इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 30 मई 2024। संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन जल्द होने वाला है। इसकी तैयारियों के बीच संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने बहुपक्षवाद के प्रति भारत की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। उन्होंने गुरुवार को शिखर सम्मेलन के लिए उत्साह व्यक्त किया। इसके साथ ही सामूहिक वैश्विक प्रगति के लिए संयुक्त राष्ट्र को फिर से उद्देश्यपूर्ण बनाने के अवसर को अपनाने में भारत के सक्रिय रुख पर प्रकाश डाला।
हम साथ मिलकर कर सकते हैं अच्छा हासिल
कंबोज ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर कहा, ‘भविष्य के आगामी संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन के लिए उत्साहित हूं। प्रतिबद्ध बहुपक्षवाद के प्रति भारत का समर्पण तब उजागर होता है जब हम सामूहिक वैश्विक प्रगति के लिए संयुक्त राष्ट्र को फिर से तैयार करने के इस अवसर को स्वीकार करते हैं। हम साथ मिलकर अधिक से अधिक अच्छे अवसर हासिल कर सकते हैं।’
भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता लंबे समय से…
बता दें, बहुपक्षवाद के लिए भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता लंबे समय से इसकी विदेश नीति की आधारशिला रही है, जिसमें राष्ट्र वैश्विक चुनौतियों का सामना करने और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रूप से निहित है।
सितंबर में होगा सम्मेलन
भविष्य का शिखर सम्मेलन इस साल सितंबर को होगा। यह सम्मेलन महत्वपूर्ण चुनौतियों पर सहयोग बढ़ाने और वैश्विक शासन में अंतराल को दूर करने का एक पीढ़ी में एक बार का अवसर है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, यह सतत विकास लक्ष्यों और संयुक्त राष्ट्र चार्टर सहित मौजूदा प्रतिबद्धताओं की पुष्टि करेगा और लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए बेहतर स्थिति में एक पुनर्जीवित बहुपक्षीय प्रणाली की ओर बढ़ेगा।
कंबोज ने कहा, ‘शिखर सम्मेलन एक उच्च स्तरीय कार्यक्रम है, जो विश्व के नेताओं को एक साथ लाता है ताकि हम एक बेहतर वर्तमान देने और भविष्य की सुरक्षा करने के लिए एक नई अंतरराष्ट्रीय सहमति बना सकें।’
संयुक्त राष्ट्र की मुख्य निकाय को बनाया अप्रभावी
इससे पहले रुचिरा कंबोज ने कहा था, ‘इनमें से कोई भी बात मायने नहीं रखती अगर हम कहते कि हम संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने में असमर्थ हैं क्योंकि इसकी मुख्य निकाय को ही अप्रभावी बना दिया गया है।’ उन्होंने कहा, ‘जब तक हम व्यापक सुधार नहीं करते और इस परिषद को व्यवस्थित नहीं करते, हमें विश्वसनीयता के निरंतर संकट का सामना करना पड़ता रहेगा। इसलिए सुधार करने की आवश्यकता है। भारत का मानना है कि विश्वास के बिना एकजुटता नहीं हो सकती।’