
इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 15 सितम्बर 2023। मशहूर अर्थशास्त्री व पूर्व ब्रिटिश वित्त मंत्री जिम ओ नील का कहना है कि जी-20 की भारत की अध्यक्षता ने साबित कर दिया है कि यह संगठन वैश्विक चुनौतियों के प्रभावी समाधान का उचित मंच है। स्वास्थ्य और सतत विकास पर पैन-यूरोपीय आयोग के सदस्य नील कहते हैं कि मौजूदा दुनिया में जी-7 और ब्रिक्स जैसे वैकल्पिक संगठन जी-20 की तुलना में व्यापक असर नहीं रखते हैं। नील ने एक लेख में लिखा, स्पष्ट चुनौतियों के बावजूद जी-20 के सर्वसम्मति से घोषणापत्र जारी करने से इसकी प्रासंगिकता को फिर से स्थापित करने में भारत कामयाब रहा, जबकि बार-बार इसे लेकर सवाल उठाया गया था। इसके लिए निश्चित रूप से भारत और अमेरिका सराहना के पात्र हैं। कई लोग अनुमान लगा रहे हैं कि भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपमानित करने के लिए शी जिनपिंग ने शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया। हालांकि, शी का मकसद जो भी हो, जी-20 में भारत अपने मकसद में कामयाब रहा। वहीं, दूसरी तरफ चीनी राष्ट्रपति के कदमों से ब्रिक्स का महत्व कम हो रहा है। गोल्डमैन साक्स के पूर्व अध्यक्ष रह चुके नील को ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह को ब्रिक्स नाम देने के लिए भी जाना जाता है।
पीएम मोदी को विजेता के तौर पर देखा जाएगा
नील ने लिखा, जी-20 में अफ्रीकी संघ को शामिल करने के लिए भी पीएम मोदी को एक विजेता के तौर पर देखा जाएगा। उनके एक सूझबूझ भरे कदम ने इसे जी-21 बना दिया। यह सफलता मोदी को स्पष्ट कूटनीतिक जीत दिलाती है, जिससे उन्हें ग्लोबल साउथ के चैंपियन के रूप में अपनी छवि चमकाने का मौका मिलता है। हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि क्या जी-20 में अफ्रीकी संघ की स्थायी सीट इसे अधिक प्रभावी निकाय बना पाएगी। वहीं, जी-20 घोषणापत्र में यूक्रेन संकट की भाषा को लेकर भले ही यूक्रेनी राष्ट्रपति खुश नहीं हों, लेकिन यह रूस को स्पष्ट संदेश देने के पर्याप्त है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है।
जी-7 को मंथन की जरूरत
नील लिखते हैं, जिस तरह से यूक्रेन के लिए आवाज उठाने के लिए जी-7 नहीं, बल्कि नाटो उचित मंच है, ठीक उसी तरह जी-20 यूक्रेन की चर्चा के लिए नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन, सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों की चर्चा का मंच है। जी-7 नेता जितना चाहें यह सोचते रहें कि उनका अब भी वैश्विक मामलों में प्रमुख प्रभाव हैं, लेकिन सच यही है कि जब तक प्रमुख उभरती शक्तियों को शामिल नहीं करेंगे, तब तक आप बड़ी वैश्विक चुनौतियों से नहीं निपट सकते।
संयुक्त रूप से एक प्रतिनिधि भेजें
बकौल नील, जी-20 के आलोचक कह सकते हैं कि यह प्रभावी होने के लिहाज से बहुत बड़ा और बोझिल है, लेकिन फिर से वही बात दोहराऊंगा, जो 2001 में पहली बार ब्रिक नाम गढ़ते हुए कही थी कि अगर यूरोजोन के सदस्य देश असल में एक-दूसरे पर विश्वास प्रदर्शित करना चाहते हैं, तो जी-20 जैसे मंचों पर व्यक्तिगत प्रतिनिधियों के बजाय संयुक्त रूप से एक प्रतिनिधि भेजें, इससे समूह कम बोझिल होगा और एकता की शक्तिशाली मिसाल कायम होगी।