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नई दिल्ली 20 अगस्त 2023। जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक स्तर पर जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है, उसकी वजह से सदी के अंत तक हिंदूकुश हिमालय पर मौजूद ग्लेशियरों से करीब 80 फीसदी बर्फ नदारद हो जाएगी। भारत सहित दक्षिण एशिया के कई क्षेत्रों पर इसका जानलेवा प्रभाव पड़ेगा। हिंदूकुश 800 किमी लंबी पर्वत शृंखला है जो अफगानिस्तान के केंद्र से उत्तरी पाकिस्तान और ताजिकिस्तान तक फैली हुई है, जबकि अफगानिस्तान से लेकर म्यांमार तक आठ देशों में फैले हिंदूकुश हिमालय को युवा वलित पर्वत भी कहा जाता है। ग्लेशियर और भारी बर्फबारी इन पहाड़ों की हमेशा मौजूद रहने वाली विशेषताएं हैं, जिनकी ऊंचाई 7,692 मीटर तक है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) की ओर से जारी नई रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने कहा है कि बर्फ के पिघलने से इस क्षेत्र में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा और जल संकट गहरा जाएगा। इसका खामियाजा हिंदूकुश के पूरे पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र को भुगतना पड़ेगा, जो पहले ही अत्यंत संवेदनशील है।
65 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघल रही बर्फ
आईसीआईएमओडी की नई रिपोर्ट वाटर, आइस, सोसाइटी एंड इकोसिस्टम इन हिंदूकुश हिमालय के अनुसार, यहां जमा बर्फ बहुत तेजी से पिघल रही हैं। इन ग्लेशियरों को हो रहे नुकसान की दर जो 2000 से 2009 के बीच 0.17 मीटर प्रति वर्ष थी, वह 2010 से 2019 के बीच बढ़कर 0.28 मीटर प्रति वर्ष तक पहुंच गई है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि पिछले दशक की तुलना में 2010 से 2019 के बीच हिंदूकुश हिमालय के ग्लेशियरों में मौजूद बर्फ 65 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघल रही है।
इस तरह पड़ेगा असर
यदि तापमान में वृद्धि 1.5 या दो डिग्री सेल्सियस हुई तो इस पूरे क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर सदी के अंत तक अपना करीब 50 फीसदी हिस्सा खो देंगे। विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) का अनुमान है कि सदी के अंत तक तापमान में वृद्धि तीन डिग्री सेल्सियस को पार कर सकती है। ऐसे में हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर अपनी 75 फीसदी बर्फ से हाथ धो बैठेंगे। यदि तापमान में वृद्धि चार डिग्री पहुंची तो इसमें 80 फीसदी तक की गिरावट आ जाएगी।
इकोसिस्टम पर खतरा
रिपोर्ट के अनुसार, घटती बर्फ की वजह से लोगों के जीवन पर असर पड़ने के साथ ही उनकी जीविका भी खतरे में पड़ रही है। इन पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं और प्रकृति की मार झेलने को मजबूर हैं। ऐसे में इन बदलावों की वजह से उनके लिए संकट और बढ़ता जाएगा।
- फसलों पर असर के साथ चारे की कमी से मवेशियों की मृत्यु होगी।
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस क्षेत्र में हो रहे बदलावों का जैवविविधता पर भी गहरा असर पड़ेगा। यह असर यहां पाई जाने वाली सभी प्रजातियों पर देखने को मिलेगा।