‘धर्मपाल की शैक्षणिक एवं भविष्य की सभ्यता दृष्टि’ पर राष्ट्रीय वेबिनार
धर्मपाल जी की जन्म शताब्दी पर हिंदी विश्वविद्यालय का आयोजन
B S Mirge |
वर्धा 20 फरवरी 2021 (इंडिया रिपोर्टर लाइव)। धर्मपाल जी की जन्म शताब्दी पर ‘धर्मपाल की शैक्षणिक एवं भविष्य की सभ्यता दृष्टि’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि धर्मपाल जी ने भारतीय शिक्षा के रमणीय बीज को खोज निकाला तथा महत्वपूर्ण सूचनाओं को प्राप्त कर उनका दस्तावेजीकरण किया। भारत के यथार्थ की पहचान उनके द्वारा की गयी खोज का परिणाम है। उन्होंने धर्मपाल जी के अध्ययन के आधार पर मंतव्य व्यक्त किया कि सन 1830 के पहले शिक्षा की व्यापक दृष्टि मौजूद थी, अंग्रेजों ने 1830 के बाद शिक्षा की संकुचित दृष्टि का प्रतिपादन किया जिसमें सिर्फ विधि, भाषा और साहित्य की शिक्षा पर ही जोर था। प्रो. शुक्ल ने जोर देकर कहा कि जब तक ज्ञान क्रिया को उत्पन्न नहीं करता तब तक वह ज्ञान नहीं हो सकता ।
उन्होंने कहा कि धर्मपाल जी के जन्म शताब्दी के निमित्त आयोजित चर्चा एक सार्थक पहल है।
नियमित अंतराल पर यह विमर्श चलता रहेगा और यह चर्चा वैचारिक विमर्श का एक बड़ा साधन बनेगी । विश्वविद्यालय के महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र की ओर से 18 फरवरी 2021 को धर्मपाल जी की जन्म शताब्दी पर ‘धर्मपाल जी की शैक्षणिक एवं भविष्य की सभ्यता दृष्टि’ विषय पर प्रथम संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें धर्मपाल जी की सुपुत्री गीता धर्मपाल, अहमदाबाद से अंकुर केलकर और मसूरी से पवन गुप्ता आदि ने अपने विचार रखे। इस अवसर पर महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. मनोज कुमार ने कहा कि धर्मपाल जी की जन्म शताब्दी पर उनके विचारों पर वर्षभर व्याख्यान का आयोजन होना चाहिए। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में धर्मपाल जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने ज्ञान की जड़ों को खोजने का काम किया और महात्मा गांधी पर चार खण्डो में विस्तार से लिखा। गांधी जी के साथ रहकर धर्मपाल जी ने गांधी की ग्राम स्वराज की दृष्टि को और विस्तारित किया ।
अपने उद्बोधन में धर्मपाल जी की सुपुत्री गीता धर्मपाल ने धर्मपाल जी के कार्य को विस्तार से संदर्भों के साथ प्रस्तुत किया। उन्होंने धर्मपाल जी द्वारा लिखी पुस्तक ‘द ब्युटिफुल ट्री’ का उल्लेख करते हुए कहा कि 450 पृष्ठों की इस पुस्तक में धर्मपाल जी ने शिक्षा पर जो लिखा है वह आंखें खोल देने वाला है। धर्मपाल जी गांधी विचारों से प्रभावित थे। 1960-70 के दौरान उन्होंने ब्रिटीश आर्काइव से पुराने दस्तावेज़ खोज निकाले और उनका दस्तावेजीकरण किया। उन्होंने भारत के इतिहास पर काम किया और भारत की शिक्षा नीति पर लिखा। उन्होंने कहा कि 19 वीं सदी में अंग्रेजी शिक्षा महंगी थी। तब भारत में ग्राम समुदाय के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाती थी। गीता धर्मपाल ने कहा कि आज भी सामुदायिक स्कूल प्रासंगिक और भारत के लिए उपयोगी है। स्थानीय लोगों के तालमेल से इसे चलाया जा सकता है। शिक्षा समुदाय की आवश्यकता पर होनी चाहिए जिससे ग्राम अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि हमें गांधी दृष्टि से विचार कर निर्णय प्रक्रिया में ग्राम की महत्वपूर्ण भूमिका पर काम करना चाहिए। अंकुर केलकर ने ‘द ब्युटिफुल ट्री’ का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत में अंग्रेजी शासन काल के पूर्व स्थानीय मांग के आधार पर शिक्षा प्रदान की जाती थी। हमारी सभी लोकविद्याएं शिक्षा से जुड़ी हुई थी। उन्होंने कहा कि हमें ज्ञान परंपरा के अलग-अलग पहलू जैसे आयुर्वेद, योग और ज्योतिष विद्या को शिक्षा के क्षेत्र में पुन: वापस लाना होगा। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में धर्मपाल की दृष्टि लाभकारक सिद्ध हो सकती है।
पवन गुप्ता ने कहा कि हमें धर्मपाल जी के विचारों पर चर्चा करते हुए वे क्या चाहते थे और उनमें कितना परिवर्तन आया इसपर विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने विकास को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक विकास की दृष्टि से देखा था। श्री गुप्ता का कहना था कि धर्मपाल जी की शैक्षणिक दृष्टि की बैठक को पकड़ना जरूरी है।
कार्यक्रम का संचालन सहायक प्रोफेसर डॉ. मिथिलेश कुमार ने किया तथा आभार संस्कृति विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी ने ज्ञापित किया।