CAA-विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ वसूली नोटिस वापस, सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद झुकी UP सरकार

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

नई दिल्ली 18 फरवरी 2022। यूपी सरकार ने CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ वसूली नोटिस वापस ले लिए हैं. बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाई थी. राज्य सरकार की ओर से सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान को लेकर यह कार्रवाई की गई थी. यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उसने 2019 में सीएए विरोधी 274 प्रदर्शनकारियों को उनके द्वारा कथित तौर पर सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की वसूली के लिए जारी नोटिस वापस ले लिया है और उनके खिलाफ कार्यवाही भी वापस ले ली गई है. उत्तर प्रदेश सरकार की वकील गरिमा प्रसाद ने बताया कि राज्य सरकार ने 14 और 15 जनवरी को आदेश जारी कर सभी 274 नोटिस को वापस ले लिए गया है. उत्तर प्रदेश सरकार ने नए कानून कर तहत नया नोटिस जारी करने की इजाज़त मांगी थी.

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि नए नोटिस के तहत कोर्ट के सभी आदेशों का पालन किया जाएगा. पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाई थी . सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ वसूली नोटिस वापस लें वरना हम इसे रद्द कर देंगे. सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2019 में एंटी- CAA प्रदर्शनकारियों को जारी किए गए रिकवरी नोटिस वापस लेने का आखिरी मौका दिया. अदालत ने चेतावनी दी कि वह कानून के उल्लंघन के लिए कार्यवाही को रद्द कर देगी. SC ने कहा कि दिसंबर 2019 में शुरू की गई कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत थी, इसे बरकरार नहीं रखा जा सकता.  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने आरोपी की संपत्तियों को कुर्क करने के लिए कार्यवाही करने में खुद एक “शिकायतकर्ता, निर्णायक और अभियोजक” की तरह काम किया है.  कार्यवाही वापस ले लें या हम इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून का उल्लंघन करने के लिए इसे रद्द कर देंगे.  

SC उत्तर प्रदेश में नागरिकता विरोधी (संशोधन) अधिनियम (CAA) के आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए जिला प्रशासन द्वारा प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिस को रद्द करने की मांग करने वाले एक परवेज आरिफ टीटू द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था. याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस तरह के नोटिस एक व्यक्ति के खिलाफ “मनमाने तरीके” से भेजे गए हैं, जिसकी मृत्यु छह साल पहले 94 वर्ष की आयु में हुई थी और साथ ही 90 वर्ष से अधिक आयु के दो लोगों सहित कई अन्य लोगों को भी भेजा गया था।

यूपी सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि राज्य में 833 दंगाइयों के खिलाफ 106 FIR दर्ज की गईं और उनके खिलाफ 274 वसूली नोटिस जारी किए गए. 274 नोटिसों में से, 236 में वसूली के आदेश पारित किए गए थे, जबकि 38 मामले बंद कर दिए गए थे. विरोध के दौरान 451 पुलिसकर्मी घायल हुए और समानांतर आपराधिक कार्यवाही और वसूली की कार्यवाही की गई. उन्होंने कहा कि 2020 में अधिसूचित नए कानून के तहत, दावा ट्रिब्यूनल का गठन किया गया है,  जिसका नेतृत्व सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश कर रहे हैं. पहले इसके लिए ADM तैनात थे.  पीठ ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने 2009 और 2018 में दो फैसले पारित किए हैं, जिसमें कहा गया है कि दावा ट्रिब्यूनल  में न्यायिक अधिकारियों को नियुक्त किया जाना चाहिए, लेकिन आपने एडीएम की नियुक्ति की. आपको कानून के तहत तय प्रक्रिया का पालन करना होगा. इसकी जांच करें, हम 18 फरवरी तक एक मौका दे रहे हैं.  

