इंडिया रिपोर्टर लाइव
बिलासपुर 22 अक्टूबर 2020। खेतो में फसल कटाई के पश्चात जो अवशेष बच जाते है उसे जलाने से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है जिसे रोकने के लिए कड़े उपाय किये जाने की आवश्यकता को देखते हुए इस संबंध में दिशा निर्देश जारी किये गये है।
अवशेष को जलाने से बेहतर है कि अवशेष स्थानीय विधि से यूरिया का स्प्रे कर खाद बनाये, खुले में भी खाद बनाया जा सकता है। गढढे में पैरा का वेस्ट डीकम्पोजर से तथा ट्राईकोडरमा का उपयोग कर भी खाद बनाया जा सकता है। फसल अवशेष को मिट्टी में मिलाये। स्ट्रा चोपर हे-रेक, स्ट्रा बेलर का प्रयोग करके अवशेष की गांठे और आमदनी बढ़ाई जा सकती है।
जीरा ड्रील रोटावेटर, रीपर बाईन्डर व अन्य स्थानीय उपयोगी व सस्ते कृषि यंत्रों को भी फसल अवशेष प्रबंधन हेतु अपनाया जा सकता है। फसल अवशेष का उपयोग मशरूम उत्पादन, वर्मी टांका, बोर्ड रफ कागज बनाने में किया जाना चाहिए। फसल अवशेष की गांठो को बायोमास प्लांट, बायोगैस प्लांट में पहुंचाये।
पैरा जलाने से मिथेन, कार्बन मोनो आक्साईड, कार्बन डाई आक्साईड नाईट्रस आक्साईड आदि हानिकारक गैसें उत्सर्जित होती है तथा पार्टिकुलेट मेटर का उत्सर्जन होता है जिसकी वजह से परिवेशीय वायु गुणवत्ता प्रभावित होती है। जिसके कारण पृथ्वी सतह के उपरी वायु मंडल में कोहरा सा छा जाता है। पैरी जलाने के दुष्परिणाम से फेफड़ों की बीमारी, सांस लेेने में तकलीफ तथा कैंसर जैसे विभिन्न रोग होने की संभावना होती है।
पैरा जलाने से राख उत्पन्न होता है तथा उस स्थल की मिट्टी में पायी जाने वाली सूक्ष्म जीवों का विनाश हो जाता है जिससे फसलों की पैदावार में कमी तथा मृदा की गुणवत्ता में क्षति हो जाती है। अनुमानतः 1 टन पैरा जलाने से 3 किलो पार्टिकुलेटर 60 किलो कार्बन मोनो आॅक्साईड, 1460 किलो कार्बन डाई आक्साईड, 2 किलो सल्फर डाई आक्साईड इत्यादि गैसों का उत्सर्जन और 199 किलो राख उत्पन्न होता है तथा अनुमानतः 1 टन धान की पैरा जलाने से मृदा में 5.5 नाइट्रोजन, 2.3 किगा्र फास्फोरस, 25 किग्रा. पोटेशियम तथा 1.2 सल्फर नष्ट हो जाता है।