इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 18 नवंबर 2024। उड़ीसा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस मुरलीधर ने सविंधान के मूल्यों का रोजमर्रा के जीवन पर प्रभाव पर जोर दिया। उन्होंने शनिवार को कहा कि संवैधानिक नैतिकता केवल कानूनों के बारे में नहीं है बल्कि इसका मतलब है कि हमें अपने रोजमर्रा की जिंदगी में उन सिद्धांतों के अनुसार जीना चाहिए। तीसरे न्यायमूर्ति अजय कुमार त्रिपाठी स्मारक कार्यक्रम में उन्होंने संवैधानिक मूल्यों की बढ़ती लोकप्रियता के बीच इन्हें बनाए रखने के महत्व का जिक्र किया। जहां मुरलीधर ने यह भी कहा कि हमें सार्वजनिक जीवन में नैतिक दिशा-निर्देशों की जरूरत है। इसके साथ ही मुरलीधर ने भारत में लोकतंत्र और संवैधानिक नैतिकता पर विचार करते हुए कहा कि हमें यह आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि हम अपने परिवारों और समुदायों में कितने लोकतांत्रिक हैं। उन्होंने कहा यदि राज्य के सभी अंग जैसे मीडिया और चुनाव आयोग अपने कर्तव्यों को ठीक से निभाएं, तो हम एक बेहतर लोकतंत्र बना सकते हैं।
पूर्व राजदूत पवन वर्मा ने व्यक्त की चिंता
भारत के पूर्व राजदूत पवन वर्मा और वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। जहां वर्मा ने लोकतांत्रिक मूल्यों के कमजोर होने पर चिंता जताते हुए कहा कि कार्यकारी और विधायी शक्तियों के बीच एक साथ आने से सत्ता का एकाधिकार बनता जा रहा है।उन्होंने यह भी कहा कि नौकरशाही की निष्पक्ष भूमिका भी घट रही है, जिससे पहले की स्टील फ्रेम कमजोर हो रही है। बता दें कि इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में शक्तियों का पृथक्करण और भारत का विचार विषय पर एक त्रिसंवाद हुआ, जिसमें भारतीय संविधान में शक्तियों को अलग करने को लेकर बढ़ती चुनौतियों पर चर्चा की गई।
महेश जेठमलानी का बयान
महेश जेठमलानी ने मोंटेस्क्यू के शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का जिक्र करते हुए बताया कि भारतीय संविधान में इसका प्रत्यक्ष स्थान नहीं है, लेकिन जांच और संतुलन का सिद्धांत हमारी कानूनी प्रणाली में गहरे से जुड़ा हुआ है। विशेषकर न्यायिक समीक्षा के माध्यम से। यह कार्यक्रम न्यायमूर्ति अजय कुमार त्रिपाठी की याद में आयोजित किया गया था, जिन्हें एक ऐसे न्यायविद के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने केवल कानून की व्याख्या नहीं की, बल्कि उसमें जीवन भी डाला।
बता दें कि जस्टिस त्रिपाठी का जन्म 12 नवंबर 1957 को हुआ था और उन्होंने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और भारत के लोकपाल के न्यायिक सदस्य के रूप में कार्य किया। उनका निधन मई 2020 में कोविड-19 से हुआ था।