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह सिर्फ एक सुझाव है. यह याचिका केवल एक तरह के आंदोलन या विरोध के संबंध में दिसंबर 2019 में भेजे गए नोटिसों के एक सेट से संबंधित है. आप उन्हें एक पेन के स्ट्रोक से वापस ले सकते हैं. 
यूपी जैसे बड़े राज्य में 236 नोटिस कोई बड़ी बात नहीं है. अगर नहीं माने तो अंजाम भुगतने को तैयार रहें. हम आपको बताएंगे कि कैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का पालन किया जाना चाहिए. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जब इस अदालत ने निर्देश दिया था कि फैसला न्यायिक अधिकारी द्वारा किया जाना है तो एडीएम कार्यवाही कैसे कर रहे हैं.  

यूपी सरकार ने दावा ट्रिब्यूनलो के गठन पर 2011 में जारी एक सरकारी आदेश का हवाला दिया और कहा कि इसे हाईकोर्ट ने अपने बाद के आदेशों में मंज़ूरी दी थी. राज्य ने 31 अगस्त, 2020 को उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की वसूली अधिनियम को अधिसूचित किया है . अदालत ने कहा कि 2011 में हाईकोर्ट द्वारा सरकारी आदेश को अस्वीकार कर दिया गया था और उस समय राज्य ने एक क़ानून लाने का वादा किया था, -लेकिन राज्य को एक कानून लाने में 8-9 साल लग गए. हम समझते हैं कि 2011 में आप वहां नहीं थे लेकिन आप त्रुटियों को बहुत अच्छी तरह से सुधार सकते थे.  सरकार ने कहा कि सभी आरोपी जिनके खिलाफ वसूली नोटिस जारी किए गए थे, वे अब हाईकोर्ट के समक्ष हैं और लंबी सुनवाई हो चुकी है. दंगाइयों के खिलाफ ये कार्यवाही 2011 से हो रही है और अगर अदालत इन सीएए विरोधी कार्यवाही को रद्द कर देती है, तो वे सभी आकर राहत मांगेंगे.  

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें अन्य कार्यवाही से कोई सरोकार नहीं है. हम केवल उन नोटिसों से चिंतित हैं जो दिसंबर 2019 में सीएए के विरोध के दौरान भेजे गए हैं. आप हमारे आदेशों को दरकिनार नहीं कर सकते. आप एडीएम की नियुक्ति कैसे कर सकते हैं, जबकि हमने कहा था कि यह न्यायिक अधिकारियों द्वारा किया जाना चाहिए. दिसंबर 2019 में जो भी कार्यवाही हुई, वह इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत थी. हम नए कानून के तहत सहारा लेने की स्वतंत्रता के साथ कानून से पहले की गई कार्यवाही को रद्द कर देंगे. जो कार्यवाही लंबित है वह नए कानून के तहत होगी. आप हमें अगले शुक्रवार को बताएं कि आप क्या करना चाहते हैं और हम इस मामले को आदेश के लिए बंद कर देंगे.  

दरअसल पिछले साल 9 जुलाई को, शीर्ष अदालत ने यूपी सरकार से कहा था कि वह राज्य में सीएए विरोधी आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की वसूली के लिए जिला प्रशासन द्वारा कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए पहले नोटिस पर कार्रवाई न करे . शीर्ष अदालत ने हालांकि कहा कि राज्य कानून के अनुसार और नए नियमों के अनुसार कार्रवाई कर सकता है . 2019 के नोटिसों के तहत वसूली के रिफंड पर यूपी सरकार की आपत्ति को खारिज कर दिया है. 2019 के नोटिसों के तहत वसूली हुई है तो सरकार को रिफंड करना होगा.  उत्तर प्रदेश सरकार की वकील ने कहा नोटिस के जरिये की गई वसूली पर स्टे लगा दिया जाए, जब तक नया नोटिस नहीं जारी किया जाता है. याचिकाकर्ता ने कहा रिक्शा चालकों, फल विक्रेताओं ने आपने  ठेलों को बेच कर भुगतान किया है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अब तक कितनी रिकवरी की गई. उत्तर प्रदेश सरकार ने बताया कि करोड़ों की रिकवरी हुई है. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से दलील दी गई कि राज्य में आचार संहिता लागू है ऐसे में कोर्ट के आदेश को पालन करने में दिक्कत होगी।

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