इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 13 फरवरी 2024। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपमुख्यमंत्री के पद को संविधान के तहत परिभाषित नहीं किया जा सकता, लेकिन सत्तारूढ़ दल या पार्टियों के गठबंधन के वरिष्ठ नेताओं को उपमुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करना सांविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं है। शीर्ष अदालत ने पब्लिक पॉलिटिकल पार्टी की उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें राज्यों में उपमुख्यमंत्री बनाने की परंपरा को असांविधानिक मानते हुए रद्द करने की अपील की गई थी। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, उपमुख्यमंत्री विधायक और एक मंत्री ही होता है। इससे किसी भी सांविधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं होता। पीठ ने कहा, उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति कुछ राज्यों में सत्ता में पार्टियों के गठबंधन में वरिष्ठ नेताओं को थोड़ा अधिक महत्व देने के लिए अपनाई जाने वाली प्रथा है, यह असांविधानिक नहीं है।
राज्य गलत उदाहरण स्थापित कर रहे…
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया, उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति कर राज्य गलत उदाहरण स्थापित कर रहे हैं। यह संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है। संविधान में उपमुख्यमंत्री का कोई पद निर्धारित नहीं है। गौरतलब है कि वर्तमान में आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान में उपमुख्यमंत्री हैं।
उपमुख्यमंत्री भी एक मंत्री है
पीठ ने कहा कि उपमुख्यमंत्री भी एक मंत्री ही होता है। उपमुख्यमंत्री किसी भी सांविधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है, खासकर इसलिए कि उसे विधायक होना चाहिए। यहां तक अगर आप किसी को उपमुख्यमंत्री भी कहते हैं, तब भी यह एक मंत्री का संदर्भ है। उपमुख्यमंत्री का पदनाम उस सांविधानिक स्थिति का उल्लंघन नहीं करता है कि एक सीएम को विधानसभा के लिए चुना जाना चाहिए। इस याचिका में कोई दम नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।