सीएम पद की दौड़ में हैं तोमर, शिवराज और नरोत्तम के नाम, भाजपा आज ले सकती है फैसला

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  • ज्योतिरादित्य से अभी स्थानीय स्तर पर नेता नहीं ले रहे हैं कोई राय
  • तोमर के नाम पर नहीं होगी कैलाश विजयवर्गीय और राकेश सिंह को आपत्ति

इंडिया रिपोर्टर लाइव

नई दिल्ली । मध्यप्रदेश से कमलनाथ सरकार की विदाई के बाद राज्य में सरकार की ताजपोशी के सवाल पर भाजपा में मंथन शुरू हो गया है।  उम्मीद की जा रही है कि भाजपा शनिवार को इस पर फैसला ले लेगी। राज्य के नए सीएम के पद की रेस में पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और नरोत्तम मिश्रा शामिल हैं। अब तक इस पद के लिए शिवराज को सबसे प्रबल दावेदार बताया जा रहा है, हालांकि पार्टी में दूसरे विकल्पों पर भी विचार हो रहा है।मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सभी को स्वीकार नेता नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की पहली पसंद केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हैं। भाजपा के नेता नरोत्तम मिश्रा की भी महत्वाकांक्षा है और उनके शुभ चिंतकों की कमी नहीं है। भाजपा में राज्य के मुख्यमंत्री को लेकर अब हलचल काफी तेज है। अब तक इस पद के लिए शिवराज को सबसे प्रबल दावेदार बताया जा रहा है, हालांकि पार्टी में दूसरे विकल्पों पर भी विचार हो रहा है।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस पद के लिए पहली पसंद शिवराज सिंह चौहान हैं। दरअसल वह नहीं चाहते कि ग्वालियर संभाग का कोई नेता सीएम बने। तोमर और मिश्रा इसी संभाग से हैं। चूंकि भाजपा को राज्य में बड़ा बहुमत हासिल नहीं है, इसलिए सिंधिया की राय के उलट फैसला लेना मुश्किल है। हालांकि अगर शिवराज की जगह तोमर या नरोत्तम आलाकमान की पसंद बने तो नेतृत्व इस संबंध में पहले सिंधिया को राजी करेगा।

जहां तक सीएम पद की बात है तो केंद्रीय मंत्री तोमर और नरोत्तम मिश्रा भी इसके मजबूत दावेदार हैं। तोमर पीएम के करीबी हैं तो नरोत्तम गृह मंत्री अमित शाह के। सूत्रों का कहना है कि तोमर या मिश्रा को अगर सीएम बनाने का फैसला होता है तो शिवराज केंद्रीय राजनीति में आएंगे। ऐसी स्थिति में उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी और उन्हें कृषि मंत्रालय दिया जा सकता है। 

शिवराज के सिवा आखिर कौन?

भाजपा के एक राज्यसभा सांसद का कहना है कि शिवराज को ही मुख्यमंत्री बनना चाहिए। उनकी जानकारी के मुताबिक तैयारी भी इसी तरह की हैं। बताते हैं मध्यप्रदेश  में सबको स्वीकार तो नहीं लेकिन अधिकतम को स्वीकार नेता शिवराज सिंह ही हैं। राज्य में भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राकेश सिंह, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का रास्ता थोड़ा अलग हैं।

बताते हैं हाल में भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया से अभी स्थानीय स्तर पर नेता कोई राय नहीं ले रहे हैं। हालांकि इसमें ज्योतिरादित्य की राय मायने रखेगी। समझा जा रहा है कि ज्योतिरादित्य इसकी चर्चा केंद्रीय नेतृत्व से कर रहे हैं।

शिवराज के रास्ते में सबसे बड़ा कांटा उनका 13 साल तक राज्य का मुख्यमंत्री रहना है। यह अनुभव के लिहाज से ठीक है, लेकिन शीर्ष नेतृत्व हमेशा नए नेताओं को अवसर देने और भविष्य का नेता तैयार करने को प्रमुखता देता है।

नरेंद्र तोमर भी क्या बुरे हैं?

केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर अच्छे नेता हैं। जमीनी पकड़ रखते हैं। सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी क्षमता को पसंद करते हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी तोमर के नाम को लेकर कोई आपत्ति नहीं है।

मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षाएं कैलाश विजयवर्गीय भी रखते हैं, लेकिन माना जा रहा है कि तोमर के नाम पर उन्हें या फिर राकेश सिंह को कोई आपत्ति नहीं होगी। शीर्ष नेतृत्व हमेशा नए नेताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने के पक्ष में रहता है। दूसरे, शीर्ष नेतृत्व को हमेशा केंद्र सरकार में अनुभवी लोगों की आवश्यकता रहती है।

नरोत्तम मिश्रा अच्छे उत्साही नेता हैं

नरोत्तम मिश्रा ब्राह्मण चेहरा हैं और राज्य में ब्राह्मण चेहरा लंबे समय से सत्ता में नहीं है। भाजपा का अच्छा जनाधार है, लेकिन नरोत्तम अभी इस दौड़ में पीछे हैं। उनके सहयोगी भी इस बारे में बहुत उत्साह से कुछ नहीं कह पाते।

भिंड, मुरैना में नरोत्तम मिश्रा अपनी पकड़ रखते हैं। नरोत्तम नहीं चाहते ग्वालियर चंबल संभाग से उनका प्रभाव किसी तरह से कम हो पाए। नरोत्तम ज्योतिरादित्य को बहुत पसंद नहीं कर रहे हैं। भाजपा को अभी सबके बीच में एक समीकरण बनाना है।

शनिवार को तय हो जाएगा नेता का नाम

भाजपा के एक वरिष्ठ सूत्र का कहना है कि राज्य के नए नेता का एलान शनिवार को सुबह तक हो सकता है। बताते हैं अभी राज्य में विधायकों का मन टटोलने की प्रक्रिया चल रही है।

भाजपा नेता मानकर चल रहे हैं कि मध्यप्रदेश में सरकार बनाने का रास्ता तो आसान है, लेकिन सरकार के कार्यकाल को पूरा कर पाने का रास्ता कठिन है। इसलिए केंद्रीय नेतृत्व भी संभल कर कदम रख रहा है। 

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