
इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 18 अगस्त 2023। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसीपीएम) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने 77वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ‘नए संविधान’ पर एक लेख लिखा था, जिसपर लगातार विवाद बढ़ता जा रहा है। बढ़ते विवाद को देखते हुए उन्होंने गुरुवार को स्पष्ट किया कि लेख उनके व्यक्तिगत विचार थे। वहीं, काउंसिल और सरकार ने पहले ही लेख से खुद को अलग कर लिया था। देबरॉय ने अपने लेख में लिखा था, हमारा मौजूदा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। इस अर्थ में यह एक औपनिवेशिक विरासत भी है। 2002 में संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए गठित एक आयोग द्वारा एक रिपोर्ट आई थी, लेकिन यह आधा-अधूरा प्रयास था। कानून में सुधार के कई पहलुओं की तरह यहां और दूसरे बदलाव से काम नहीं चलेगा। हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए, जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुआ था। 2047 के लिए भारत को किस संविधान की जरूरत है?
उन्होंने कहा था कि हम जो बहस करते हैं, वह संविधान से शुरू और खत्म होती है। कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में इन शब्दों का अब क्या मतलब है: समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता। हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देना होगा।’
विपक्ष का हमला
यह लेख 77वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रकाशित हुआ था, जिसके बाद विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर हो रहा। कांग्रेस ने कहा था कि 77वें स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख ने उस संविधान को खत्म करने का बिगुल फूंक दिया है, जिसके प्रमुख शिल्पी डॉ. अंबेडकर थे। वह चाहते हैं कि देश एक बिल्कुल नए ब्रांड को अपनाए।
हर कॉलम के नीचे होती है चेतावनी
अब इस मामले में ईएसीपीएम के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने स्पष्ट करते हुए कहा कि जब भी कोई कॉलम लिखता है तो यह लेखक के व्यक्तिगत विचारों को दर्शाता है, न कि उस संगठन के विचारों को जिससे वह जुड़ा हुआ होता है। उन्होंने कहा कि हर कॉलम के नीचे हमेशा यह चेतावनी होती है कि यह कॉलम लेखक के व्यक्तिगत विचारों को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि संविधान पर जो भी लिखा वह मेरे विचार थे। उनका उस संगठन से कुछ लेना देना नहीं था, जिससे मैं जुड़ा हूं।
परिषद के विचार वेबसाइट पर होते हैं अपलोड
देबरॉय ने आगे कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोगों ने मेरे व्यक्तिगत विचारों को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद से जोड़ दिया। जबकि परिषद के अपने नियम हैं, अगर उसे कोई विचार रखने हैं तो वह अपनी वेबसाइट पर अपलोड करेगी। उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं है, जब मैंने इस मुद्दे पर कुछ लिखा है। मैंने पहले भी इस तरह के मुद्दे पर लिखा है, इसी तरह के विचार व्यक्त किए हैं। मुझे लगता है कि हमें संविधान पर दोबारा विचार करना चाहिए।
हर देश संविधान पर रखता है नजर
उन्होंने कहा कि मैं अपने विचारों को विवादास्पद नहीं मानता क्योंकि समय-समय पर दुनिया का हर देश संविधान पर नजर रखता है। हमने इसे संशोधनों के माध्यम से भी किया है, भारतीय संविधान के कामकाज को देखने के लिए एक आयोग का गठन किया गया था। अंबेडकर जी ने भी पहले ऐसी राय व्यक्त की थी।