इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 15 जून 2021। करीब छह महीने का वक्त जरूर लगा, मगर बिहार के सीएम नीतीश कुमार की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में चिराग पासवान को अलग-थलग करने की योजना परवान चढ़ गई। दरअसल पार्टी में बगावत की नींव बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान में उस समय ही पड़ गई थी जब चिराग ने अपने सांसद चाचा पशुपति पारस को नीतीश की तारीफ करने पर पार्टी से निकालने की चेतावनी दी थी। नीतीश ने ऑपरेशन चिराग का जिम्मा भले ही अपने विश्वस्त सांसद राजीव कुमार उर्फ ललन सिंह को सौंपा। ललन सिंह ने महेश्वर हजारी और सूरजभान की सहायता से इस ऑपरेशन को कामयाब बनाया। इस दौरान नीतीश का लोजपा के नेताओं और सांसदों से करीबी संबंध भी काम आया। मसलन लोजपा के इकलौते सांसद महबूब अली कैसर को खुद नीतीश ने साधा। दरअसल पिछले लोकसभा में जब कैसर की जगह लोजपा दूसरे नेता को टिकट देने का फैसला कर चुकी थी, तब नीतीश ने रामविलास पासवान से बात कर कैसर का टिकट बचाया था।
यूं बिगड़ी बात
विधानसभा चुनाव के दौरान जब चिराग ने जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का फैसला किया तो उनके सांसद चाचा पशुपति पारस ने इसका विरोध किया। इसी दौरान जब पारस ने नीतीश की तारीफ की तो चिराग ने उन्हें पार्टी से निकालने की धमकी दी। तब पशुपति और चिराग के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई। बाद में नीतीश ने चिराग को धीरे-धीरे लोजपा से अलग करने की योजना बनाई। पहले इकलौते विधायक को जदयू में शामिल किया। फिर 200 पदाधिकारियों को जदयू की सदस्यता दिलाई। अंत में चिराग को संसदीय दल में भी अलग-थलग कर दिया।
क्या होगा आगे?
अभी यह तय नहीं है कि लोजपा के बागी सांसद पार्टी में बने रह कर चिराग को बाहर का रास्ता दिखाएंगे या जदयू में शामिल होंगे। पशुपति ने कहा, पार्टी को बचाने के लिए सांसदों को ऐसा करना पड़ा। दूसरी ओर जदयू सूत्रों का कहना है कि ये सभी नीतीश का दामन थाम सकते हैं। अगर अभी जदयू में आते हैं तो कम से कम पशुपति को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल जाएगी। इसके अलावा जदयू के सांसदों की संख्या भाजपा के 17 सांसदों के मुकाबले 21 हो जाएगी। ऐसे में नीतीश मंत्रिमंडल में अधिक सीट हासिल करने में कामयाब हो जाएंगे। वैसे भी जदयू ने समान बंटवारे का सवाल उठाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल में पांच सीटों पर दावेदारी की है।
यहीं तक सीमित नहीं है नीतीश की मुहिम
विधानसभा चुनाव में लोजपा के कारण जदयू के तीसरे नंबर पर पहुंचने के बाद से नीतीश सतर्क हैं। वह देर सबेर फिर से गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में आना चाहते हैं। यही कारण है कि नतीजे आने के बाद नीतीश पार्टी का पुराना वोटबैंक हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने अपने धुर विरोधी रहे उपेंद्र कुशवाहा को साधा है। उनकी कोशिश राज्य के पसमांदा मुसलमानों में पुराना आधार हासिल करने की भी है।