शिवराज सिंह चौहान : कड़ा अनुशासन और सांगठनिक एकता है पहचान

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

नयी दिल्ली । प्रदेश की सियासत के गलियारों में 11 दिसंबर 2018 की सुबह विधानसभा चुनाव के नतीजे आने तक सब कुछ ठीक था, लेकिन शाम होते होते पूरा मंजर बदल गया। जनता ने भाजपा की जगह कांग्रेस को सत्ता सौंप दी, लेकिन निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नसीब में शायद ज्यादा दिन विपक्ष में बैठना नहीं लिखा था और वह मात्र 15 महीने में ही सत्ता में लौट आए। दरअसल 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने 114 सीटें जीत कर सरकार तो बना ली

थी, लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि शिवराज भी 109 सीटों के साथ उससे ज्यादा दूर नहीं थे। चुनाव भले पांच साल बाद होने थे, लेकिन शतरंज की बिसात पर कुछ शातिर चालों ने कमलनाथ सरकार का खेल बिगाड़ दिया और बची खुची कसर कांग्रेस के नाराज ‘महाराज’ ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूरी कर दी। 5 मार्च 1959 को प्रेम सिंह चौहान और सुंदर बाई चौहान के यहां सिहोर जिले के जैत गांव में जन्मे शिवराज सिंह चौहान 1972 में 13 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आये और कड़े अनुशासन, सांगठनिक एकजुटता और संयमित आचरण का सबक उन्होंने वहीं से सीखा। 1975 में वह मॉडल स्कूल छात्र संघ के अध्यक्ष बने । बाद में भाजयुमो के प्रांतीय पदों पर रहते हुए उन्होंने विभिन्न छात्र आंदोलनों में भी हिस्सा लिया।कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने के बाद रिकार्ड चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले शिवराज सिंह बेहद मिलनसार और विनम्र नेता के तौर पर जाने जाते हैं, लेकिन उनकी प्रखर वाणी और ओजपूर्ण व्यक्तित्व के साथ राजनीति की गहरी समझ उन्हें कठिन परिस्थितियों में भी सही फैसले करने की ताकत देती है। आपातकाल के दौरान कांग्रेस सरकार के खिलाफ भूमिगत आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेकर जेल जा चुके शिवराज सिंह को संगीत, अध्यात्म, साहित्य एवं घूमने-फिरने में विशेष रूचि है। उनके परिवार में पत्नी साधना सिंह और दो पुत्र कार्तिकेय एवं कुणाल हैं। कार्तिकेय कारोबारी हैं, जबकि कुणाल अभी अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। शिवराज की शैक्षणिक योग्यता कला संकाय से स्नातकोत्तर है।अपने जानने वालों में ‘मामाजी’ के संबोधन से प्रचलित शिवराज सिंह के लिए मध्य प्रदेश में बिछी सियासत की बिसात पर अपने मोहरे सजाना आसान नहीं होगा। उन्हें एक ऐसे शख्स की वजह से सत्ता की यह सौगात मिली है, जिसने विधानसभा चुनाव में उनकी हार की ताबीर लिखी थी। वह अपने एक हालिया बयान में उन्हें : ज्योतिरादित्य सिंधिया : ‘विभीषण’ भी बता चुके हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि सत्ता में उचित भागीदारी न मिलने से आहत होकर भाजपा में आए लोगों को शिवराज सिंह चौहान और भाजपा सरकार क्या देकर अपनी तरफ रोक पाएगी।

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