इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 12 फरवरी 2024। विदेश मंत्री एस जयशंकर कूटनीति की भाषा में देश की नीति को पिरोकर बिंदास बोलते हैं। विदेश सेवा के अधिकारी रहे जयशंकर का अनुभव उन्हें इसके लिए बहुत उपयुक्त बना देता है। आस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में दो दिवसीय हिंद महासागरीय देशों के सातवें सम्मेलन में 40 देशों के प्रतिनिधि एकत्र हुए थे। इसमें विदेश मंत्री ने बिना नाम लिए चीन को खूब खरी-खरी सुनाई। उन्होंने 39 देशों को सस्ते कर्ज के जाल में न फंसने के लिए आगाह किया। उन्होंने समुद्री क्षेत्र में बढ़ रही चुनौतियों की तरफ ईशारा करते हुए कहा कि नौवहन, उड़ानों की स्वतंत्रता, संप्रभुता और सुरक्षा की चिंताएं हैं।
यह जयशंकर का भारत के पड़ोसी देश चीन पर सीधा हमला था। जयशंकर ने श्रलंका के चीन के सस्ते या अपारदर्शी कर्ज के जाल में फंसने का जिक्र किए बिना हिंद महासागर के देशों को संदेश में ही सबकुछ कह दिया। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के असमान्य संबंधों पर उनके नस्तर जैसे चुभते तंज भी इसी ओर ईशारा कर रहे हैं। जयशंकर अपने संबोधन में संप्रभुता की रक्षा को काफी अहम स्थान दिया। समुद्री कानूनों की अवहेलना के मामलों से निपटने और लंबे समय से चली आ रही संधियों के उल्लंघन जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए हिंद महासागरीय देशों के बीच में गहरे संबंध की वकालत की। जयशंकर के इस आह्वान को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की कोशिश, दक्षिण सागर में चीन के दावे और जिबूती द्वीप पर उसके दबदबे से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
हिंद महासागरीय क्षेत्र में क्या हैं चुनौतियां?
विदेश मंत्री ने समुद्री लुटेरों, जल दस्युओं और आतंकवाद के बढ़ते खतरों का जिक्र करते हुए आगाह किया कि जब हिंद महासागर पर नजर डालते हैं, तो वहां दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियां पूरी तरह से स्पष्ट होती हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि एक तरफ संघर्ष, समुद्र क्षेत्र के खतरे, समुद्री लूट और आतंकवाद का खतरा दिखाई देता है। जबकि दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय कानून के समक्ष उनके अनुपालना की चुनौतियां हैं। स्वतंत्र नौवहन, समुद्री क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में उड़ानों की आजादी व सुरक्षा तथा संप्रभुता को लेकर चिंताए हैं। विदेश मंत्री लगातार अंतरराष्ट्रीय मंच से संप्रभुता, अंतरराष्ट्रीय संधियों की अनुपालना और अपारदर्शी कर्ज का मुद्दा उठा रहे हैं। इसे चीन से जोड़कर देखा जाए, तो पड़ोसी देश लगातार अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में रहता है। लद्दाख क्षेत्र में चीन की सेनाओं का वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) में बदलाव लाने का प्रयास करना, दक्षिण चीन सागर में लगातार अपने दबदबे को बनाने की कोशिश करना, अफ्रीका के जिबूती द्वीप तक सैन्य अड्डा बनाने का प्रयास तथा तमाम देशों को सस्ते कर्ज का लालच देखकर उनके संसाधन पर अधिकार करने की कोशिश, इससे सीधे संबंध रखते हैं। हाल में मालदीव में बढ़ रहे चीन के प्रभाव, उसके द्वारा लालच के प्रयास को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। चीन की कोशिश हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करने की है। भारत का मानना है कि हिंद महासागरीय क्षेत्र में इस तरह के किसी भी देश के प्रयास अस्वीकार्य हैं। इसके लिए आवश्यक है कि हिंद महासागरीय देशों में आपसी सहयोग, समर्थन और रिश्ते मजबूत बुनियाद पर हों।
विदेश मंत्री ने की क्वैड की बात
आस्ट्रेलिया क्वैड का सदस्य है। विदेश मंत्री हिंद महासागरीय क्षेत्र में क्वैड समूह (भारत, अमेरिका,आस्ट्रेलिया और जापान) इस हिस्से में एक बड़े सहयोग का समर्थन करता है। इसी के साथ उन्होंने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सीट मिलने का भी भरोसा जताया। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत को सीट मिलना पक्का (100 फीसदी तय) है। हालांकि उन्होंने कहा कि इसमें अड़चनें भी हैं। भारत के इस रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा चीन ही है। हालांकि उन्होंने बिना चीन का नाम लिए कहा कि कुछ देश नहीं चाहते कि भारत को संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सीट मिले, लेकिन उन्होंने कहा कि भारत को सीट जरूर मिलेगी। विदेश मंत्री ने कहा कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत सशक्त होकर उभरा है। उन्होंने कहा कि भारत का समय जल्द आने वाला है।