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इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 12 जून 2023। खालिस्तान अलगाववाद के मुद्दे पर कनाडा सरकार की चुप्पी से दुनिया हैरान है। सिख डायस्पोरा में मुट्ठी भर व्यक्तियों के प्रभाव से प्रेरित राजनीति का यह खतरनाक खेल न केवल कनाडा के अपने राष्ट्रीय हितों को खतरे में डाल रहा है बल्कि इसके आर्थिक भविष्य को भी खतरे में डाल रहा है। हाल ही में, ब्रैम्पटन शहर ने दिवंगत भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाती एक परेशान करने वाली झांकी परेड में दिखाई गई जिससे कनाडा में खालिस्तान अलगाववादियों के बढ़ता प्रभाव स्पष्ट रूप से उजागर हो गया । ये एक ऐसी घटना जो 1985 में एयर इंडिया की उड़ान 182 की दुखद घटना के बाद सबसे अधिक विचलित करने वाली थी । सच यह है कि कनाडाई राजनेताओं ने ऐसी अलगाववादी आवाज़ों को बढ़ने दिया है और यह तुष्टिकरण का ऐसा खतरनाक खेल है जो व्यापक राष्ट्रीय हितों की कीमत पर वोट सुरक्षित करना चाहता है।चंद्र आर्य जैसे कुछ कनाडाई राजनेताओं द्वारा अलगाववादी विचारधाराओं के मुखर विरोध के बावजूद एक व्यापक समाधान का मार्ग लंबा और कठिन बना हुआ है। कई कनाडाई राजनेताओं पर चुनावी जीत हासिल करने के लिए खालिस्तान अलगाववादियों के आगे झुकने का आरोप लगाया गया है।
यह रणनीति, हालांकि अल्पावधि में संभावित रूप से उपयोगी है लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत के साथ गहरे संबंधों की क्षमता को कम करके कनाडा अपने दीर्घकालिक हितों को खतरे में डाल रहा है। कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जोडी थॉमस ने हाल ही में भारत पर ‘हस्तक्षेप’ का आरोप लगाया । हालांकि यह एक ऐसा दावा था जो यकीनन एक निश्चित मतदाता आधार को अपील करने का प्रयास था। चरमपंथियों और अलगाववादियों को बढ़ावा देना उल्टा पड़ सकता है और वैश्विक मंच पर कनाडा की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकता है। पहले से ही संघर्ष कर रही कनाडा की अर्थव्यवस्था भारत के साथ एक रणनीतिक साझेदारी व्यापार में वृद्धि, विनिर्माण क्षेत्र में संभावित साझेदारी और कुशल श्रमिकों तक पहुंच से उसकी आर्थिक तरक्की के रास्ते खोल सकती है। भारत के साथ सांझेदारी वर्तमान में कनाडा की अर्थव्यवस्था को पंगु बना रही श्रम और कौशल की कमी दूर कर सकती है। वास्तव में कनाडा ने पहले अपनी भारत-प्रशांत रणनीति में भारत को एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में पहचाना था लेकिन अब खालिस्तान अलगाववादियों को बढ़ावा देकर कनाडा सरकार अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रही है। इस संभावित आर्थिक वरदान पर वोट बैंक की राजनीति हावी हो रही है। चुनावी जीत हासिल करने के प्रयास में, खालिस्तान अलगाववादियों का तुष्टिकरण, कनाडा और भारत के बीच संबंधों को तनाव में डालने की चेतवनी देता है। नतीजतन, कनाडा एक मूल्यवान आर्थिक अवसर से चूक सकता है जो इसकी आर्थिक मंदी को दूर करने में मदद कर सकता है। भारत ने कनाडा के साथ मजबूत व्यापार और व्यापारिक संबंध बनाए रखे हैं, जैसा कि प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो के 2021 में भारत से कोविड टीकों के अनुरोध से स्पष्ट है। हालांकि, कनाडा में खालिस्तान अलगाववादियों का बढ़ता प्रभाव और संबंधित राजनीतिक तुष्टिकरण इस रिश्ते को तनाव दे सकता है।
कनाडा की कुल आबादी का 2.1 प्रतिशत हिस्सा सिख डायस्पोरा कनाडा के समाज और राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेष रूप से, जगमीत सिंह, एक कनाडाई सिख, कनाडाई वामपंथी झुकाव वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख हैं। राजनीतिक परिदृश्य पर इस समुदाय का संभावित प्रभाव महत्वपूर्ण है, लेकिन यह खालिस्तान जैसे अलगाववादी कारणों की वकालत करने वाले चरमपंथियों द्वारा हेरफेर का जोखिम भी उठाता है।