इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 04 अक्टूबर 2024। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को कहा कि दुनिया के अनेक हिस्सों में व्याप्त अशांति को देखते हुए आज शांति और एकता की महत्ता और अधिक बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को ये समझना चाहिए कि वह इस धरती का स्वामी नहीं है बल्कि पृथ्वी के संरक्षण के लिए जिम्मेदार है। राष्ट्रपति आबू रोड स्थित ब्रह्माकुमारीज संस्थान के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय शांतिवन में चार दिवसीय वैश्विक शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में संबोधित कर रही थीं, जिसका विषय ‘स्वच्छ व स्वस्थ समाज के लिए आध्यात्मिकता’ है।
उन्होंने कहा कि आज विश्व के अनेक हिस्सों में अशांति का वातारवण व्याप्त है तथा मानवीय मूल्यों का क्षरण हो रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में शांति व एकता की महत्ता और अधिक बढ़ रही है। उन्होंने कहा, ‘‘शांति केवल बाहरी नहीं बल्कि हमारे मन की गहराई में स्थित होती है। जब हम शांत होते हैं तभी हम दूसरों के प्रति सहानुभूति व प्रेम का भाव रख सकते हैं। इसलिए मन, वचन, कर्म.. सबको स्वच्छ रखना होता है।” राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘आज जब हम ‘ग्लोबल वार्मिंग’ और पर्यावरण प्रदूषण के विपरीत प्रभावों से जूझ रहे हैं तब इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सभी संभव प्रयास करने चाहिए।”
इस धरती को हम लोगों को संभालना है, आगे बढ़ाना है: राष्ट्रपति
उन्होंने कहा कि मनुष्य को ये समझना चाहिए वो इस धरती का स्वामी नहीं हैं, बल्कि पृथ्वी के संरक्षण के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम ‘ट्रस्टी’ हैं हम ‘स्वामी’ नहीं हैं। इसलिए ‘ट्रस्टी’ के रूप में इस धरती को हम लोगों को संभालना है, आगे बढ़ाना है। हमें अपने विवेक से इस ग्रह की रक्षा करनी है।” मुर्मू ने कहा कि मनुष्य अपने कर्मों को त्याग कर नहीं बल्कि उन्हें सुधारकर ही बेहतर इंसान बन सकता है। उन्होंने कहा,‘‘आध्यात्मिकता का मतलब धार्मिक होना या सांसारिक कार्यों का त्याग कर देना नहीं है। आध्यात्मिकता का अर्थ है अपने भीतर की शक्ति को पहचान कर अपने आचरण और विचारों में शुद्धता लाना। मनुष्य अपने कर्मों का त्याग करके नहीं बल्कि अपने कर्मों को सुधारकर बेहतर इंसान बन सकता है।”
‘स्वच्छ मानसिकता के आधार पर ही समग्र स्वास्थ्य संभव है’
उन्होंने कहा,‘‘विचारों और कर्मों में शुद्धता जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन व शांति लाने का मार्ग है। यह एक स्वच्छ व स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए भी आवश्यक है। ये माना जाता है कि स्वच्छ शरीर में ही पवित्र अंत:करण का वास होता है।” उन्होंने कहा कि सभी परंपराओं में स्वच्छता को महत्व दिया जाता है। कोई भी पवित्र क्रिया करने से पहले स्वयं व अपने परिवेश की साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता है लेकिन स्वच्छता केवल बाहरी वातावरण में नहीं बल्कि हमारे विचारों व कर्मों में भी होना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा,‘‘अगर हम मानसिक व आत्मिक रूप से स्वच्छ नहीं हैं तो बाहरी स्वच्छता निष्फल रहेगी। आध्यात्मिक मूल्यों का तिरस्कार करके केवल भौतिक प्रगति का मार्ग अपनाना अंतत: विनाशकारी ही सिद्ध होता है। स्वच्छ मानसिकता के आधार पर ही समग्र स्वास्थ्य संभव होता है।”
‘हमारे विचार ही शब्दों और व्यवहार को रूप देते हैं’
उन्होंने कहा कि अच्छे स्वास्थ्य के कई आयाम होते हैं जैसे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक व सामाजिक स्वास्थ्य। ये सभी आयाम परस्पर जुड़े हुए हैं और हमारे जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा,‘‘हमारे विचार ही शब्दों और व्यवहार को रूप देते हैं। दूसरों के प्रति कोई राय बनाने से पहले हमें अपने अंतर्मन में झांकना चाहिए। जब हम किसी दूसरे की परिस्थिति में अपने आप को रखकर देखेंगे तब सही राय बना पाएंगे।” इस मौके पर राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ किसनराव बागडे भी मौजूद थे। आयोजकों के अनुसार, सम्मेलन में शिक्षा, विज्ञान, खेल, कला एवं संस्कृति, मीडिया, राजनीति और समाजसेवा से जुड़ीं 15 से अधिक देशों की जानी-मानी हस्तियां भाग ले रही हैं।