’70 साल पहले की UNSC आज की सच्चाई को नहीं दर्शाती’, स्थायी सदस्यता की भारत की मांग के बीच US का बड़ा बयान

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इंडिया रिपोर्टर लाइव

वांशिगटन 19 अप्रैल 2024। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। जहां भारत लंबे समय से तर्क दे रहा है कि सुरक्षा परिषद में बदलाव की जरूरत है। सन् 1945 से दुनिया पूरी तरह बदल चुकी है, अब मौजूदा भू-राजनीति अलग है। वहीं, अब अमेरिका भी इस समर्थन में उतर आया है। उसका कहना है कि 70 साल पहले की यूएनएससी आज की सच्चाई को को नहीं दर्शाती है। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के एक शीर्ष राजनयिक ने कहा कि बाइडन प्रशासन जी-4 के सदस्यों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने का समर्थन करता है।

चीन और रूस सहमत नहीं
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने टोक्यो में एक भाषण में संकेत दिया कि सुरक्षा परिषद में केवल रूस और चीन ही हैं जो संयुक्त राष्ट्र के इस 15-सदस्यीय शक्तिशाली विंग के विस्तार का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले अमेरिका, चीन और रूस एक बात पर सहमत हुए थे और वह यह थी कि हम सुरक्षा परिषद में बदलाव नहीं देखना चाहते थे। लेकिन 2021 में इससे अमेरिका अलग हो गया और स्पष्ट कर दिया कि बदलाव जरूरी है।

उन्होंने कहा, ’70 साल पहले की सुरक्षा परिषद आज की वास्तविकताओं को नहीं दिखाती है, जहां हमारे पास 193 सदस्य देश हैं, जहां अफ्रीका के पास स्थायी सीट नहीं है, लैटिन अमेरिका के पास स्थायी सीट नहीं है और दुनिया के अन्य देशों और अन्य क्षेत्रों का परिषद में महत्वपूर्ण तरीके से प्रतिनिधित्व नहीं है।’

उन्होंने कहा, ‘इसलिए हमने कथित जी4 के कुछ सदस्यों जापान, जर्मनी और भारत के साथ अपनी चर्चा में स्पष्ट कर दिया है कि हम सुरक्षा परिषद में उनके स्थायी सदस्य बनने का समर्थन करते हैं।’

बहुत काम करने की आवश्यकता होगी
थॉमस-ग्रीनफील्ड ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने पिछले साल अपने भाषण में इसे फिर से दोहराया, फिर से अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के लिए स्थायी सीटों और परिषद में अतिरिक्त निर्वाचित सीटों के लिए हमारे समर्थन की पुष्टि की। उन्होंने कहा, ‘मैं जानती हूं कि यह सितंबर तक नहीं होगा। यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे पूरा करना आसान हो। मुझे लगता है कि एक साल के दौरे के दौरान मैंने जो चीजें सीखीं, उनमें से एक यह है कि इसके लिए बहुत काम करने की आवश्यकता होगी।’

उन्होंने आगे कहा, ‘193 सदस्यों के बीच इस बात पर कोई सहमति नहीं है कि यह कैसे काम कर सकता है, लेकिन इस बात पर सहमति है कि हमें बदलाव की आवश्यकता है और हमें यह पता लगाने के लिए मिलकर काम करना होगा कि यह बदलाव कैसे होगा और किस रूप में होगा। लेकिन यह कुछ ऐसा है जिसके लिए हम पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं, और हम इसे सफल बनाने के लिए काम कर रहे हैं।’

जापान के सुरक्षा सलाहकार से भी मिलीं
उन्होंने कहा कि वह जापान के सुरक्षा सलाहकार ताकेओ अकीबा से भी मिलीं। इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में सहयोग मजबूत करने की योजना पर चर्चा की, जिसमें कोरिया गणराज्य के साथ त्रिपक्षीय सहयोग भी शामिल है। उन्होंने उत्तर कोरिया द्वारा अपने गैरकानूनी परमाणु हथियारों और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रमों के निरंतर विकास, उसके जारी मानवाधिकार उल्लंघनों और दुर्व्यवहारों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कई प्रस्तावों के उल्लंघन में रूस के साथ बढ़ते सैन्य सहयोग के जवाब में घनिष्ठ समन्वय बनाए रखने के महत्व पर भी प्रकाश डाला।

भारत का यह तर्क
गौरतलब है, भारत कई सालों से इस बात पर जोर दे रहा है कि संयुक्त राष्ट्र में बदलाव की जरूरत है। उसका कहना है कि वह संयुक्त राष्ट्र की महत्त्वपूर्ण संस्था में एक स्थायी सदस्य के तौर पर उचित स्थान का हकदार है क्योंकि यह अपने मौजूदा स्वरूप में 21वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता।

वर्तमान में, यूएनएससी में पांच स्थायी सदस्य हैं – चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका। केवल एक स्थायी सदस्य के पास किसी भी मूल प्रस्ताव को वीटो करने की शक्ति है। पिछले महीने भारत ने जी4 देशों ब्राजील, जर्मनी, जापान और खुद की ओर से सुरक्षा परिषद सुधार के लिए एक विस्तृत मॉडल पेश किया था। जी4 मॉडल का प्रस्ताव है कि 6 स्थायी और चार या पांच गैर-स्थायी सदस्यों को जोड़कर सुरक्षा परिषद की सदस्यता को मौजूदा 15 से बढ़कर 25 किया जाए।

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