अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस सम्मेलन की मेजबानी में दिलचस्पी दिखाई है। इमरान खान ने उम्मीद जताई कि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के रास्ते में आने वाली ‘कृत्रिम बाधा’ के दूर होने के बाद उनका देश इस सम्मेलन की मेजबानी करेगा। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बदहाल है। इमरान खान को उम्मीद है कि सार्क बैठक से आर्थिक मोर्चे पर मुल्क को कुछ फायदा हो सकता है।
हाल के समय भारत ने कुछ मुद्दों पर पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करने के संकेत दिए हैं। SCO के तहत सहयोग और अफगानिस्तान को लेकर यह स्पष्ट है। भारत पाकिस्तान के लगातार संपर्क में है जिससे पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान तक 50,000 मीट्रिक टन गेहूं पहुंचाया जा सके। सूत्रों की मानें तो भारत ने अटकलों को खारिज करते हुए कह दिया कि पाकिस्तान की ओर से कोई औपचारिक संवाद नहीं हुआ है। साफ है भारत जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करेगा। भारत और कुछ अन्य देशों के लिए अफगानिस्तान की भागीदारी भी महत्वपूर्ण है। पिछले साल भी UNGA से इतर दक्षेस विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए पाकिस्तान चाह रहा था कि अफगानिस्तान की तरफ से तालिबान को शामिल किया जाए और फिर वह नहीं हो सकी।
अब सार्क बैठक की मेजबानी कर पाकिस्तान अपने करीबी तालिबान को दुनिया में आधिकारिक स्वीकृति दिलाने की कोशिश कर सकता है। वैसे भी अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद तालिबान को दुनिया से मदद की दरकार होगी जिससे वहां खाने-पीने और दूसरी चीजों के संकट को दूर किया जा सके। फिलहाल कुछ मुस्लिम देश ही उसकी मदद कर रहे हैं।
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन को जानें
सार्क दक्षिण एशिया के आठ देशों का संगठन है जिसका पूरा नाम है दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन। सार्क का गठन 8 दिसंबर 1985 को किया गया था। इसका उद्देश्य दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग से शांति और प्रगति हासिल करना है। अफगानिस्तान सार्क देशों का सबसे नया सदस्य है। बाकी के सात देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव हैं।